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पंजाब के लोकजीवन और लोकगीतों में श्रीराम

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राकेश सैन

श्री रामनवमी पर समस्त चराचर जगत को हार्दिक शुभकामनाएं. भगवान श्रीराम सर्वत्र है और सर्वज्ञ हैं. फिर ऐसे में पंजाबी साहित्य व यहां का लोक जीवन कैसे रामनाम से अछूता रह सकता था. पंजाब के लोकजीवन व लोकगीतों में भगवान श्रीराम की बारात जनकपुर की महिलाओं द्वारा बांधने और भ्राता लक्ष्मण द्वारा अपनी साहित्य योग्यता के बल पर बारात को मुक्त करवाने का वर्णन मिलता है.

बात उस समय की है, जब यातायात के साधन इतने विकसित नहीं थे और बारातें एक-एक सप्ताह या कई -कई दिनों तक रुका करती थी. ऐसे में वधु पक्ष के रिश्तेदार व बिरादरी के लोग बारी-बारी से बारात की रोटी किया करते थे अर्थात भोज करते थे. बारातियों को खेस या दरियों पर बैठा दिया जाता और वधु पक्ष के युवा बारातियों को भोजन परोसते. बारातियों का भोजन करना इतना आसान नहीं था क्योंकि उनके कला कौशल की परीक्षा ली जानी शेष थी. जहां बारात भोजन कर रही होती वहां छतों व मुण्डेरों पर महिलाएं व वधु की सहेलियां बैठ जातीं और सीठने देतीं. सीठने दे कर महिलाएं बारात को बन्धन में बान्ध देतीं, जब तक वर पक्ष से उनके सीठनों का जवाब नहीं आता तब तक बारात न तो भोजन कर सकती थी और न ही उठ कर जा सकती थी. अगर वर पक्ष के लोग बारात को बन्धनमुक्त नहीं करवा पाते तो उनको तरह-तरह के हिकारत भरे उलाहने सुनने पड़ते.

जन्न खाणे छत्ती बन्न तु बठाई के. अड्डी चोटी लक्क धोण जिन्दे लाई के.

कोट चोगे कुड़ते रुमाल बन्नां. पग्ग साफा चीरा भोथा नाल बन्नां.

लड्डू पेड़ा बरफी पतीसे थालीयां. गड़वे गलास बन्न देयां प्यालियां.

अर्थात भोजन करने बैठी बारात को इस तरह बान्ध दिया कि एड़ी से चोटी तक कमर से गर्दन तक जैसे ताले लग गए. कपड़े, कुर्ते, रुमाल, पगड़ी, लड्डू, पेड़ा, बरफी, पतीले और थालियां सब बांध दी गईं.

महिलाएं एक अन्य गीत गाती हैं.

बन्नां घिउ खण्ड विच पाए थाल वे. बन्नां तेरे मित्तर पिआरे नाल वे.

बन्नां थोडी मासी तिक्खे तिक्खे नैण वे. बन्नां थोडी मासी भूआ भैण वे.

बन्न दियां पतोड़ दुद्ध दही खीर वे. लम्मे लुंजे बन्नां मधरे सरीर वे.

झटका शराब बन्नां सणे बोटां दे. बन्नां थोडे बटुए जो डक्के नोटां दे.

कुड़ते पजामे बन्न देयां धोतीयां. ऊठ घोड़े बन्न देवां खोतीयां.

जुत्तीयां जुराबां बन्न देवां बूट वे. कोट पतलून जो हडाउंदे सूट वे.

अर्थात : महिलाएं बारातियों के खाने की चीजों के साथ-साथ वर के घर की महिलाओं, उनके तीखे नैनों, हर उम्र के बाराती, कपड़े, बूट-जुराबें, बारात को लाने वाले ऊंट, घोड़े, गधों समेत सभी को अपने सीठनों से बान्ध देती हैं.

