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पथ निहारते नयन…. श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्य शुभारंभ – 2

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पिंकेश लता रघुवंशी

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन

असंख्य हिन्दुओं के आराध्य भगवान राम और आस्था के केन्द्र श्रीराम जन्मभूमि स्थान के विधर्मियों द्वारा विध्वंस को भला हिन्दू समाज कैसे सहता? अनेक संघर्ष छोटे और बड़े स्वरूपों में चलते रहे और लगातार पाँच सौ वर्षों से हर मन मानस यही स्वप्न संजोता कि अपने जीवन में वह श्री रामलला को अपने भव्य मंदिर में विराजमान होते हुए देखे. किंतु दुर्भाग्य अनेक पीढ़ियां ये स्वप्न अपने मन में संजोए ही चली गयी. मुगल गए अंग्रेज आए, अंग्रेज गए अपने आए. किंतु रामलला अपना स्थान न पा पाए. ये हिन्दू समाज की कायरता थी, सहिष्णुता थी, सहनशीलता थी या किसी चमत्कार की प्रतीक्षा थी, बहरहाल जो भी हो किंतु विश्व के एकमात्र सार्वभौमिक सत्य कि श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या है, उस सत्य को भी सत्य सिद्ध होने को संघर्ष करना पड़ा.

अब उस घटना का उल्लेख, जिस घटना ने रामजन्म भूमि आंदोलन को एक नयी दशा और दिशा दी और ये पूरा विवाद कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय भी इसी घटना पर आया था.

जब अचानक एक सुबह अयोध्या में गूंजा “भए प्रकट कृपाला”

२२ दिसंबर, १९४९ की रात मे एक ऐसी घटना होती है, जिससे दिल्ली तक हड़कंप मच जाता है. कुछ युवाओं की टोली ने मस्जिद के प्रांगण में भगवान राम की मूर्तियों को देखा और बताया कि मस्जिद में भगवान प्रकट हुए हैं. अगली सुबह पूरी अयोध्या में खबर फैल जाती है कि बाबरी मस्जिद में प्रभु श्रीराम प्रकट हुए हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पी.वी. नरसिमहा राव ने अपनी पुस्तक “अयोध्या ६ दिसंबर १९९२” में इस घटना के संबंध में लिखी गई एफ.आई.आर. का उल्लेख किया है. एस.एच.ओ. रामदेव दुवे ने एफआईआर में लिखा कि रात में ५०-६० लोग ताला तोड़कर दीवार फांदते हुए मस्जिद में घुस गए. वहां उन्होंने श्री रामचन्द्र जी की मूर्ति की स्थापना की, इतनी भीड़ के आगे सुरक्षा इंतजाम नाकाफी साबित हुए.

लिब्रहान आयोग में भी लिखा गया था कि काँस्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुवे को इस घटना के बारे में जानकारी दी. और अगली सुबह अयोध्या वासी बाबरी मस्जिद में मूर्ति प्रकट होने की खुशी में भये प्रकट कृपाला गा रहे थे.

सत्ता के गलियारों में मच गया था हड़कंप

सुबह होते ही जिस तेजी से ये खबर अयोध्या में फैली उतनी ही तेजी से दिल्ली पंहुच गई. तब प्रधानमंत्री थे पंडित जवाहर लाल नेहरु और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे गोविंद बल्लभ पंत. तब देश को आजादी तो मिल गई थी, किंतु संविधान अभी लागू नहीं हुआ था. धर्म निरपेक्षता अभी संवेधानिक ढांचे में नहीं थी.

लेकिन बिना किसी दुविधा के नेहरु ने पंत से बात कर अयोध्या में पूर्व स्थिति बहाल करने को कहा. फौरन ऊपर से आदेश आया, लेकिन उस समय फैजाबाद के डीएम के के. नायर ने उसे मानने से ही इनकार कर दिया. ऐसा करने पर उन्होंने कानून-व्यवस्था और बिगड़ने का हवाला दिया, साथ ही उन्होंने यह सुझाव भी दे डाला कि बेहतर होगा, अगर इसका निपटारा अब कोर्ट करे. सरकार को भी उनका सुझाव सही लगा और इस तरह ये मामला कोर्ट में पहुंच गया.

