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भगिनी निवेदिता का शिक्षा दर्शन

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रेखा चुड़ासमा

ई.स. 1884 में मार्गरेट नोबल ने अपना शिक्षण व्यवसाय प्रारंभ किया, उसका परिचय पेस्टलोजी और फ्रोबेल द्वारा प्रतिपादित नई शिक्षा पद्धति से हुआ. 1895 में शिक्षा के संबंध में अपने स्वयं के विचारों के कार्यान्वयन हेतु मार्गरेट ने विम्बलडन में रस्किन स्कूल के नाम से स्वयं का विद्यालय प्रारंभ किया. अल्प समय में ही एक अच्छी शिक्षक और शिक्षाविद के रूप में मार्गरेट का नाम फैलने लगा. विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में लेख लिखने लगीं. उसकी बौद्धिक क्षमता के कारण वे लंदन के उच्च वर्ग में मानी जाने लगीं. धीरे-धीरे वह शिक्षा और साहित्यिक आंदोलन का केन्द्र बन गयी, जिसका परिणाम प्रसिद्ध सेसम क्लब के जन्म के रूप में हुआ. उनके बारे में वर्षों बाद उनके भाई ने लिखा – जहाँ भी वह गयी, एक लाइब्रेरी क्लब का उद्भव हुआ.

मार्गरेट नोबल बनी निवेदिता

स्वामी विवेकानंद ने मार्गरेट को हिन्दू धर्म में दीक्षित किया. मार्गरेट को मंदिर ले जाया गया और तब स्वामी जी ने उसे सिखाया कि शिव की पूजा किस प्रकार की जाती है. उसे ब्रह्मचर्य की शपथ दिलाई गयी और ‘निवेदिता’ नाम दिया गया, निवेदिता अर्थात् समर्पित. मार्गरेट नोबल जो बुद्धिमान विचारशील और आध्यात्मिक जिज्ञासु थी. वह एक ईसाई प्रवर्तक की पुत्री थी, फिर भी उन्होंने हिन्दू धर्म में दीक्षित होना चयन किया.

निवेदिता सबकी भगिनी

प्रशिक्षण अवधि के दौरान निवेदिता स्वामी विवेकानंद के साथ बालिकाओं के लिये विद्यालय के विषय में चर्चा करने में उत्साही रहा करती थी. स्वामी जी चाहते थे कि निवेदिता विद्यालय प्रारंभ करें. स्वामी जी के अनुसार एक बार आत्म त्याग की भावना आ जाए तो कार्य योजना एकीकृत हो जाती है और सफलता मिलती है. हिन्दू महिलाओं को वास्तविक शिक्षक बनने के लिए निवेदिता को स्वयं सर्वप्रथम एक हिन्दू महिला बनना पड़ेगा.

जब स्वामी जी को लगा कि निवेदिता विद्यालय चलाने के लिए प्रस्तुत हो गई है, तब स्वयं अपने परिचितों के निकट जाकर विद्यालय के प्रति समर्थन जुटाना पड़ता था. अंत में 12 नवम्बर, 1898 को विद्यालय प्रारंभ हुआ. श्री माँ शारदा उद्घाटन में आयी और अपना आशीर्वाद दिया. निवेदिता विद्यालय को फूलों से सजाती और छात्राओं से पवित्र माँ शारदा देवी के चरणों में फूल अर्पित करने को कहती. निवेदिता ने विद्यालय का नाम ‘रामकृष्ण बालिका विद्यालय’ रखा था.

कुछ पश्चिमी लोग इसे ‘विवेकानंद विद्यालय’ कहते और वहां के लोग उसे ‘भगिनी निवेदिता विद्यालय’ के नाम से जानते थे.

शिक्षिका के रूप में निवेदिता

जब निवेदिता ने सलाह मांगी तो स्वामी जी बोले – तुम स्वयं निर्देशित हो. तुम सब कुछ अपनी छात्राओं से ही सीखने वाली हो. निवेदिता ने अपने विचारों को नहीं थोपा पर देखा कि ज्ञात सांस्कृतिक विषयों के माध्यम से लड़कियां स्वाभाविक रूप से विकसित होने लगीं. निवेदिता ने छात्राओं के क्रियाकलापों, व्यवहार, भाषा, पोशाक, शिक्षा, संगीत सहित सभी द्वारा उनके मस्तिष्क में राष्ट्रीय विचारों की छाप छोड़ने का प्रयास किया. उन्होंने विद्यालय में प्रतिदिन वंदेमातरम् का गायन प्रारंभ कराया. उन्होंने अपनी छात्राओं में यही श्रद्धा विश्वास मन में बिठाने का प्रयास किया कि राष्ट्रीय उद्देश्य को वे उतनी ही गहराई से समझें.

वह चाहती थीं कि जब आवश्यकता हो तो उनकी छात्राएँ भी कठोर होना सीखें क्योंकि नाजुक होना उसकी जन्मजात प्रवृत्ति है. बुराई के नाश के लिए नम्र बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए. वह प्रयास करती थी कि उन्हें देश की घटनाओं की जानकारी हो. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के भाषणों को सुनने उच्च कक्षा की छात्राओं को एक गाड़ी में लेकर जाती थीं. एक दिन आचार्य जगदीशचन्द्र बोस की पत्नी अमला बोस उनके विद्यालय आयीं, तब छात्राओं ने “बंग आभार जननी आमर” गीत गाया. जब बालिकाएं गा रही थीं, तब प्रसन्नता के आंसू उनकी आँखों में टपकने लगे. कलकत्ता में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ तो निवेदिता ने अपनी छात्राओं से कशीदाकारी कर राष्ट्रीय ध्वज का नमूना बनाने को कहा. उनके अनुसार भगवा रंग भारत की आध्यात्मिक परंपरा को दर्शाता है. अतः उस ध्वज का रंग भगवा था.

शिक्षा मात्र जानकारी देना नहीं, परंतु अपने देश के महापुरूषों के लिए तीव्र भावना को जगाना भी है. निवेदिता इन भावों से परिपूर्ण थी. भारत का इतिहास उनकी कल्पना शक्ति और वर्णन के माध्यम से जीवंत हो उठता था.

निवेदिता बहुत इच्छुक थी कि छात्राएं अपनी मातृभाषा अच्छे से सीखें. वे स्वयं छोटे-छोटे बांग्ला शब्दों को सीख लेती थी.

भारत में शिक्षा केवल राष्ट्रीयता हेतु नहीं, अपितु राष्ट्र निर्माण के लिये होनी चाहिए. हमारे बच्चों को राष्ट्र और देश की चिंता से ही घिरे रहना चाहिए. उनसे हमें भारत के लिए बलिदान मांगना चाहिए, भक्ति मांगनी चाहिए, ज्ञान मांगना चाहिए. अपने लिये आदर्श और भारत के लिए भारत यह उनके जीवन का उद्देश्य होना चाहिए.

कार्य का कोई भी क्षेत्र हो भारत की भलाई और भारतीय चेतना का जागरण उनकी सर्वोपरि चिंता थी. वह चाहती थी कि स्वामी विवेकानंद की दृष्टि को समझने और उसका प्रचार करने वाले शिक्षाविदों की योजना बनाई जाए. उन्होंने स्पष्ट किया – शिक्षा केवल बच्चों के लिए ही अच्छी नहीं, वरन् यह देश-धर्म के लिये भी अच्छी है. यह विचार शिक्षाविदों के मस्तिष्क में सदैव रहना चाहिए.

शिक्षा हेतु निवेदिता की अनेकों योजनाएं थी. सरकारी विरोध के बावजूद वे चाहती थीं कि राष्ट्रीय शिक्षा को उन्नत करने के लिये हमारे विद्यालय भारतीयों के लिए प्रशिक्षण संस्थान होने चाहिए. उनका एक विचार लड़कों के लिए एक छात्रावास बनाना था. लड़के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करेंगे और छः माह देश का भ्रमण करेंगे जिससे उनके भीतर देश का ज्ञान और उसके प्रति देश प्रेम उत्पन्न हो. जब रविन्द्रनाथ टैगोर ने शांति निकेतन प्रारंभ किया, तब निवेदिता विद्यालय की छात्राएँ वहाँ की अधिकांश महिला शिक्षिकाएँ बनीं.

भारत भक्त निवेदिता

एक दिन निवेदिता ने अपनी छात्राओं से पूछा भारत की रानी कौन है? छात्राओं ने उत्तर दिया महारानी क्वीन विक्टोरिया. स्पष्टतः निवेदिता उनके इस उत्तर को सुन परेशान दिखीं. वे दुखी भी थीं और क्रोधित भी. चिल्ला कर वह बोली – तुम लोग जानते ही नहीं हो कि भारत की रानी कौन है. फिर स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा – देखो, इंग्लैण्ड की महारानी भारत की रानी कभी नहीं हो सकती. तुम्हारी महारानी है सीता रानी. सीता रानी भारत की सनातन महारानी है. स्वामी जी ने निवेदिता को समझाया था कि महिलाओं की शिक्षा में त्याग और सेवा के हमारे परंपरागत आदर्शों से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए. भारत की महिलाओं की शिक्षा की आवश्यकता है. पर सबसे पहले त्याग और सेवा के आध्यात्मिक आदर्शों को रखना पड़ेगा. निवेदिता ने स्वामी जी के इन निर्देशों का हृदय और आत्मा से पालन करने का प्रयास किया.

रविन्द्रनाथ टैगोर ने निवेदिता से आग्रह किया था कि वे उनकी पुत्री को अंग्रेजी की शिक्षा दें. परंतु निवेदिता ने उन्हें कहा – विदेशी आदर्शों और मानकों को लादने का क्या औचित्य है? मेरे मत से उचित शिक्षा का तात्पर्य है, व्यक्ति की जो योग्यता उसमें छिपी है, उसे बाहर निकलने देना चाहिए. अतः वे अंग्रेजी शिक्षा देने के लिये तैयार नहीं हुई क्योंकि वे इस भूमि पर भारतीय नारी को अंग्रेजी भाषा और संस्कृति सिखाने नहीं आई थी. निवेदिता के कार्य का क्षेत्र सर्वथा राष्ट्रहित था.

निवेदिता भारत के लिये दृष्टिकोण

निवेदिता ने सदैव जोर दिया कि भारत एक है और उन्हें लगता है कि सब भारतीय इस सत्य पर प्रतिदिन कुछ मिनटों के लिए विचार करें तो भारत महान शक्ति संपन्न बनेगा और कोई उसे हानि नहीं पहुँचा सकेगा.

निवेदिता ने कहा – “मैं विश्वास करती हूँ कि उस शक्ति ने जो वेदों और उपनिषदों, धर्मों और साम्राज्यों के निर्माण में विद्वानों की सीख में, संतों के ध्यान में है, एक बार पुनः जन्म लिया है और उसका नाम है राष्ट्रीयता. मेरा विश्वास है कि भारत के वर्तमान की जड़ें उसके भूतकाल में गहरी जमी हैं और यह कि उसके समक्ष एक उज्ज्वल भविष्य है.”

जीवन के हर आयाम में उनका भारत के प्रति गहन प्रेम झलकता था. वे अग्नि सदृश्य क्रांतिकारी थी. श्री अरविंद उन्हें ‘अग्नि शिखा’ कहते थे. वह एक योगिनी भी थी. वे एक शिक्षाविद् तथा कला समालोचक भी थी. रविन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘महाश्वेता’ कहते थे. भगिनी निवेदिता को ‘लोकमाता’ का भी उपनाम मिला.

(लेखिका विद्या भारती में बालिका शिक्षा की अखिल भारतीय संयोजिका हैं.)

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