बारात बान्धने के बाद बारातियों की हालत खराब हो जाती क्योंकि इन सीठनों के जवाब भी गीतों से ही देना पड़ता था. ऐसे में याद आती नाई, भाण्ड व मरासी की जो बारात के साथ चलते और सीठनों, लोकजीवन, लोकगीत की कला में पारंगत होते. कोई कुशल बाराती या दूल्हे के यार-दोस्त भी इनका जवाब देने के लिए उठ खड़ा होते और हाथ में लोटे से जल छिडक़ कर महिलाओं के सीठनों का जवाब देता. जब महिलाएं इन जवाबों से संतुष्ट हो जातीं तो बारात को बन्धन मुक्त कर देतीं और गीत गातीं …

लाड़ा छुटेया निराला, फेर बाला सरबाला.

उच्चा सिंघां दा दुमाला, मल्ल पूरी बरात दे.

रथ गड्डीयां शिंगारां, लारी साईकल ते कारां,

छुटे सणे असवारां,  झांजी दी बरात दे.

छुट गए पकौड़े सणे तेल मट्ठीयां, बन्न देवां नारीयां कट्ठीयां, 

छुट गए शक्करपारे दुद्ध घ्यो नी. माता भैण भाई तेरा बन्नां प्यो नी.

अर्थात : पहले दूल्हा बन्धनमुक्त हुआ, फिर सरबाला (दूल्हे के साथ चलने वाला बच्चा जो दूल्हे के ही वेष में रहता है). इसके बाद रथ, गाड़ियों, बसों, साईकिल व कारों के सवार मुक्त हुए. इसी तरह बारात के खाने का सामान मुक्त हुआ. इसके बाद बाराती खाना शुरू करते और महिलाएं उनके घरों की महिलाओं, परिवार के सदस्यों को लेकर हंसी-मजाक भरे गीत गातीं.

पंजाबी लोकसाहित्य में भगवान राम की बारात बांधने का भी वर्णन है, जिसको वाकपटु व कलाकौशल से निपुण भ्रता लक्ष्मण जी मुक्त करवाते हैं…

सीता वरी राम ने धनुश तोड़ के, उत्थे जन्न बद्धी नारीयां जोड़ के.

लछमण जती ने छड़ाई जन्न नी, जनकपुरी होई धन्न धन्न नी.

अर्थात : राम ने धनुष तोड़ कर जब सीता का वरण किया तो जनकपुर की महिलाओं ने इकट्ठा हो कर उनके साथ आई अयोध्या वासियों की बारात को बान्ध दिया. इस पर लक्ष्मण जी ने खड़े हो कर बारात को मुक्त करवाया और इससे जनकपुरी धन्य-धन्य हो गई.

पंजाब के मालव इलाके के गीतकार शादीराम अपने ‘पत्तल काव्य’ में इस प्रथा का वर्णन करते हुए रामजी के विवाह के बारे लिखते हैं …

कोरिआं से बठाई जन्न, जीमणे नूं जनकजी ने,

आप जनक पत्तलां ते, भोजन जो पांवदा.

जन्न बन्न दित्ती, रामचन्दर दी नारीआं ने,

‘शादीराम’ लक्षमण जी, उट्ठ के छुड़ांवदा …

अर्थात : जब रामजी की बारात भोजन करने बैठी तो स्वयं जनक जी ने उनके सम्मुख पत्तल बिछाए और भोजन परोसा. इस पर महिलाओं ने बारात को बान्ध दिया और लक्ष्मण जी ने उसे मुक्त करवाया.

आज शादी विवाह के नाम पर होने वाली सर्कस दौरान कानफोड़ डीजे की आवाज में भोण्डे गीतों पर थिरकने के बाद थोड़ी फुर्सत मिले तो हमें अपनी गौरवशाली परम्पराओं का भी तनिक स्मरण कर लेना चाहिए. शायद यही रामनवमी पर हमारी ओर से भगवान श्रीराम को अनुपम भेंट होगी.

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