डॉ. कुमार विश्वास
कोरोना-काल ने हमें अपने तेज गति वाले जीवन में ज़रा ठहर कर सोचने का समय दिया है. यह वह समय है, जब हम अपने-अपने घरों की अलमारियों में प्राप्त और पर्याप्त के बीच का अंतर समझ सकते हैं. हम सबको अपनी तीव्र इच्छा को नज़दीक से देखने का अवसर मिल रहा है. भय और अनिश्चितता में गुजर रहे हम सबके जीवन को आज एक संबल चाहिए. एक ऐसा सहारा जो जीवन की समस्त परिस्थितियों में हमें आश्वस्त रहने का मार्ग दिखा सके. एक ऐसा नायक जो जीवन के गहरे अंधेरे को सूर्य की भांति भेदने में समर्थ हो. भारतीय संस्कृति में अवतार की धारणा के केंद्र में भी यही आवश्यकता है.
अवतार ईश्वर की बनाई सृष्टि में मनुष्यता द्वारा दिव्यता के प्रति परम भरोसे का पावनतम प्रतीक है. जब दुनिया प्रतिकूलताओं से जूझ रही हो, निराशा के बादल मन को निरंतर विचलित कर रहे हों तो ऐसे समय में सूर्य-वंशी भगवान राम अत्यंत प्रासंगिक हो जाते हैं. राम एक ऐसे भगवान हैं जो दुःख से दूर होने की कोरी कल्पनाओं को पुष्ट करने के बजाय दुख जैसी मन:स्थिति के कुशल प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त करते हैं. राम कथा मनुष्यता की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इम्यूनिटी को बढ़ाती है.
रामकथा भी कहती है –
एक बान काटी सब माया.
जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया….
यह ‘एक बाण’ सात्विकता का है, यह एक बाण अपने पौरुष और संकल्प में एक सुदृढ़ भरोसे का है. यह ‘एक बाण’ बुराइयों के सम्मुख अच्छाइयों की समग्रता का है. ‘रमेति इति राम:’ राम का अर्थ बंधन मुक्त होकर परम चेतना के आकाश में रमण करने से है. सोचिए ऐसी स्थिति कहां संभव हो सकती है? बंधन मुक्त होकर रमण करने वाले नारायण का अवतार कहां होगा? इसका उत्तर भी राम के पिता महाराज दशरथ के नाम में है. ‘दशरथ’ का अर्थ है – दश रथों का नियंता यानि जो व्यक्ति पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों के बीच एक सम्यक संतुलन कायम कर सकता है, वही दशरथ है. परमात्मा उसे ही अपने प्रकट होने का माध्यम बनाएंगे. इस सम्यक संतुलन को कुशलता पूर्वक जो धारण करने की सामर्थ्य रखे ऐसी कौशल्या के घर में ही राम पैदा होंगे.
राम स्वयं एक जीवन दृष्टि हैं. वह अपनी कृपा-दृष्टि भर से सब कुछ सही कर देने का दावा नहीं करते, बल्कि अपने मर्यादित पौरुष से सब कुछ संभालने की कला सिखाते हैं. विवेकानंद जी ने कहा था, ‘अगर ईश्वर मनुष्य बन सकता है तो किसी दिन मनुष्य भी अवश्य ही ईश्वर बनेगा.‘ श्रीराम इसी सपने के आधार बिंदु हैं. राम का चरित्र साधनहीन साधारण पद्धतियों का असाधारण आत्मविश्वास है. राम इस बात के प्रतीक हैं कि सोने के क़िले और प्रकृति-पुत्रों के बीच युद्ध में सदा जनवर्ग ही जीतता है. रामकथा के प्रतीक-शास्त्र के अनुसार अयोध्या शांति का प्रतीक है, किष्किन्धा प्रकृति से सहकार का प्रतीक है और लंका परम वैभव का प्रतीक है. रामकथा यह बताती है कि शांति द्वारा परम वैभव को भी प्रकृति के साहचर्य के सहारे बड़ी सहजता से पराजित किया जा सकता है.
राम का पूरा सैन्यबल लोक कौशल का अद्भुत संग्रह है. युद्ध राम का है, लेकिन एक मामूली वानर भी रावण को पराजित करने के लिए नख और दांतों के सहारे भिड़ा है. विश्व के सबसे बड़े योद्धा को पराजित करने के लिए राम पड़ोसी राजाओं की मदद लेने के बजाय वंचितों और वनवासियों पर भरोसा करते हैं. राम की सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि वे कहीं भी अति चमत्कारिक नजर नहीं आते. वे मानवीय भावनाओं से लड़ने के बजाय उनका सम्मान करना सिखाते हैं.
