शिमला, हिमाचल प्रदेश.
संजौली मस्जिद विवाद मामले में कमिश्नर कोर्ट का निर्णय आने के पश्चात मुस्लिम पक्ष ने अपना रुख बदल लिया है. और कोर्ट का निर्णय मानने से इंकार कर दिया है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह कमिश्नर कोर्ट के निर्णय को चुनौती देगा. इससे पूर्व मस्जिद कमेटी ने स्वयं अवैध निर्माण को गिराने का लिखित आवेदन कोर्ट में दिया था. नगर निगम कमिश्नर कोर्ट ने अपने निर्णय में संजौली मस्जिद की दूसरी, तीसरी, और चौथी मंजिल को अवैध बताते हुए दो माह के भीतर ध्वस्त करने का आदेश दिया था. वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी को अवैध निर्माण को जिम्मेदारी दी गई.
अब ऑल हिमाचल मुस्लिम ऑर्गनाइजेशन नाम के मुस्लिम संगठन ने संजौली मस्जिद की अवैध तीन मंजिलों को गिराने के कोर्ट के फैसले का विरोध किया है. इसके साथ ही इस्लामिक संगठन ने इसे गलत करार दिया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुस्लिम संगठन का कहना है कि नगर निगम के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देगा. मस्जिद कमेटी ने दबाव में निगम कोर्ट के सामने मस्जिद के अवैध हिस्से को गिराने के लिए आवेदन किया था. निगम कमिश्नर के फैसले से मुस्लिमों की भावनाएं आहत हुई हैं. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे. अवैध निर्माण के आरोपों को बेबुनियाद बताया.
बुधवार को मुस्लिम संगठन ने एक मीटिंग की कि नगर निगम कोर्ट द्वारा संजौली मस्जिद को लेकर 5 अक्तूबर को लिए गए फैसले का जिक्र किया.
संजौली स्थित विवादित मस्जिद के अवैध निर्माण पर शनिवार 5 अक्तूबर को नगर निगम कोर्ट ने निर्णय सुनाया था. नगर निगम आयुक्त की अध्यक्षता में मस्जिद के अवैध निर्माण पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आदेश दिया था कि मस्जिद की ऊपर की तीन मंजिलें अवैध हैं और इन्हें गिराना होगा. यह फैसला 14 साल से चल रहे कानूनी विवाद के बाद आया था. मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड को दो महीने के भीतर तीन मंजिलों को अपने खर्चे पर ध्वस्त करने के निर्देश दिए गए थे. मामले की अगली सुनवाई 21 दिसंबर, 2024 को निर्धारित की गई है.
संजौली की यह मस्जिद 2007 में बनाई गई थी, लेकिन 2010 में स्थानीय निवासियों ने इसे अवैध बताते हुए नगर निगम कोर्ट में याचिका दायर की. तब से मामले की सुनवाई चल रही थी, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया था. मस्जिद के निर्माण पर बार-बार नोटिस जारी होने के बावजूद चार मंजिलों का निर्माण पूरा हो गया. नगर निगम पर लापरवाही का आरोप लग रहा है, क्योंकि अवैध निर्माण के बावजूद मस्जिद को बिजली और पानी की सुविधा मिलती रही.