जम्मू कश्मीर में 1990 के दशक में कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार से आज लगभग सारी दुनिया परिचित है. उस समय घाटी से हजारों की संख्या में कश्मीरी हिन्दुओं को आतंक के कारण पलायन करना पड़ा था. सैकड़ों निर्दोष लोगों की इस्लामिक आतंकियों ने नृशंस हत्या कर दी थी. आज लगभग 3 दशक बाद भी जब वो मंजर आंखों के सामने आता है तो कलेजा सिहर उठता है.
ऐसी ही दिल-दिमाग को झकझोर कर रख देने वाली कहानी है कश्मीरी हिन्दू गिरिजा टिक्कू की. जिसे सुन-पढ़ कलेजा दर्द से कराह उठेगा. गिरिजा टिक्कू, जो 1990 के दौर में अपनी ही जन्मभूमि में इस्लामिक आतंकियों का शिकार हुईं और उसकी निर्ममता से हत्या कर दी गई थी.
कश्मीरी हिन्दू गिरिजा कुमारी टिक्कू बारामूला जिले के गांव अरिगाम (वर्तमान में बांदीपोरा जिले) की रहने वाली थी. गिरिजा एक स्कूल में लैब सहायिका के तौर पर कार्यरत थीं. 11 जून, 1990 की सुबह गिरिजा टिक्कू अपने घर से सैलरी लेने स्कूल के लिए निकली. स्कूल पहुंचकर सैलरी लेने के बाद वापस घर लौटते समय पास में स्थित अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर चली गईं.
गिरिजा इस बात से बेखबर थी कि उसका पीछा किया जा रहा है. गिरिजा पर इस्लामिक जिहादियों की नजर लंबे समय से थी. गिरिजा अपने सहकर्मी से मिलने घर पहुंची, उसी वक्त आतंकियों ने गिरिजा को अपहृत कर लिया. गिरिजा का अपहरण गांव में रहने वाले लोगों की नजरों के सामने ही हुआ. पर खौफ का माहौल ऐसा था कि किसी ने भी अपनी आवाज नहीं उठाई.
गिरिजा के साथ सामूहिक दुष्कर्म
आतंकी गिरिजा टिक्कू का अपहरण करने के बाद गांव से दूर ले गए और उसके साथ कई दिनों तक सामूहिक दुष्कर्म किया. सिर्फ इतना ही नहीं, कई तरह की यातनाएं भी दीं. हैवानियत और बर्बरता की सारी हदों को पार करने के बाद भी जब इन जिहादियों का मन नहीं भरा तो उन्होंने 25 जून को गिरिजा टिक्कू को लकड़ी काटने वाली आरा मशीन के बीच लेटाकर गांव वालों के सामने ही दो अलग-अलग हिस्सों में काट दिया.
यह भयावह मंजर वहां खड़े लोग एक टक देखते रहे. 1990 के उस दौर में आतंकियों का कश्मीरी हिन्दुओं को सन्देश साफ़ था कि जम्मू कश्मीर में केवल “निज़ाम –ऐ- मुस्तफा” को मानने वाले लोग ही रह सकते है और गिरिजा टिक्कू जैसी एक सामान्य अध्यापिका को भी ”निजाम –ऐ- मुस्तफा” के लिए खतरा मानते थे. कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) लगभग सभी ने देखी होगी. फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में अंत से पहले किरदार शारदा पंडित की आरा मशीन के जरिये निर्मम हत्या को प्रदर्शित किया गया है. ये सीक्वेंस बारामूला जिले की गिरिजा टिक्कू की कहानी से प्रेरित है. गिरिजा टिक्कू के साथ जो हुआ था, वो फिल्म में प्रदर्शित दृश्यों से भी अधिक खौफनाक था.
गिरिजा टिक्कू अपने पीछे 26 वर्षीय पति, 4 साल का बेटा और 2 साल की बेटी छोड़ गईं थीं. 1990 में कश्मीर में हुए इस हादसे पर वहां के स्थानीय लोग चुप रहे. आप कल्पना कर सकते हैं कि आखिरकार वो दौर, वो मंजर कैसा रहा होगा, जब गिरिजा टिक्कू को आरा मशीन के बीचों-बीच लेटाकर दो हिस्सों में काट दिया गया. गिरिजा टिक्कू के अलावा हजारों निर्दोष मासूम लोगों को इस्लामिक जिहादियों ने 1990 में अपना शिकार बनाया था.