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भारत में आदिकाल से ही शक्ति की पूजा होती आई है

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मेरठ. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अटल सभागार में विश्व हिन्दू परिषद व्याख्यान माला आयोजन समिति द्वारा आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के तृतीय दिवस मुख्य वक्ता डॉ. सुरेखा डंगवाल (कुलपति दून विश्वविद्यालय देहरादून), कार्यक्रम अध्यक्ष अतुल्य बंधु गुप्ता (निदेशक नंदी फ़ार्टिलाइजर्स ), रुचि पंवार प्रांत छात्रा प्रमुख दुर्गा वाहिनीने दीप प्रज्ज्वलन किया.

राष्ट्र निर्माण में नारी शक्ति की भूमिका विषय पर डॉ. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि भारत में आदिकाल से ही शक्ति को ऊर्जा का केंद्र मान उसकी पूजा की है. इस देश में देवताओं से पहले उनकी अर्द्धांगिनी का नाम आता है. यहाँ सीता राम कहा जाता है राम सीता नहीं. पूरे विश्व में अर्धनारीश्वर का स्वरूप भारत के अतिरिक्त कहीं और नहीं मिलेगा.

अमेरिका में भी महिला मुक्ति आंदोलन 1960 में शुरू हुआ, जबकि इस देश में नारी को आदिकाल से ही बराबरी का महत्व दिया जाता है. पश्चिम जगत में स्त्री विमर्श पूंजीवाद की विजय अथवा साम्यवाद की पराजय से उत्पन्न परिस्थिति के फलस्वरूप हुआ, जिसका केंद्र भी स्वयं की पहचान से जुड़ा था. यह संघर्ष स्वयं की पहचान को केंद्र में रखकर ही मुखर हुआ. राष्ट्रीय चेतना अथवा राष्ट्रीय नवनिर्माण का एक भी प्रेरक प्रसंग पश्चिम के स्त्री विमर्श में दिखाई नहीं देता. परंतु यदि हम भारत की बात करें तो वैदिक काल से लेकर चंद्रयान -3 की सफलता तक भारत की मातृशक्ति ने राष्ट्रीय चेतना को मूल में रखकर एवं स्वयं की पहचान को इसी चेतना में समाहित कर इतिहास को गौरवान्वित किया. जहां एक ओर अहिल्याबाई होल्कर, दुर्गाभाभी एवं जीजा माँ ने समाज को एक नई दिशा देकर हिन्दू संस्कृति को स्थापित कर इतिहास में प्रेरणा पुंज बनीं. दूसरी ओर राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह की रक्षा के लिए माँ पन्ना धाय अपने पुत्र को बलिदान कर इतिहास में अमर हो गयी. भारत के गौरवशाली इतिहास में इस प्रकार के अनेकों उदाहरण अंकित हैं, जिन्होंने इस देश की चेतना को नवीन दिशा दी. पाश्चात्य संस्कृति भारत की संस्कृति नहीं है. इस देश की मातृशक्ति को पुनः मैं नहीं हम को स्थापित कर देश का उत्थान करना होगा.

प्रस्तावना निमेश वशिष्ठ ने रखी. मंच संचालन स्मिता दीक्षित ने किया तथा सरला चौधरी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया.

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