पूजा जारी रखने के लिए कोर्ट गए परमहंस

16 जनवरी 1950 को सिविल जज की अदालत में हिन्दू पक्ष की ओर से मुकदमा दायर कर जन्मभूमि पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को न हटाए जाने और पूजा की इजाजत देने की मांग की गई. दिगंबर अखाड़ा के महंत रहे परमहंस भी मूर्ति न हटाने और पूजा जारी रखने के लिए कोर्ट चले गए. कोर्ट ने उन्हें इसकी इजाजत दे दी. कई वर्षों बाद 1989 में जब रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने स्वयं भगवान राम की मूर्ति को न्यायिक व्यक्ति करार देते हुए नया मुकदमा दायर किया, तब परमहंस ने अपना केस वापस कर लिया.

आगे की अदालती कार्यवाही और कारसेवकों पर किये गए मुलायम सरकार के बर्बरता पूर्ण अत्याचार, रथयात्रा, शिलापूजन हर घटना सभी के समक्ष आज भी जीवंत है तो लेख की व्यापकता को न बढ़ाते हुए पाँच अगस्त की ये जो स्वर्णिम भोर जिसकी प्रतिक्षा में असंख्य आँखें पथरा गई थी, उस ऐतिहासिक पल का भावविभोर हो अभिनंदन करते हुए कुछ नाम अवश्य उल्लेखित करना चाहूंगी जो इस भूमिपूजन की वास्तविक नींव के पत्थर रहे.

शरद कोठारी और रामकुमार कोठारी, वासुदेव गुप्ता, राजेन्द्र धरकार, रमेश पांडेय जैसे अनेक हुतात्मा कारसेवक, जिन्होंने 1989 और 1992 के आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति दी. राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई करने वाले दाऊ दयाल खन्ना, राजमाता विजया राजे सिंधिया, परमहंस रामचंद्र, महंत अवैद्यनाथ, स्वामी वामदेव जी महाराज, प.पू. रज्जू भैय्या, मोरोपंत पिंगले, प.पू. कुपसी सुदर्शन, अशोक सिंघल जी, आचार्य गिरिराज किशोर, ओंकार भावे, मफल सिंह, जगद्गुरू पुरूषोत्तमाचार्य, महेश नारायण सिंह, श्रीशचन्द्र दीक्षित, ठाकुर गुरजन सिंह, ओम प्रकाश जी, बीएल शर्मा “प्रेम”, देवकीनंदन अग्रवाल जी सहित असंख्य जीवन जो आज के दिवस की नींव के पत्थर बने. अनेक ऐसे नाम जिन्होंने इस ऐतिहासिक दिवस को प्रत्यक्ष अपनी आँखों से निहारा – लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतंभरा जी, उमा भारती जी, बाबा सत्यनारायण मौर्य और भी असंख्य सौभाग्यशाली जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से अयोध्या भूमि से जुड़कर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ इस संघर्ष को साधना में परिलक्षित होने के साक्षी बने.

आज का दिवस वास्तव में भारतवर्ष के आत्मगौरव और परम वैभव पर पहुंचने के स्वप्न को साकार करने का दिवस है. सवा सौ करोड़ भारतीयों की आस्था, धैर्य, प्रतिक्षा, तपस्या के फलीभूत होने का दिवस है. जाग्रत आँखों से साकार होते स्वप्न के साक्षी बनने का दिवस है.
इति शुभम…..

(लेखिका बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल कार्यपरिषद, तथा विद्या भारती मध्यभारत प्रांत कार्यकारिणी की सदस्य हैं)

 

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