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सेवा भारत का स्वभाव है

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भुवनेश्वर। मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने कहा कि प्राकृतिक आपदा हो या आपातकालीन स्थिति, उत्कल विपन्न सहायता समिति ने हर बार संकटग्रस्त ओडिशा वासियों की सहायता के लिए तत्परता दिखाई है। 43 वर्षों की सेवा यात्रा में गरीब, असहाय और जरूरतमंदों को विभिन्न क्षेत्रों में सहायता प्रदान कर अग्रणी सामाजिक संस्था के रूप में अपनी पहचान बनाई है। मुख्यमंत्री भुवनेश्वर के उत्कल मंडप में आयोजित उत्कल विपन्न सहायता समिति के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

राज्य के प्रमुख चिकित्सा स्थलों – कटक, भुवनेश्वर, ब्रह्मपुर – में इलाज के लिए आने वाले मरीजों के लिए समिति द्वारा संचालित स्वास्थ्य सहायता केंद्रों की भूमिका अत्यंत सराहनीय रही है। केंद्र मरीजों की आवास, भोजन, डॉक्टर और अस्पतालों से समन्वय में मदद करते हैं ताकि उचित उपचार प्राप्त कर सकें।

1982 की प्रलयंकारी बाढ़, बारिपदा मधुबन का भयावह अग्निकांड और 1999 के सुपर साइक्लोन के समय समिति ने देवदूत की तरह पीड़ितों की सहायता की थी। विशेष रूप से 1999 के सुपर साइक्लोन के दौरान स्वयंसेवकों की कठिन मेहनत, त्याग और सेवा भावना को राष्ट्रीय मीडिया ने भी सराहा था।

उन्होंने कहा कि 1999 की महावात्या के समय वह स्वयं आनंदपुर, क्योंझर जिले में एक सक्रिय स्वयंसेवक के रूप में सेवा कार्यों में शामिल थे। उन्हें मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि एक सामान्य व्यक्ति के रूप में लोगों के सेवक के रुप में कार्य करने की प्रेरणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिली है। समाज के प्रति संवेदनशीलता और समर्पण की भावना भी संघ से ही ग्रहण की है।

मुख्यमंत्री ने गजपति जिले के पारालाखेमुंडी और मयूरभंज जिले के उदला में जनजातीय बच्चों के लिए आवासीय छात्रावासों की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में समिति के योगदान की प्रशंसा की। भुवनेश्वर में समिति द्वारा 50 से अधिक केंद्रों में 1000 से अधिक बच्चों को संस्कृति, परंपरा और नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान की जा रही है।

महाप्रभु श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा, लिंगराज महाप्रभु की रुकुना रथ यात्रा और ढेंकानाल के जोरंदा माघ मेला जैसे आयोजनों में समिति के सेवा कार्यों को लोगों ने देखा और सराहा है। मुख्यमंत्री ने कहा, “हमारा मंत्र है – ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’।

सेवा भारत का स्वभाव है

मुख्य वक्ता सेवा भारती के संयुक्त महामंत्री विजय मनोहर पुराणिक ने कहा कि, “राजनीतिक परिवर्तन के लिए बहुमत जरूरी है, लेकिन सामाजिक परिवर्तन के लिए रचनात्मकता की आवश्यकता होती है।” उत्कल विपन्न सहायता समिति जैसी संस्थाओं की सेवा भावना के कारण ही समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव हो सका है। भारत की संस्कृति में सेवा की यह सभ्यता प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसे समिति ने विशेष रूप से कोरोना लॉकडाउन के दौरान आम लोगों की सेवा कर पुनः जीवित किया।

उन्होंने कहा कि सेवा भारत का स्वभाव है । यह भारत के लिए विदेशी देन नहीं है । यह हजारों वर्षों से चला आ रहा है । महर्षी व्यास को उद्धृत करते हुए कहा कि परोपकार करना ही पुण्य है तथा दूसरों को कष्ट पहुंचाना ही पाप है ।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में सेवा के बहुत कार्य किये गए। सरकार के अलावा समाज ने अपना दायित्व बखूबी निभाया। पहला लॉकडाउन हटने के बाद माइग्रेंट श्रमिक जब पैदल अपने-अपने गांव की ओर जा रहे थे, तब गांव वालों ने उनकी सेवा की। न उनको उनकी भाषा मालूम थी, न उनकी जाति-पाति के थे। ऐसे मजदूरों की सेवा करना हमारा कर्तव्य है, यह मान कर सेवा करने वाले लोग थे। ये सामान्य लोग ही थे। यह भारत का सेवा का स्वभाव है।

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने पूरे जीवन में सेवा पर ध्यान दिया। नर सेवा, नारायण सेवा। उस भगवान की सेवा करना चाहता हूं, जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य़ कहते हैं। उत्कल विपन्न सहायता समिति व इस तरह के हजारों संगठन सेवा कार्य कर रहे हैं। इस कारण समाज में एक परिवर्तन दिख रहा है।

सेवा करने वाले लोगों में विनम्रता आती है। उसके हृदय का भाव निर्मल हो जाता है। इसी तरह जिनकी सेवा की जाती है, उन्हें सरकारी भाषा में बेनिफिसियरी कहा जाता है। हम उन्हें बेनिफिसियरी नहीं मानते हैं। ऐसे लोगो में आत्मविश्वास बढ़ाना तथा याचक मनोवृत्ति से बाहर निकाल कर उनके मन में तुम भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकते हो, इस प्रकार का विश्वास व भावना का निर्माण सेवा के आधार पर करना है।

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