शिलॉंग. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने मेघालय की राजधानी शिलॉंग में यू सोसो थाम सभागार में आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया. पारंपरिक खासी जनजाति स्वागत के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, जिसमें सरसंघचालक जी को पारंपरिक पोशाक पहन शामिल हुए.
सरसंघचालक जी ने कहा कि “भारत की एकता ही इसकी ताकत है. भारत जिस विविधता का दावा करता है, वह गर्व की बात है. लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे अलग तरह से देखा. दुनिया सोचती है कि हम अलग हैं, जबकि भारत कहता है कि विविधता में एकता यह भारत की विशेषता है जो सदियों से चली आ रही है. हम हमेशा से एक रहे हैं. इतिहास में हम जब अपने चिरंतन मूल्यों को भूल गए तब हमने अपनी स्वतंत्रता खो दी. इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम एक बनें और अपने देश को मजबूत और अधिक आत्मनिर्भर बनाएं. हम सभी को इस एकता के लिए काम करना होगा.”
उन्होंने बताया कि कैसे संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अपना जीवन राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. कहा कि संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे, उनके जीवन के विभिन्न प्रेरक प्रसंग सुनाए.
सरसंघचालक जी ने कहा कि हम अनादि काल से एक प्राचीन राष्ट्र हैं, लेकिन अपनी सभ्यता के चिरंतन लक्ष्य और मूल्यों को भूलने के कारण हमने अपनी स्वतंत्रता खोई. हमारी एकात्मता की शक्ति हमारे सदियों पुराने मूल्य में निहित विश्वास है जो आध्यात्मिकता में निहित है. इस देश की सनातन सभ्यता के इन मूल्यों को हमारे देश के बाहर के लोगों ने “हिन्दुत्व” का नाम दिया. हम हिन्दू हैं, लेकिन हिन्दू की कोई विशेष परिभाषा नहीं है. यद्यपि यह हमारी पहचान है. भारतीय और हिन्दू दोनों शब्द पर्यायवाची हैं. वास्तव में यह एक भू-सांस्कृतिक पहचान है.
सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर देश के लिए त्याग करना सिखाता है. एक घंटे की संघ शाखाओं में लोगों को मातृभूमि के प्रति निःस्वार्थ मूल्यों और कर्तव्य के बारे में पता चलता है. संघ बलिदान की इस परंपरा को देश के प्राचीन इतिहास से लेता है. हमारे पूर्वजों ने अलग-अलग देशों का दौरा किया और जापान, कोरिया, इंडोनेशिया व कई अन्य देशों में हमारे श्रेष्ठ मूल्यों की छाप छोड़ी. हम आज भी उसी परंपरा का पालन कर रहे हैं. कोविड संकट के दौरान भारत ने विभिन्न देशों में टीके भेजकर मानवता की सेवा की और साथ ही, कुछ माह पूर्व, हमारा देश श्रीलंका के साथ उसके अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट के दौरान खड़ा था.
सरसंघचालक ने कहा कि संघ पांच पीढ़ियों से समर्पित स्वयंसेवकों के बल पर 1925 से राष्ट्र पुनर्निर्माण कार्य कर रहा है. संघ केवल संगठन को मजबूत बनाने के लिए काम करने वाला एक अन्य संगठन नहीं है, बल्कि असली मिशन इस समाज को संगठित करना है ताकि भारत को उसका सर्वांगीण विकास प्राप्त हो सके. शाखाओं में राष्ट्रीयता, स्वयंसेवकत्व और संघ भाव इन तीन बातों पर जोर दिया गया है.
कुछ वर्ष पहले युगांडा संकट के दौरान, वहां के भारतीयों को भी उनकी कोई गलती न होने के बावजूद भुगतना पड़ा था, क्योंकि वैश्विक स्तर पर भारत का कद कमजोर था. हमारी आपत्तियों का उस समय कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि हमारा देश कमजोर स्थिति में था. यदि भारत राष्ट्र शक्तिशाली और समृद्ध बनता है, तो प्रत्येक भारतीय भी शक्तिशाली और समृद्ध बनेगा. उन्होंने संघ का विश्लेषण दूर से नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव से करने को कहा.
श्रोताओं के बीच, कई शिक्षाविदों के साथ-साथ आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दिग्गजों ने भाग लिया. डॉ. भागवत जी की दो दिवसीय मेघालय यात्रा कल समाप्त होगी, जिसमें संघ के विभिन्न पदाधिकारियों और सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व के साथ उनकी बैठकें होंगी.