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श्रीराम मंदिर – भव्य ही नहीं, सामाजिक समरसता, एकात्मता, स्वाभिमान का प्रतीक भी होगा

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नई दिल्ली. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हमारे राष्ट्र पुरुष हैं. श्रीराम ने सामाजिक समरसता और सशक्तिकरण का संदेश स्वयं के जीवन से दिया. भगवान श्रीराम के जीवन में अहिल्या उद्धार, शबरी और निषादराज से मित्रता व प्रेम सामाजिक समरसता के अनुपम उदाहरण हैं.

इसी प्रकार श्रीराम जन्मभूमि पर बनने वाला भव्य मंदिर भी सामाजिक समरसता एकात्मता, स्वाभिमान का प्रतीक होगा. इसी दृष्टि से सन् 1989 में श्रीराम जन्मभूमि के शिलान्यास कार्यक्रम में अनेक पूज्य संतों की उपस्थिति में अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल के कर कमलों से संपन्न हुआ था, जो आज श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास के न्यासी भी हैं.

05 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्य के शुभारंभ का कार्यक्रम संपन्न हुआ. प्रधानमंत्री के करकमलों से पूजन विधि संपन्न हुई, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक भी उपस्थित थे. कार्यक्रम में विशेष रूप से भारत में जन्मे विभिन्न पंथ संप्रदायों के प्रमुखों को भी आमंत्रित किया गया था. वृहद भारतीय समाज सभी घटकों के साथ श्री राम मंदिर की नींव के निर्माण में लग सके. इसके अलावा देशभर से पवित्र स्थानों से मिट्टी व जल भी मंगवाया गया था. जिनका उपयोग मंदिर निर्माण में होगा. यह भारत माता की गोदी में पली-बढ़ी समस्त आस्थाओं को समाहित करने वाला और सारे समाज में समरसता का प्रसार करने वाला होगा.

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर निर्माण कार्य शुभारंभ कार्यक्रम में 36 परंपराओं, पंथ-संप्रदायों के संतों को बुलाया गया था. जिनमें दशनामी सन्यासी परंपरा, रामानुज, निंबार्क, वल्लभ, कृष्ण प्रणामी आदि संप्रदाय निर्मले संत, लिंगायत, रविदासी संत, जैन, सिख, मत पंथ, स्वामीनारायण, चिन्मय मिशन, रामकृष्ण मिशन एकनाथी, वनवासी संत, सिंधी संत, रामानंदी वैष्णव, माधवाचार्य, रामस्नेही, उदासीन, कबीरपंथी, वाल्मीकि संत, आर्य समाजी, बौद्ध, नाथ परंपरा, गुरु परंपरा, आचार्य सभा के प्रतिनिधि, संत कैवल्य ज्ञान, इस्कॉन, वारकरी, बंजारा संत, आदिवासी गौण, भारत सेवाश्रम संघ, संत समिति एवं अखाड़ा परिषद के नाम शामिल थे.

ऐसे ही हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति, अपने धर्म विचार को इंगित करने वाले हजारों पवित्र तीर्थ क्षेत्रों की पावन माटी एवं पवित्र नदियों का जल, श्रीराम जन्मभूमि पूजन हेतु, देशभर से आया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उद्गम स्थल नागपुर, संत रविदास जी की काशी स्थित जन्मस्थली, सीतामढ़ी उत्तर प्रदेश से महर्षि वाल्मीकि आश्रम की, विदर्भ (महाराष्ट्र) के गोंदिया जिलान्तर्गत काचारगड, झारखंड के रामरेखाधाम, मध्यप्रदेश के टंट्या भील की पुण्य भूमि की, श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर पंजाब की, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जन्मस्थान महू की, दिल्ली के जैन लाल मंदिर की, वाल्मीकि मंदिर की (जहां महात्मा गांधी 72 दिन रहे थे), आदि कुछ उदाहरण हैं, जहां की मिट्टी और जल पूजन के लिए अयोध्या लाए गए थे. पूरे देश से लगभग 1500 से भी अधिक स्थानों से पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थलों की मृदा (मिट्टी) तथा 2000 से भी अधिक स्थानों व देश की 100 से भी अधिक पवित्र नदियों एवं सैकड़ों कुण्डों का जल देश के कोने-कोने से रामभक्तों द्वारा लाया गया था.

आज 500 वर्ष के अनवरत संघर्ष और प्रतीक्षा के पश्चात आज वह घड़ी आई, जब हमारा स्वप्न पूर्ण होने वाला है. मात्र अयोध्या या भारतवर्ष ही नहीं, अपितु समस्त विश्व के आस्थावान हिन्दू समाज के लिए यह अत्यंत गौरव का पल है.

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