न कभी सुना, न देखा. मगर वर्ष 2020 में ऐसा ही कुछ हुआ. एक महामारी आई और दुनिया जहां थी, वहीं रूक गई. सब बंद. काम बंद, दफतर बंद, दुकान बंद, व्यापार बंद, उद्योग बंद, सुयोग बंद, वियोग बंद, व्यवहार बंद, यात्रा बंद – सब घर में बंद – सब लॉकडाउन. मगर इस कल्पनातीत लॉकडाउन में भारत में लाखों बेबस ऐसे भी थे, जिनके नसीब में घर की सुरक्षा नहीं, बल्कि सड़क का एक ऐसा लंबा सफर था, जिसके हर कदम पर भूख, प्यास, बिमारी और कोरोना का खतरा था. – यह अभागे थे, हमारे देश के गरीब कामगार.
मार्च 2020 में लॉकडाउन के कुछ समय बाद अचानक लाखों की संख्या में गरीब श्रमिक सड़कों पर आ गए. आवागमन के सभी साधन बंद थे. रोज़ी-रोटी के संकट से जूझते इन वंचितों के लिए सुरक्षित घर-वापसी किसी चुनौती से कम न थी. भूखे-प्यासे, पैरों में छालों के बावजूद चलने का मजबूर इन बेबस मज़दूरों की तस्वीरें जब देश ने नेशनल टेलीविज़न पर देखीं, तो हर दिल ने इनका दर्द महसूस किया. आनन-फानन में श्रमिक स्पेशल ट्रेनें शुरू की गईं.
इस अभूतपूर्व संकट की स्थिति में सदैव की तरह सेवा का संकल्प लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक मैदान में कूद पड़े. इसी कड़ी में मुरादाबाद में सेवा भारती के निर्देशन में व्यापक सेवा कार्य चलाये गए. मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से यात्रा कर रहे मज़दूरों के लिये स्वयंसेवकों ने स्टेशन पर ही एक विशाल किचन शुरू किया. संघ के मुरादाबाद विभाग प्रचार प्रमुख पवन जैन बताते हैं कि 400 स्वयंसेवकों ने दिन-रात काम किया. ऐसी व्यवस्था बनाई गई कि मुरादाबाद रेलवे स्टेशन से गुज़रने वाला कोई भी मज़दूर भूखा न जाए. प्रतिदिन लगभग 10-12 हज़ार लोंगों को भोजन के पैकेट और पानी की बोतलें बांटी गईं. 31 मई, 2020 तक यह व्यवस्था जारी रही.
संघ के स्वयंसेवकों ने पूरी लगन के साथ श्रमिक भाइयों की हर संभव सेवा की. इस दौरान अनेक भावनात्मक दृश्य भी लोगों ने देखे. मुरादाबाद रेलवे स्टेशन से गुज़रनें वाली ट्रेनों में सफर कर रहे श्रमिक बिना किसी भेदभाव के सेवा कार्य कर रहे स्वयंसेवकों को देख अभिभूत थे. मुस्लिम समुदाय के श्रमिकों के एक जत्थे ने तो भोजन सामग्री वितरित कर रहे स्वयंसेवकों पर पुष्पवर्षा तक की. कोरोना महामारी के दौरान घर लौट रहे श्रमिक भाइयों की दुर्गम राह को स्वयंसेवकों ने अपने सेवाव्रत से सींच उन्हें शीतलता का जो अनुभव कराया, वह वास्तव में एक मिसाल है.