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स्टैन स्वामी ने देश में अशांति पैदा करने की साजिश रची, न्यायालय ने जमानत देने से इंकार किया

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मुंबई. भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े में मामले में गिरफ्तार पादरी स्टैन स्वामी की जमानत याचिका एनआईए की विशेष अदालत ने खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि स्टैन स्वामी ने प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के साथ मिलकर देश में अशांति पैदा करने एवं सरकार को गिराने की साजिश रची थी. एनआईए की ओर से प्रकाश शेट्टी ने न्यायालय में पक्ष रखा.

जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि याचिका पर उनका आदेश रिकॉर्ड में आई सामग्री पर आधारित है. तथ्यों से स्पष्ट होता है कि स्टैन स्वामी प्रतिबंधित माओवादी संगठन का सदस्य है. न्यायालय ने जिस सामग्री का हवाला दिया है, उसमें लगभग 140 ई-मेल की जानकारी भी शामिल है. ये ई-मेल स्वामी और अन्य आरोपियों ने आपस में भेजी हैं.

इन ई-मेल में उन्हें मरेड कहकर संबोधित किया गया है और स्वामी को मोहन नाम के एक कॉमरेड से माओवादी गतिविधियां बढ़ाने के लिये आठ लाख रुपये मिले. ‘प्रथम दृष्टया यह कहा जा सकता है कि आवेदक ने प्रतिबंधित संगठन के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर पूरे देश में अशांति पैदा करने और सरकार को राजनीतिक रूप से और ताकत का उपयोग कर गिराने के लिए साजिश रची थी.’ न्यायालय में प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर न्यायाधीश ने अपने आदेश में टिप्पणी की.

आदेश में कहा कि – ‘रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि आवेदक न केवल प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का सदस्य था, बल्कि वह संगठन के उद्देश्य के अनुसार गतिविधियों को आगे बढ़ा रहा था जो राष्ट्र के लोकतंत्र को खत्म करने के अलावा और कुछ नहीं है.’

स्वामी को अक्तूबर 2020 को रांची से गिरफ्तार किया गया था और तब से वह नवी मुंबई की तलोजा केंद्रीय जेल में बंद है.

स्वामी ने पिछले साल नवंबर में चिकित्सा आधार पर जमानत के लिए आवेदन किया था. याचिका में कहा था कि वह पार्किंसंस रोग से पीड़ित है और वह दोनों कानों से सुन नहीं सकता. तलोजा जेल में रहने के दौरान उन्हें उनकी खराब सेहत की वजह से जेल अस्पताल में स्थानांतरित किया जाए. स्वामी के वकील शरीफ शेख ने विशेष अदालत से कहा था कि आरोपी के हवाई मार्ग से फरार होने या जमानत के उल्लंघन का कोई खतरा नहीं है. स्वामी ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि उनका नाम मूल प्राथमिकी में नहीं था, लेकिन पुलिस ने उनका नाम एक संदिग्ध आरोपी के रूप में 2018 के रिमांड आवेदन में शामिल किया था.

बता दें कि, एल्गार परिषद और कोरेगांव-भीमा, दोनों घटनाओं में हिंसा भड़की थी. भीड़ ने वाहनों में आग लगा दी और दुकानों-मकानों में तोड़फोड़ की थी. हिंसा में एक व्यक्ति की जान चली गई थी और कई लोग जख्मी हो गए थे. हिंसा में माओवादी कनेक्शन भी सामने आया था.

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