करंट टॉपिक्स

“सुयोग्य का सम्मान”

Spread the love

देवास के सोनकच्छ में राजाभाऊ महाकाल की प्रतिमा के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम सम्पन्न हो गया. 15 अगस्त को उनकी प्रतिमा भी स्थापित हो जाएगी.

राजाभाऊ संघ के उस समय के प्रचारक थे, जब संघ का पर्याय मात्र संघर्ष ही था. उस दौरान अनुकूलता शब्द संघ कार्यकर्ताओं के शब्दकोश में नहीं था.

राजाभाऊ के बारे में किस्से हैं कि वे देवास, उज्जैन, बागली सहित पूरे उज्जैन संभाग में संघ कार्य के विस्तार के लिए गाँव-गाँव अनथक श्रम कर संघ कार्य का विस्तार करते थे, कभी चटनी तो कभी भूखे रहकर भी समय निकालना होता था.

राजाभाऊ ने गोहत्या प्रतिबंध के लिए चलाए आंदोलन से लेकर बंगाल से निर्वासित हिन्दुओं की सहायतार्थ चले अभियान में मालवा क्षेत्र में हस्ताक्षर से लेकर धन संग्रहण में जो भूमिका निभाई, उसकी कहानियां आज भी सुनाई देती हैं.

राजाभाऊ ने गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कर, स्वतंत्र करने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया. इंदौर से जब वे अपना जत्था लेकर रवाना हो रहे थे, तब वे आत्मबलिदान के लिए ही जा रहे थे. इसीलिए उन्होंने वाकणकर जी को यह कहकर रोका था कि देश को अभी आपकी और जरूरत है, मुझे जाने दीजिए.

गोवा में पुर्तगाली सैनिकों ने जितना इन देशभक्तों को रोका, वे उतने आगे बढ़ते गए और अंततोगत्वा पुर्तगाली सैनिकों ने राजाभाऊ के सिर पर गोली मारी और वे उपचार के दोरान बलिदान हो गए. राजाभाऊ सदा के लिए महाकाल की ज्योति में विलीन हो गए. राजाभाऊ ने अपने लिए कभी कुछ माँगा भी नहीं, जब अंतिम समय में अस्पताल में थोड़ा होश भी आता तो वे यह नहीं पूछते कि बचूँगा या नहीं, वे पूछते अपना गोवा आजाद हुआ या नहीं. लेकिन उन्होंने कुछ माँगा नहीं तो हम उनकी स्मृति को अमर करने के लिए कुछ नहीं कर सकते क्या? यदि नहीं करेंगे तो देश के लिए बलिदान होने वाली परंपरा का क्या होगा? इसलिए अब राजाभाऊ का एक स्मारक सोनकच्छ में बन रहा है. जहां हम सब श्रद्धा से नमन कर सकेंगे और प्रेरणा पाते रहेंगे.

संयोग से राजाभाऊ का जन्म 26 जनवरी को व बलिदान 15 अगस्त को हुआ था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *