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समाज सुधारक वीर सावरकर

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स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर (28 मई, 1883 से 26 फरवरी, 1966) निडर स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, लेखक, नाटककार, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे. उनके साहित्य का एक बड़ा हिस्सा मराठी में है, इस कारण उनके विचार महाराष्ट्र के बाहर काफी हद तक अज्ञात हैं. सावरकर जी को क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और हिन्दुत्व के प्रतिपादक के रूप में जाना जाता है. यह व्यापक रूप से ज्ञात नहीं है कि वह एक समाज सुधारक भी थे, और उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है.

सावरकर जी ने अपने विचारों, और कार्यों के माध्यम से समाज सुधार के लिए अभियान चलाया. सावरकर जी एक ऐसा मंदिर करना चाहते थे जो सभी जातियों के लिए स्वतंत्र रूप से खुला हो. माघ वाद्य 14 (महाशिवरात्रि) के दिन यानि 10 मार्च, 1929 को शंकराचार्य डॉ. कुर्ताकोटि ने इस मंदिर की आधारशिला रखी थी. पतित पावन मंदिर सामाजिक सुधार के प्रति सावरकर जी की आजीवन प्रतिबद्धता का प्रतीक है.

सावरकर जी अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के विचार के सख्त खिलाफ थे. उनके हिसाब से अस्पृश्यों के लिए अलग और विशिष्ट नए मंदिरों का निर्माण अस्पृश्यता उन्मूलन का सही तरीका नहीं है. मंदिरों की क्या बात करें, अछूतों के लिए अलग स्कूल होना भी एक अर्थ में हानिकारक है, छुआछूत से अछूतों की मुक्ति अकेले उनकी नहीं है, यह उन स्पृश्यों की मुक्ति भी है जिनके हाथ और दिमाग इस अन्याय से मैले हो गए थे. सावरकर जी का मानना था कि अछूतों के लिए अलग व अनन्य मंदिरों के निर्माण के बजाय सभी हिन्दुओं के लिए स्वतंत्र रूप से जाति का भेदभाव किए बिना मंदिरों का निर्माण करना वांछनीय है. जहां नए पैन-हिन्दू मंदिरों का निर्माण महत्पूर्ण है, वहीं पुराने मंदिरों को भी सभी हिन्दुओं के लिए खोलना उतना ही महत्वपूर्ण है. (1929, समग्र सावरकर वांग्मय, खंड 3, पृ. 491-493)

उन्होंने अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए परिश्रम किया. उनका मत था कि, “किसी को भी कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि एक निश्चित हिन्दू जाति उच्च है या वह दूसरी नीची है. उच्च और निम्न की धारणा व्यक्तियों की प्रत्यक्ष योग्यता द्वारा निर्धारित की जाएगी, प्रत्येक हिन्दू बच्चे के जन्म के समय केवल एक जाति होती है – हिन्दू. इसके अलावा किसी अन्य उप-जाति पर विचार न करें. ‘जन्मना जायते हिन्दूहु’ (‘प्रत्येक व्यक्ति जन्म से हिन्दू है’)! वास्तव में, प्रत्येक मनुष्य की जन्म के समय केवल एक ही जाति होती है – मानव.” (1930, जतुच्छेदक निबंध या जाति के उन्मलून पर निबंध, समग्र सावरकर वांग्मय, खंड 3, पृ. 479)

वे सनातन धर्म का अर्थ बताते हैं – “जब हम ‘सनातन’ शब्द को ‘धर्म’ से जोड़ते हैं, तो हम इसे उन सिद्धांतों और दर्शनों पर लागू करते हैं जो ईश्वर, व्यक्ति और सृष्टि (ईश्वर, जीव और सृष्टि) के बीच प्रकृति और पारिस्परिक संबंध को उजागर करते हैं. प्रथम सिद्धांत (आदिशक्ति) की प्रकृति के लिए, सृष्टि का प्रथम कारण और प्रथम नियम वास्तव में सनातन, शाश्वत हैं और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं.

1923 में, वीर सावरकर जी ने रत्नागिरी जेल में अपनी मौलिक पुस्तक ‘एसेंशियल ऑफ हिन्दुत्व’ लिखी, जहां उन्हें अंदमान से भारतीय मुख्य भूमि पर लाए जाने के बाद लगभग दो साल तक रखा गया था. वीर सावरकर जी ने मराठी और अंग्रेजी में “1857 – भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध” इस प्रेरणादायक और दिलचस्प काम के माध्यम से एक सशस्त्र संघर्ष को प्रेरित किया.

Prachi Bandaram

Reference – www.savarkar.org

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