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11 मार्च / बलिदान दिवस – अमर बलिदानी छत्रपति सम्भाजी

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नई दिल्ली. भारत में हिन्दू धर्म की रक्षार्थ अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. छत्रपति शिवाजी के बड़े पुत्र सम्भाजी भी इस मणिमाला के एक गौरवपूर्ण मोती हैं. उनका जन्म 14 मई, 1657 को मां सोयराबाई की कोख से हुआ था. तीन अप्रैल, 1680 को शिवाजी के देहान्त के बाद सम्भाजी ने हिन्दवी साम्राज्य का भार संभाला, पर दुर्भाग्य से वे अपने पिता की तरह दूरदर्शी नहीं थे. इस कारण उन्हें शिवाजी जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं हुई. दूसरी ओर औरंगजेब सिर कुचले हुए नाग की भांति अवसर की तलाश में रहता ही था.

संभाजी अपने वीर सैनिकों के बल पर औरंगजेब को सदा छकाते रहे. कभी उनका पलड़ा भारी रहता, तो कभी औरंगजेब का. घर के अंदर चलने वाली राजनीतिक उठापटक से भी संभाजी दुखी रहते थे. जिन दिनों वे अपने 500 सैनिकों के साथ संगमेश्वर में ठहरे थे, तब किसी मुखबिर की सूचना पर मुकर्रब खान ने 3,000 मुगल सेना के साथ उन्हें घेर लिया. संभाजी ने युद्ध करते हुए रायगढ़ की ओर जाने का निश्चय किया.

इस प्रयास में दोनों ओर के सैकड़ों सैनिक मारे गये. सम्भाजी के कुछ साथी तो निकल गये, पर संभाजी और उनके मित्र कवि कलश मुगलों के हत्थे चढ़ गये. औरंगजेब यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ. उसने संभाजी को अपमानित करते हुए अपने सामने लाने को कहा.

15 फरवरी, 1689 को दोनों को चीथड़े पहनाकर, ऊंट पर उल्टा बैठाकर औरंगजेब के सामने लाया गया. औरंगजेब उनका मनोबल तोड़कर हिन्दू शक्ति को सदा के लिये कुचलना चाहता था. अतः उसने सम्भाजी को कहा कि यदि तुम मुसलमान बन जाओ, तो तुम्हारा राज्य वापस कर दिया जाएगा और वहां से कोई कर नहीं लिया जाएगा.

पर सम्भाजी ने उसका प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया कि सिंह कभी सियारों की जूठन नहीं खाते. मैं हिन्दू हूं और हिन्दू ही मरुंगा. औरंगजेब ने तिलमिला कर उन्हें यातनाएं देना प्रारम्भ किया. उनके शरीर पर 200 किलो भार की जंजीरे बंधी थीं, फिर भी उन्हें पैदल चलाया गया. सम्भाजी कुछ कदम चलकर ही गिर जाते.

उन्हें कई दिन तक भूखा और प्यासा रखा गया. जंजीरों की रगड़ से सम्भाजी के शरीर पर हुए घावों पर नमक-मिर्च डाला गया. उनके शरीर को गर्म चिमटों से दागा गया. आंखों में गर्म कीलें डालकर उन्हें फोड़ दिया गया, पर उस सिंह पुरुष के मुंह से आह तक न निकली.

इससे चिढ़कर औरंगजेब ने 11 मार्च, 1686 (फागुन कृष्ण अमावस्या) का दिन उनकी हत्या के लिये निर्धारित किया. अगले दिन वर्ष प्रतिपदा (गुडी पाड़वा) का पर्व था. औरंगजेब इस दिन पूरे महाराष्ट्र को शोक में डुबो देना चाहता था.

11 मार्च की प्रातः दोनों को बहूकोरेगांव के बाजार में लाया गया. संभाजी से पूर्व उनके एक साथी कवि कलश की जीभ और फिर सिर काटा गया. इसके बाद सम्भाजी के हाथ-पैर तोड़े गये और फिर उनका भी सिर धड़ से अलग कर दिया गया.

मुसलमान सैनिक सिर को भाले की नोक पर लेकर नाचने लगे. उन्होंने उस सिर का भी भरपूर अपमान कर उसे कूड़े में फैंकदिया. अगले दिन खंडोबल्लाल तथा कुछ अन्य वीर वेश बदलकर संभाजी के मस्तक को उठा लाये और उसका यथोचित क्रियाकर्म किया.

शिवाजी ने अपने जीवन कार्य से हिन्दुओं में जिस जागृति का संचार किया, संभाजी ने अपने बलिदान से उसे आगे बढ़ाया. उनके छोटे भाई छत्रपति राजाराम के नेतृत्व में यह संघर्ष और तीव्र होता गया.

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