अतुल कोठारी
सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
शून्य और अनंत (इन्फिनिटी) जैसी गणितीय खोजें न हुई होतीं तो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के जिन शिखरों पर मानव सभ्यता आज खड़ी है, वहां तक पहुंचना शायद संभव न हो पाता. इन खोजों के बिना मंगल तक पहुंचने, चांद और धरती के बीच की दूरी का अंदाजा लगाने या फिर समुद्र की गहराई नापने जैसे कार्यों को अंजाम देना आसान नहीं था. गणित की इन असाधारण खोजों की बदौलत ही दुनिया भारत के गणितज्ञों के समक्ष नतमस्तक होती है. श्रीनिवास रामानुजन ऐसे ही एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्होंने अनंत या इन्फिनिटी से दुनिया का परिचय कराया, तो गणित के विद्वान हैरान हो गए.
रामानुजन ने 32 वर्ष 4 मास एवं 4 दिन के छोटे से जीवनकाल में गणित के क्षेत्र में जो कार्य किया, उसे सिद्ध करने के लिए दुनियाभर के गणित के विद्वान आज भी जुटे हुए हैं. उन्होंने 13 वर्ष की उम्र से ही अनुसंधान कार्य शुरू किया और 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने कार्य को नोटबुक में लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने 16 वर्ष की आयु में विख्यात गणितज्ञ जी.एस.कार. की पुस्तक में से ज्यामिति एवं बीजगणित के प्रमेय एवं सूत्र हल कर लिए थे और 25 वर्ष की आयु में त्रिघात एवं चतुर्घात समीकरण हल करने के तरीके खोज निकाले थे.
श्रीनिवास रामानुजन के शोध कार्यों का पार्टिकल फिजिक्स, कम्प्यूटर साइंस, क्रिप्टोग्राफी, पॉलिमर कैमिस्ट्री, परमाणु भट्टी, दूरसंचार, कम्युनिकेशन नेटवर्क, घात, न्यूक्लियर फिजिक्स, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों में प्रयोग हो रहा है. उनके तीन हस्तलिखित नोटबुक टाटा इन्स्ट्रीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ने प्रकाशित किए हैं. उन्होंने अंतिम दिनों में जो कार्य किया था, वह अप्रैल 1976 में अमेरिका की विस्कोन्सीन यूनिवर्सिटी के विजीटिंग प्रो. जार्ज एन्ड्रयुज को ट्रिनिटी कॉलेज की पुस्तकालय में से अचानक 140 पृष्ठ मिल गये. प्रो. एन्ड्रयुज ने इन सारे पेपर को “The lost note book of Ramanujan” के नाम से प्रकाशित किया. जिस पर आज भी दुनिया के महान गणितज्ञ कार्य कर रहे हैं. कुछ समय पूर्व अमेरिका के गणितशास्त्री ने रामानुजन के अंतिम पत्र में भेजे फॉर्मूले को सिद्ध कर लिया है, ऐसा दावा किया है.
तमिलनाडु के इरोड में 22 दिसम्बर, 1887 को जन्मे रामानुजन का परिवार आर्थिक रूप से बेहद साधारण था. 11वीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद परिवार की आवश्यकता के कारण वह ट्यूशन पढ़ाने लगे. विवाह के बाद उनको कई स्थानों पर नौकरी हेतु भटकना पड़ा. उस दौरान उनकी भेंट डिप्टी क्लेकटर रामास्वामी अय्यर, प्रो. पी.वी. शेषु अय्यर, सी.वी. राजगोपालचारी, रामचंद्र राव जैसे विद्वानों से हुई और उन सभी के सहयोग से नौकरी के साथ-साथ गणित का कार्य भी वह करते रहे.
