हापुड़ से पकड़कर कारसेवकों को गाजियाबाद लाया गया था, वहीं स्थानीय लोगों ने उनके भोजन की व्यवस्था की थी. यहीं पर प्रशासन द्वारा एक कोर्ट बिठाकर रात्रि 2:30 बजे सभी को जेल की सजा सुनाई गई. वहां से फिर बसों में भरकर बुलंदशहर कॉलेज में बनाई गई अस्थाई जेल में कारसेवकों को ले जाया गया. सुबह 6:00 बजे कारसेवक जेल पहुंचे. वहां पर कोई व्यवस्था कारसेवकों के लिए नहीं की गई थी. करीब 11:00 बजे लोहे के ड्रमों में दाल, अधजली रोटियां लेकर प्रशासन की तरफ से कुछ लोग आए. कारसेवकों ने भोजन करने से मना कर दिया और कहा कि वह भूख हड़ताल करेंगे. यह बात बुलंदशहर के नागरिकों तक पहुंच गई. उन्होंने भोजन की व्यवस्था अपने हाथों में लेकर घरों से सभी कारसेवकों के लिए भोजन का प्रबंध किया. यह क्रम अगले दिन तक चला, तब यह बात आस-पास के गांव में भी पहुंच गई थी. इसके बाद आस-पास के गांव से भोजन का प्रबंध किया जाने लगा, प्रतिदिन एक गांव से कारसेवकों के लिए भोजन आने लगा. आस्था उस समय देखने को मिली जब स्कूल के बच्चों ने अपने जेब खर्च से कारसेवकों के लिए एक समय के भोजन का प्रबंध किया.
30 तारीख दोपहर तक यह क्रम चलता रहा. उस दिन दोपहर में अयोध्या में गोली चलने की खबर आम जनमानस तक पहुंच चुकी थी. छन-छन कर खबरें आ रही थीं कि सैकड़ों कारसेवक पुलिस द्वारा गोली से भून दिए गए हैं. बुलंदशहर प्रशासन ने आनन-फानन में फैसला लेते हुए सभी कारसेवकों को रिहा कर दिया. हमने भी रिहा होते ही अयोध्या के लिए पुन: प्रस्थान करने का फैसला किया. शाम को 7:00 बजे बुलंदशहर से लखनऊ के लिए जाने वाली गाड़ी में सभी कारसेवक सवार हो गए. थोड़ी देर चलने के बाद खुर्जा रेलवे स्टेशन पर फिर पुलिस द्वारा गाड़ी को घेर लिया गया और महेंद्रगढ़ के 10 कारसेवकों को गाड़ी से नीचे उतार लिया, जो कारसेवक पुलिस की नजरों से बच गए वह गाड़ी में सवार होकर लखनऊ के लिए प्रस्थान कर गए. रास्ते में सूचना आई कि लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर कारसेवकों को गाड़ी से उतरते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है. अत: सभी ने फैसला किया कि लखनऊ रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर पहले गाड़ी की चैन खींच कर उतरेंगे और फिर पैदल यात्रा प्रारंभ होगी.
जानकारी के अभाव में लखनऊ रेलवे स्टेशन से 25 किलोमीटर पहले गाड़ी की चेन खींच दी गई और महेंद्रगढ़ के सभी कारसेवक ट्रेन से नीचे उतर गए, तथा रेल की लाइन के साथ-साथ लखनऊ की तरफ बढ़ने लगे. रास्ते में एक जगह सभी निवृत्त हुए और फिर लखनऊ की तरफ बढ़ने लगे. एक जगह एक दूधिया दूध ले कर के जा रहा था क्योंकि सभी कारसेवक उस समय तक 8 से 10 किलोमीटर पैदल यात्रा कर चुके थे. भूख लगी हुई थी, मैंने उसे दूध के लिए कहा अपने पास जो लौटा था, उसमें दूध डलवाया और उसे रुपए देने लगा. तब उस दूध वाले ने पैसे लेने से मना कर दिया और कहा कि जिन्हें दूध पीना है, वह दूध पी सकते हैं. उसकी श्रद्धा देखकर मन भाव विभोर हो गया कि आज हिन्दू समाज किस प्रकार एकजुट होकर इस कलंक के ढांचे को हटाने के लिए आतुर है. 