ग्रामीण क्षेत्र आत्मनिर्भर बनें, मूलभूत सुविधाओं की बेहतर व्यवस्था हो. देश का ग्रामीण क्षेत्र स्वयं में इतना सक्षम हो कि किसी अन्य पर निर्भर न होना पड़े. आत्मनिर्भर भारत बने इसके लिए देश के प्रधानमंत्री लगातार कार्य कर रहे हैं, इसी से प्रेरित होकर मध्यप्रदेश में बैतूल जिले के मलियाढाना गांव के ग्रामीण भी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हुए. भारत की आर्थिक व्यवस्था कृषि पर आधारित रही है. इसीलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहते हैं. इतना ही नहीं भारत ने कृषि के बल पर दुनिया में आर्थिक महाशक्ति बनने तक की लंबी यात्रा तय की है. वहां स्वदेशी, स्वराज और आत्मनिर्भरता के महामंत्र जड़ों तक गहरे समाए हुए हैं. ये आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगे.
मध्य प्रदेश के वनवासी बहुल बैतूल जिले का गांव मलियाढाना इन दिनों दृढ़ संकल्पित होकर तीन किलोमीटर लंबी सड़क बनाने में जुटा हुआ है, जो उसे आत्मनिर्भर बनाकर विकास की मुख्यधारा से जोड़ सकता है. ग्राम वासियों की तरफ से तीन किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का काम आसान नहीं है. गांव तक पहुंचने के लिए पगडंडीनुमा मार्ग बेहद कठिन है. लेकिन संकल्प से सिद्धि प्राप्त करने की लगन और मेहनत के आगे बड़ी से बड़ी समस्याएं कुछ भी नहीं हैं. गांव वालों ने तय किया कि इस मार्ग को सुव्यवस्थित सड़क में बदल देंगे. इसके लिए बड़ी-बड़ी चट्टानें तोड़ कर छोटे पत्थर बनाकर समतल कर बिछा रहे हैं.
बैतूल जिले के भीमपुर विकासखंड की ग्राम पंचायत चूनालोहमा का यह गांव ताप्ती नदी के किनारे बसा हुआ है. चूनालोहमा से मलियाढाना पहुंचने के लिए कोई व्यवस्थित रास्ता नहीं है. पहाड़ के किनारे से बनी पगडंडी से होकर गांव के लोग निकलते हैं जो किसी खतरे से खाली नहीं हैं. बूढ़े व्यक्ति और बीमार लोगों को कंधे पर बैठाकर मुख्य मार्ग तक लेकर आना पड़ता है. गर्भवती महिलाओं के लिए भी ऐसी ही समस्या होती है. गांव के विकास पर प्रशासन व जनप्रतिनिधि की तरफ से आज तक ध्यान नहीं दिया गया. पंचायत के माध्यम से कई बार प्रस्ताव बनाकर भेजे गए, लेकिन काम नहीं हुआ. जब किसी ने नहीं सुनी तो ग्रामवासियों ने तय किया कि अब हम किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहेंगे, अपनी राह खुद बनाएंगे. मेहनत करके लगभग एक किलोमीटर का रास्ता बना चुके हैं.
सड़क बना रहे गांव के एक युवक दसरू ने बताया कि पत्थर तोड़ने के लिए औजार की आवश्कता थी जो हमारे पास नहीं थे, तब सभी ग्रामीणों ने एक बैठक की और औजार खरीदने के लिए चंदा इकट्ठा किया गया. उसी से हथौड़े, सब्बल, बल्लियां खरीद कर सड़क बनाने का काम शुरू किया गया. इस काम में गांव के बच्चे, औरतें और बूढ़े सब ने सहयोग किया. बड़ी-बड़ी चट्टानों को तोड़कर एक किलोमीटर लंबी सड़क तैयार कर ली है. दो किलोमीटर का काम पूरा होने के बाद गांव से चूनालोहमा तक आसानी से आ जा सकेंगे.