वे समस्त मानव-जाति को अपने मूल स्वभाव में स्थित रहकर देवत्व के बराबरी तक पहुंचने की राह दिखाते हैं. राम मानवों के लिए दुख की स्थिति को एक शाश्वत सच की तरह स्वीकार करते हैं और पूरी कुशलता से उसे जीकर दिखाते हैं. राम पर बात करने के लिए अक्सर मेरे ऊर्जा सत्र के तीन घंटे भी कम पड़ जाते हैं. आज भी इस प्रिय कविता की कुछ लाइनों के साथ इस श्रीरामचर्या का समापन यहीं करता हूं….,
राम आराध्य भी हैं और आराधना भी! राम साध्य भी हैं और साधना भी!
राम मानस भी हैं और गीता भी! राम राम भी हैं और सीता भी!
राम धारणा भी हैं और धर्म भी! राम कारण भी हैं और कर्म भी!
राम युग भी हैं और पल भी! राम आज भी हैं और कल भी!
राम गृहस्थ भी हैं और संत भी! राम आदि भी हैं और अंत भी!
यहां यूरोप जैसा अवसाद नहीं क्योंकि हमने भावनात्मक सबलता राम से सीखी
मैं यूरोप के सारे देशों में घूमा हूं, रोम देखा है, लंदन की गर्वीली गलियों में कई सुंदर शामें बिताई हैं. अपार वैभव और अगाध संपन्नता वाले ये सारे देश कोरोना-काल में त्राहि-त्राहि कर रहे थे. संपन्नता के शिखर पर बैठे लोग कोरोना काल में बीमारी से ज्यादा अवसाद की वजह से परेशान दिखे. हमारे देश में उन देशों जैसी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं. बावजूद इसके हमारे यहां लोग अवसाद के शिकार नहीं हुए. हमने संकट की इस घड़ी में भी अपने पड़ोसियों का हाथ थामे रखा, अपने आर्थिक अभाव के बावजूद दूसरों को उनकी विपन्नता के दंश से यथासंभव बचाया.
साधनों की न्यूनता के बीच भावनात्मक रूप से सबल होने का यह राज भारत के लोगों ने अवश्य ही रामकथा से सीखा होगा. लॉकडाउन को अभिशाप मानती दुनिया इसे बंधन की तरह समझ रही है, लेकिन रामकथा यह सिखाती है कि बंधन में होना बाध्य होना नहीं है. मां सीता भी जब रावण की अशोक वाटिका में थीं तो वह बंधन में थीं, पर क्रूर मानसिकता की उस राजधानी में होने के बाद भी मां सीता की सात्विकता बल आरोपित वैभवशाली तामसिकता के सम्मुख बाध्य नहीं थी. यही कारण है कि आज कोरोना काल में रामकथा अत्यंत प्रासंगिक है. यह इस भीषण संकट में आत्मबल सुरक्षित रखने का रहस्य खोलती है.
आज जिस आत्मानुशासन की जरूरत, राम उस कौशल के सिद्ध महारथी
आज अगर कोरोना को खर-दूषण की संज्ञा दी जाए तो बस हमें इतना ही ध्यान रखना है कि ये खर-दूषण हमारी आध्यात्मिक चेतना का अपहरण ना कर पाए. राम ने पूरे युद्ध के दौरान विचलन के भीषण क्षणों में भी परिस्थितियों को अपनी चेतना का अपहरण नहीं करने दिया. सात्विकता पर अटल श्री राम ने सामने वाले को लगातार अमर्यादित देखने के बाद भी अपनी मर्यादा निष्ठा कायम रखी. आज कोरोना से लड़ने के लिए भी हमें इसी नीति का पालन करना पड़ेगा. साधनों पर निर्भर होने और उनकी संख्या बढ़ाने से कुछ विशेष नहीं हो सकता क्योंकि इतनी बड़ी आबादी में हर व्यक्ति के लिए एक विशेष डॉक्टर उपलब्ध कराना असम्भव सा है.
यह लड़ाई तो हमें अपने निजी संयम और आत्मानुशासन के बल पर ही लड़नी पड़ेगी. लोक को अपनी रक्षा के लिए मर्यादित और स्वयं सतत सन्नद्ध रहना पड़ेगा. भगवान राम इसी मर्यादा और आत्म संयम से उपजे कौशल के सिद्ध महारथी हैं. फारसी में एक मुहावरा है ‘राम कर्दन’ इसका अर्थ होता है – ‘प्रेम से वशीभूत कर लेना.’ भगवान राम को प्रेम सबसे अधिक प्रिय है. राम अपने पूरे जीवन में सिर्फ प्रेम के ही वशीभूत हुए हैं. गोस्वामीजी तो कहते हैं कि – ‘रामहि केवल प्रेम पियारा.’ यह प्रेम ही रामकथा का सार है जो हिंदुस्तानी मान्यताओं से दूर फारसी संस्कृति में भी राम का पर्याय है.
साभार – दैनिक भास्कर
https://www.bhaskar.com/national/news/ram-is-the-immunity-booster-of-humanity-leading-the-way-to-efficient-management-in-crisis-128433665.html