उमेश उपाध्याय
दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिए जाने के बाद अब इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की भोंडी शरारत हो रही है. पहले सर्वोच्च न्यायालय और एक हफ्ते पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट बताते हुए इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. दिल्ली उच्च न्यायालय ने तो प्रोजेक्ट को रोकने की याचिका करने वालों पर ₹1,00,000 का जुर्माना भी लगाया था.
प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले यहीं पर नहीं रुके हैं. अब इसे हिन्दू-मुस्लिम का रंग देकर सांप्रदायिकता भड़काने की कोशिश हो रही है. एक तरफ आम आदमी के चर्चित विधायक अमानतुल्लाह खान ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के क्षेत्र की 3 मस्जिदों को नुकसान पहुँचने पर चेतावनी भरा पत्र लिखा है. दूसरी ओर ब्रिटेन से छपने वाले ‘द गार्डियन अखबार’ में सेंट्रल विस्टा को ‘हिन्दू तालिबानी’ प्रोजेक्ट बताया गया है. अखबार के 5 जून के अंक में छपे इस लेख में सारी पत्रकारीय मर्यादाएँ तोड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी को आज का औरंगजेब, हिटलर और तालिबानी जैसा बताया है.
पहले बात अमानतुल्लाह खान की चिट्ठी की. आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान अपनी गुंडागर्दी के लिए जाने जाते हैं. आपको बताना जरूरी है कि इन्हीं पर 2018 की फरवरी में दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट के आरोप हैं. इस बहुचर्चित केस में दिल्ली के मुख्य सचिव के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास में रात को 12:00 बजे बुलाकर मारपीट की गई थी. अंशु प्रकाश की लिखित शिकायत में इस मामले में अमानतुल्लाह खान को नामजद किया गया था.
इन्हीं अमानतुल्लाह खान ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है. 03 जून की तारीख वाली इस चिट्ठी में उन्होंने चेतावनी दी है कि सेंट्रल विस्टा में आने वाली तीन मस्जिदों को कोई नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से 10 दिन में इस पर जबाव माँगा है.
आम आदमी पार्टी से पूछना बनता है कि अगर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में पड़ने वाले धार्मिक स्थलों के बारे में चिंता है तो फिर पार्टी विधायक को वहाँ के मंदिरों, गुरुद्वारों और गिरजाघरों का भी जिक्र करना चाहिए था. क्या धार्मिक भावनाएँ सिर्फ मुसलमानों की होती हैं?
राष्ट्रीय महत्व के इस प्रोजेक्ट को हिन्दू और मुसलमान के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. सवाल है कि यह चिट्ठी अमानुल्लाह खान जैसे विधायक से क्यों लिखवाई गई? अगर आम आदमी पार्टी को इस प्रोजेक्ट से शिकायत है तो पार्टी दूसरे तरीके से भी इस मामले को उठा सकती थी.
आम आदमी पार्टी को खैर दिल्ली में हिन्दू-मुसलमान वोटों की राजनीति करनी है. पर ‘द गार्डियन’ जैसे ब्रिटेन से छपने वाले अंग्रेजी अखबार को क्या हो गया कि उसके लेख में सारी पत्रकारीय लक्ष्मण रेखाएँ लाँघ दी गईं. इंग्लैंड की नागरिकता रखने वाले आर्किटेक्ट अनीश कपूर का ये लेख कई अनर्गल तर्क और झूठ परोसता है.
इस तर्क को आप क्या कहेंगे कि मोदी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट इसलिए बनवा रहे हैं क्योंकि वे मुसलमानों से घृणा करते हैं. बहुत ही बचकाने तरीके से इस लेख में मौजूदा संसद भवन और राजपथ की अन्य सभी इमारतों को इस्लामी बताया गया है. इन्हें “दुनिया की इस्लाम प्रभावित सबसे महत्वपूर्ण निशानी” बताते हुए वे लिखते हैं कि “मोदी भारत की सभी इस्लामिक इमारतों और 20 करोड़ मुसलमानों को नेस्तनाबूद करने से कम कुछ भी नहीं चाहते.”
उनका झूठ यहीं नहीं रुकता. वे कहते हैं कि “हमें नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने (मोदी ने) ज़ोर ज़बरदस्ती से लाखों भारतीय मुसलमानों की नागरिकता छीनकर उन्हें राज्य-विहीन बना दिया है.” ये झूठ छापने से पहले गार्डियन को इसकी पुष्टि करनी चाहिए थी.
समझ में नहीं आता कि अपने को प्रतिष्ठित कहने वाले द गार्डियन जैसे 200 साल पुराने अखबार ने ये सफ़ेद झूठ अपने यहाँ क्यों छपने दिया. या फिर ये माना जाए कि ये अखबार और इसके संपादक भी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को सांप्रदायिक रंग देने के इस राजनीतिक खेल में शामिल हैं?
ध्यान देने की बात है कि इसी व्यक्ति ने 12 मई को एक खुला पत्र लिखकर भारत सरकार से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकने की माँग की थी. उनके साथ कोई 76 कथित बुद्धिजीवियों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इस पर हताक्षर करने वालों में अधिकतर रोमिला थापर जैसे वामपंथी विचार वाले लोग ही थे.
इस पत्र में कहा गया था कि कोरोना के कारण दिल्ली में कई खतरे हैं. कोरोना को देखते हुए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को फिलहाल रोक देना चाहिए. इसी तर्क के आधार पर दायर अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुनवाई की थी. इन मुद्दों को सिलसिलेवार ढंग से निपटाते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय में स्पष्ट कर दिया गया कि राष्ट्रीय महत्व के इस प्रोजेक्ट को रोकना ठीक नहीं होगा. इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे ही चुका था.
लगता है प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों के लिए भारत की न्यायपालिका का कोई मोल नहीं है. क्योंकि गार्डियन के लेख में अदालतों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर अवमानना पूर्ण टिप्पणी की गई है. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को ‘मूर्खतापूर्ण’ कहते हुए लिखा गया है कि “भारतीय अदालतों पर दबाव डालकर इस मूर्खतापूर्ण योजना (सेंट्रल विस्टा) पर हामी भरवाई गई है…”
उच्च न्यायालय के फैसले को एक हफ्ता भी नहीं बीता है कि जो लोग कोरोना के नाम पर सेंट्रल विस्टा का विरोध कर रहे थे, उन्हीं ने अब इसे हिन्दू-मुस्लिम का रंग देना शुरू कर दिया है. शक पैदा होता है कि क्या प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले भारत के लोकतंत्र में सचमुच में आस्था रखते हैं?
आप प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों से सहमत नहीं है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. प्रजातंत्र में ऐसा होता ही है. परंतु आप एक प्रोजेक्ट के विरोध के बहाने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे प्राचीन विरासत वाले राष्ट्र के चुने हुए प्रधानमंत्री को तकरीबन गाली-गलौज देने पर उतर आए हैं. यह बात अशोभनीय, अमर्यादित और अलोकतांत्रिक है. इसे हिन्दू-मुस्लिम का रंग देने वाले भारत की स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली का अपमान तो कर ही रहे हैं, वे इस देश की लोकतांत्रिक मर्यादाओं, परंपराओं, आत्मसम्मान और गौरव का भी मज़ाक उड़ा रहे हैं. शायद इससे अधिक साम्प्रदायिक और निंदनीय कुछ और नहीं हो सकता.