संत विजय दास द्वारा आत्मदाह के प्रयास के बाद 80% से अधिक जल जाने के कारण आज सुबह (23 जुलाई) दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में निधन हो गया. कृष्ण की लीलास्थली कही जाने वाली पहाड़ियों आदिबद्री और कनकांचल को वैध/अवैध खनन के कारण नष्ट होने से बचाने के लिए भरतपुर के पसोपा क्षेत्र में संत लम्बे समय से आंदोलनरत थे. लेकिन सरकार बेसुध थी. सरकार की इस बेसुधी ने एक संत की जान ले ली. बरसाना में उनका अंतिम संस्कार होगा.
कौन हैं संत विजय दास
संत विजय दास हरियाणा में फरीदाबाद जिले के बडाला गांव के रहने वाले थे. साधु बनने से पहले उनका नाम मधुसूदन शर्मा था. उनके परिवार में बेटे बहू और पोती थे. लेकिन एक दुर्घटना में उन्होंने बेटे और बहू को खो दिया. इसके बाद वह अपनी पोती को लेकर उत्तर प्रदेश के बरसाना के मान मंदिर आ गए. पोती को गुरुकुल में डालने के बाद स्वयं सन्यासी हो गए. सन्यास ग्रहण करने के बाद उन्हें नया नाम मिला – बाबा विजय दास. 2017 में वे आदिबद्री और कनकांचल क्षेत्र में खनन को रोकने के लिए शुरू हुए आंदोलन से जुड़ गए. वर्तमान में वे पसोपा गांव के पशुपति नाथ मंदिर के महंत थे.
क्या था मामला?
भरतपुर के इस क्षेत्र में खनन रोकने की मांग 2004 से चल रही थी. बाबा रमेश के नेतृत्व में प्रारंभ इस मांग ने 2007 में आंदोलन का रूप ले लिया. जिसकी अगुआई बाबा हरिबोल दास ने की. 2008 में प्रदेश की भाजपा सरकार ने खनन रोकने का आश्वासन दिया. 2009 में 75% प्रतिशत स्थानों पर खनन रुक गया, लेकिन आदिबद्री और कनकांचल पर निर्बाध जारी रहा. 2017 में साधु संतों ने फिर आंदोलन किया, जो खनन रोकने के आश्वासन मिलने के बाद समाप्त हो गया. कोई कार्रवाई न होने पर संत 2021 में फिर धरने पर बैठ गए. तब से यह धरना व प्रदर्शन निरंतर जारी था. संतों ने सरकार को बार-बार चेताया, ज्ञापन दिए. लेकिन शासन प्रशासन के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी. संतों ने आत्मदाह की चेतावनियां दीं. लेकिन सरकार कानों में रुई ठूंसे बैठी रही. व्यथित होकर संत विजय दास ने 20 जुलाई को आत्मदाह कर लिया.
क्या है पहाड़ियों की स्थिति?
ये पहाड़ियां बृज की 84 कोसी परिक्रमा के अंतर्गत आती हैं. माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने कभी यहां लीलाएं की थीं. पिछले नौ महीनों में बद्री वन, नारायण पर्वत, नर पर्वत, त्रिकूट पर्वत, बद्रीनाथ, चंदनवन, गंधमादन और तपोवन की पहाड़ियों पर जमकर वैध/अवैध खनन हुआ. जानकार बताते हैं कि खनन माफिया को मालूम था, देर सवेर यह इलाका वन क्षेत्र घोषित कर दिया जाएगा. इसी के चलते यहां तेजी से पहाड़ काट डाले गए. डेटोनेटर और जेसीबी की आवाज में संतों की आवाज कहीं दबकर रह गई. …और धर्म की राह में एक संत बलिदान हो गए.