उनके जीवन में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रो. हार्डी की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण थी. उन्होंने रामानुजन का गणितीय शोध कार्य देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गए और उन्हें इंग्लैंड बुला लिया. वहां पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो के रूप में रामानुजन को प्रवेश कराने से लेकर छात्रवृत्ति दिलाने एवं अध्ययन तथा शोध कार्य में भी प्रो. हार्डी ने सहयोग किया. रामानुजन वर्ष 1914 से 1919 तक इंग्लैंड में रहे. प्रथम विश्वयुद्ध के कारण गणित के कार्य में रुकावट, खानपान में कठिनाई (रामानुजन पूर्णतः शाकाहारी थे), अत्यधिक ठंड के कारण बीमारी आदि समस्याओं के बीच उन्होंने 37 शोधपत्र प्रस्तुत किए.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से रामानुजन को 19 मार्च, 1916 को स्नातक की उपाधि दी गई. 6 दिसम्बर, 1917 को “फेलो ऑफ लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी” तथा फरवरी, 1918 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के सदस्य के रूप में वह नियुक्त हुए. मई, 1918 में उन्हें “फेलो ऑफ रॉयल सोसायटी” बनने का सम्मान प्रथम भारतीय के रूप में प्राप्त हुआ. 13 अक्तूबर, 1918 को वह ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने गए.
असाध्य बीमारी के कारण उनको भारत वापस लौटना पड़ा. पर उनकी गणित की साधना चलती रही. उनसे मिलने के लिए आते हुए रास्ते में प्रो. हार्डी सोच रहे थे कि रामानुजन का स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह गणित की कोई बात नहीं करेंगे. उन्हें लग रहा था कि ऐसे मौके पर कुछ हल्की-फुल्की बातें करना ही अच्छा रहेगा. रामानुजन से मिलने पर उन्होंने कहा कि मैं जिस टैक्सी से आया हूं, उसका नम्बर 1729 था, जो अपशगुन संख्या है. रामानुजन ने तुरंत कहा – ऐसा नहीं है, यह छोटी से छोटी संख्या है, जिसे दो भिन्न रूपों में दो संख्याओं के घन के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है. वह इस प्रकार है – 103 + 93=123+13.
वर्ष 1921 में हंगेरी के प्रसिद्ध गणितज्ञ ज्योर्ज पोल्या ने प्रो. हार्डी से रामानुजन की नोटबुक कार्य करने के लिए ली थी. कुछ दिनों के बाद उन्होंने प्रो. हार्डी को नोटबुक वापस करते हुए कहा कि मैं इसके परिणामों को सिद्ध करने के मायाजाल में फंस गया तो मेरा पूरा जीवन इसी में बीत जाएगा और मेरे लिए कोई स्वतंत्र शोध कार्य करना संभव ही नहीं होगा. प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं दार्शनिक बट्रेड रसेल ने कहा कि प्रो. हार्डी एवं प्रो. लिटिलवुड ने “एक हिन्दू क्लर्क” में दूसरे न्यूटन को खोज निकाला”.
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था – पूरे विश्व के गणितज्ञों के लिए रामानुजन निरंतर प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं. प्रो. हार्डी के अनुसार, उन्होंने मेरे जीवन को समृद्ध बनाया और मैं उनको कभी भूलना नहीं चाहता. प्रो. हार्डी ने तत्कालीन गणित के विद्वानों को अंक दिए, जिसमें 100 में से स्वयं को 25, लिटिलवुड को 30, जर्मन गणितज्ञ हिलवर्ड को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए थे. मृत्यु के दो मास पूर्व (12 जनवरी, 1920) को उन्होंने प्रो. हार्डी को अंतिम पत्र लिखा, उसमें भी उन्होंने “मॉक थीटा फंक्शन” पर मिले परिणामों को भेजा था.
वर्ष 2011 में श्रीनिवास रामानुजन के 125वें जन्मदिवस के मौके पर उस वर्ष को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया था. तभी से भारत में 22 दिसम्बर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है. हालांकि, श्रीनिवास रामानुजन के कार्यों पर भारत में शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
इसी दृष्टि से राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भारतीय ज्ञान परम्परा को शिक्षा के हर स्तर पर समावेश करने एवं शोध कार्य को बढ़ावा देने हेतु “राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान” स्थापित करने की बात कही गई है.