15 किलोमीटर चलने के बाद एक माता के मंदिर में सभी कारसेवक बैठ गए और आगे की योजना बनाने लगे. तभी कारसेवकों की भनक स्थानीय कार्यकर्ताओं को लग गई. दो-तीन कार्यकर्ता वहां आए और सभी कारसेवकों को वहीं पर बैठकर इंतजार करने के लिए कहा. थोड़ी देर में चाय बिस्किट और भोजन के पैकेट वहां के स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा उपलब्ध करा दिए गए. सभी ने भोजन किया, फिर उन स्थानीय कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में संपर्क करके ठहरने की व्यवस्था करवाई. टैम्पो पर सवार होकर हम वहां के एक आंखों के अस्पताल में पहुंचे, जिसके बेसमेंट में हमारे रुकने की व्यवस्था की गई थी. वहां जाकर बैठ गए, थोड़ी देर बाद चाय और जलपान का प्रबंध वहां के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया. कारसेवकों की भनक क्षेत्र के मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में भी पहुंच गई और उन्होंने शोरगुल शुरू कर दिया. स्थानीय कार्यकर्ताओं ने हमें कहा कि आप नीचे बैठे रहें. कर्फ्यू होने के कारण शोरगुल कर रहे लोगों पर पुलिस ने हवाई फायरिंग की, जिसे सुनकर सभी कारसेवकों के मन में भय उत्पन्न हो गया. कुछ देर बाद 6 पुलिस कर्मचारी अस्पताल में आए बाहर जाकर कुछ कार्यकर्ताओं ने उनसे बात की. उन्होंने कहा कि आप शांति के साथ बैठें, शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है. किसी प्रकार की कोई हरकत आपकी तरफ से ना हो, हमने भी उन्हें यह आश्वासन दिया कि कारसेवकों की तरफ से कोई अशांति नहीं फैलाई जाएगी. एक कार्यकर्ता हमसे बिछुड़ गए थे, रात्रि 10:30 बजे उनसे संपर्क हुआ. वे रात 11:00 बजे हमारे पास पहुंचे, उनके आने के बाद सभी कारसेवकों की बैठक हुई और सुबह अयोध्या के लिए प्रस्थान करने का निर्णय लिया गया. परंतु जैसे ही बैठक समाप्त हुई एक स्थानीय कार्यकर्ता ने आकर सूचना दी कि यह निर्णय लिया गया है कि सभी कार्यकर्ता सुबह अपने-अपने स्थानों के लिए प्रस्थान करेंगे. पूरे लखनऊ शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, इसलिए निर्णय हुआ कि सुबह 4:00 बजे 15-15 गज की दूरी से एक-एक कार्यकर्ता पंक्तिबद्ध हो रेलवे स्टेशन के लिए प्रस्थान करेंगे. 4:00 बजे इसी क्रम में चलते हुए 5:00 बजे तक कारसेवक लखनऊ चारबाग रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और वहां से सुबह 7:00 बजे कानपुर को जाने वाली रेलगाड़ी में सवार होकर वापिस अपने घरों के लिए चल पड़े. 10:00 बजे के लगभग गाड़ी कानपुर पहुंची और कानपुर से फिर गाड़ी बदल कर दिल्ली के लिए प्रस्थान किया. गाड़ियों में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के सैकड़ों कार्यकर्ता होने के कारण बहुत अधिक भीड़ थी. कारसेवक जब-जब गाड़ी स्टेशन पर रूकती, तब-तब कारसेवकों का यह बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान के नारे लगा रहे थे.
शाम 6:00 बजे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचे और वहां से रात्रि 8:00 बजे चलने वाली रेल से नारनौल के लिए प्रस्थान किया. नारनौल पहुंचते-पहुंचते रात्रि के 12:00 बज चुके थे. कोई साधन महेंद्रगढ़ के लिए नहीं था. लैंडलाइन पर फोन करके एक ठेकेदार का डंपर बुलवाया गया, उसमें सवार होकर रास्ते में पड़ने वाले गांव में कारसेवकों को उतार कर रात्रि 2:30 बजे हम भी अपने गांव पहुंचे.
आज 30 वर्ष बाद श्रीराम मंदिर निर्माण का स्वप्न पूरा हो रहा है. परंतु उस समय समाज के सभी वर्गों ने जो सहयोग व आस्था कारसेवकों के प्रति प्रदर्शित की थी, उसे याद कर मन में समाज के प्रति श्रद्धा का एक भाव स्वयमेव उत्पन्न हो जाता है. संपूर्ण समाज को वंदन, जिसके प्रयास से आज यह स्वप्न पूर्ण हो रह है.