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आत्मनिर्भरता – सिलाई से संवारी जिंदगी

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पटना (विसंकें). कोरोना ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है. कई लोगों की नौकरी छूट गई तो कई के आशियाना बिखर गए. व्यवसाय चौपट हो गया. ऐसे संकट के समय में कुछ लोग बेसहारा के सहारा बने. ऐसी ही एक महिला हैं – दरभंगा की मधु सरावगी. मधु ने लगभग 300 महिलाओं को रोजगार देने का काम किया है. कोरोना की शुरुआत हुई तो मास्क सिलाई का काम शुरू हुआ. अब महिलाएं और लड़कियां रेडीमेड कपड़े बनाने के साथ बुटीक का भी काम करती हैं.

मधु सरावगी का अपना सिलाई संस्थान है. पिछले 5 वर्षों से अपने यहां से बने कपड़े स्थानीय बाजार में देती थीं. इसके अलावा अपने संस्थान में 25 महिलाओं को प्रशिक्षण के बाद रोजगार भी दिया. कोरोना  के कारण जब लॉकडाउन लगा तो लोगों के सामने आर्थिक दिक्कतें आ गई. मास्क अनिवार्य तो था, लेकिन बाजार में उसकी कमी थी. ऐसे में मधु ने बेरोजगार महिलाओं के लिए कार्य प्रारंभ किया. थोड़े प्रशिक्षण के बाद उन्हें मास्क बनाने का काम दिया. प्रत्येक मास्क पर 2 रुपये देने लगीं. एक महिला घर के काम निपटा कर 80 से 100 मास्क बना लेती.

ऐसे 300 महिलाओं को इस काम में जोड़ा. जिन महिलाओं के पास सिलाई मशीन नहीं थी, उन्हें मशीन उपलब्ध करवाई. अब तक ये महिलाएं चार लाख से अधिक मास्क बना चुकी हैं. इसके अलावा सिलाई के अन्य काम भी करती हैं. इससे प्रतिदिन 300 से लेकर 500 रुपये कमा लेती हैं. अधिकतर महिलाएं घर से काम करती हैं. अब तो इन महिलाओं से कपड़े सिलवाने ग्राहक खुद इनके घर तक आ जाते हैं.

मधु के पति भारतीय स्टेट बैंक में काम करते हैं. गांव से जुड़ी हुई हैं. महिलाओं की परेशानी को इन्होंने महसूस किया है. पहले खुद सिलाई सीखी, अब दूसरों के जीवन को रोशन कर रही हैं.

मधु ने लहेरिया सराय स्थित एचआइवी हॉस्पिटल में भर्ती महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए दो सिलाई मशीनें दी हैं. वहां की महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण भी दिया है. वे गरीब बच्चों की पढ़ाई और लड़कियों की शादी में मदद भी करती हैं.

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