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सुनील देशपांडे जी का आकस्मिक तथा वेदनादायी प्रस्थान

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किशोर पौनीकर, नागपुर

महाराष्ट्र के सामाजिक क्षेत्र में संपूर्ण बांस प्रक्रिया केन्द्र सुनील देशपांडे के नाम से परिचित है. वे एक स्वाभाविक नेतृत्व के धनी थे. अपनापन, नेतृत्व तथा कर्तृत्व जैसे गुणों का मिलाप सुनील देशपांडे जी में था.

सुनील से मेरा परिचय वर्ष १९९६ में देवलापार में विद्यार्थी परिषद के एक अभ्यास वर्ग में हुआ था. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सैद्धान्तिक भूमिका उद्बोधन का विषय था. छोटा कद तथा दुबला शरीर देखथे हुए हमें उसके छात्र नेता होने पर संदेह भी हुआ. भाषण देते समय सुनील को माइक, लाऊडस्पीकर आदि की आवश्यकता नहीं रहती थी. अनोखी शैली और स्पष्ट आवाज का आश्चर्य मंत्रमुग्ध श्रोताओं को होता था. अभिनय कला जन्मजात होने के कारण उसके व्यवहार में भी झलक दिखती थीं. विद्यार्थी जीवन में वह एक परिपूर्ण अभिनेता था.

सामाजिक कार्य में रुचि होने के कारण (BSW, MSW) की पढ़ाई की. विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी परिषद का कार्य करते हुए जन्मजात गुणों का अधिक विकास हुआ. अपने अंगभूत गुणों का लाभ समाज को हो, इस उद्देश्य से अनुभव के लिए शिक्षा पश्चात कुछ वर्ष बिहार में महेश शर्मा जी के साथ काम करने के लिए गए. चित्रकूट में नानाजी देशमुख के साथ भी कार्य किया.

दोनों स्थानों पर कार्य करते हुए उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में कार्य करते हुए आने वाली छोटी-छोटी बातों का अभ्यासपूर्ण अवलोकन किया और मेलघाट जैसे सामाजिक व आर्थिक रुप से अत्यंत पिछ़डे क्षेत्र को अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना.

सामाजिक कार्य में योगदान देने की इच्छा रखने वाली निरुपमा कुलकर्णी से उनका विवाह हुआ. विवाह से पूर्व ही होने वाली पत्नी को अपने ध्येय से अवगत करवाया था. निरुपमा जी ने भी उसे सहज़ता से स्वीकार किया. विवाह के पश्चात मेलघाट़ के लवादा नामक ग्राम की छोटी सी कुटिया चन्द्रमौली कुटिया में उनका पारिवारिक जीवन शुरू हुआ.

उन्होंने कोरकू समाज के कौशल को पहचाना और इसी सुप्त कौशल को मेलघाट के उत्थान का केन्द्र बिन्दु बनाना तय किया.

“संपूर्ण बांस केन्द्र” संस्था पंजीकृत कर बांस कारिगरी प्रशिक्षण कार्य शुरु किया. यह स्थानीय लोगों के रोजगार का साधन बन गया. बांस केन्द्र तक ही अपना कार्यक्षेत्र मर्यादित नहीं रखा, कर्नाटक के आदिलाबाद के रविन्द्र शर्मा से परिचय होने पर सामाजिक सेवा के लिये उन्हें अपना गुरु स्थान दिया. देशभर में प्रवास कर कुशल कारीगरों की खोज कर उन्हें अपने कर्मकौशल को ही अपना जीवन निर्वाह का साधन बनाने के लिए प्रेरित किया. “कारीगर पंचायत” के माध्यम से खोज़ यात्राएं कीं तथा कर्मकौशल लोगो का संगठ़न बनाकर उनके उत्पाद देश में प्रदर्शनी के माध्यम से लोगों तक पहुंचाए.

इधर, संपूर्ण बांस केन्द्र के माध्यम से बांस उत्पाद का महत्व बढ़ाया तथा बांस को एक इंजीनियरिंग सामग्री के रूप में मान्यता दिलायी.

मेलाघाट की पहचान कुपोषित शब्द के कारण थी, “संपूर्ण बांस केन्द्र” के कारण अब “कर्मकौशल” और “प्रगत सांस्कृतिक परंपरा के संवाहक” के रुप में देश और दुनिया में है. मेलघाट के बांस उत्पाद की पहचान सारे देश को हो रही है. “सृष्टिबंध” नामक बांस की राखियों का उत्पादन गांव-गांव में हो रहा है. महाराष्ट्र के बाहर भी देश में सर्वत्र यह राखी पहुंची है. वर्ष २०१८ में मेलघाट की कारीगर बहनों ने यह राखी दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री को भी बांधी थी.

संपूर्ण बांस केन्द्र के कारण समाज का अन्य वर्ग भी मेलघाट में सहयोग के लिए प्रेरित हुआ है. इन्हीं लोगों ने धन संग्रहित कर केन्द्र के कार्य विस्तार के लिए हरिसाल ग्राम के पास “ग्राम कोठा” में छह एकड़ ज़मीन खरीदी और बांस के साथ अन्य कर्मकौशल सिखाने के लिए गुरुकुल निर्माण किया. इस प्रकल्प का नाम “ग्रामज्ञान पीठ” रखा गया है. वर्ष २०१२ में इसका भूमिपूजन सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने किया था.

समाज के प्रति अपनेपन की भावना से सुनील जी ने अपने नेतृत्व व कर्तृत्व से मेलघाट सहित देश के कारीगरों के सामाजिक उत्थान के लिए अविरत परिश्रम किया. अब इस प्रकल्प के माध्यम से अनेक स्थान पर वनवासी बंधुओं के कर्मकौशल को विकसित करने वाले प्रकल्प शुरु हो सकते थे……परंतु

वर्ष २०१८ में सुनील जी के सामाजिक सेवा के गुरु आदिलाबाद के रविन्द्र शर्मा कर्करोग से चल बसे और मात्र ढाई वर्ष के अंतराल में आपका वारिस सुनील भी अनपेक्षित रुप से चला गया. कारीगर पंचायत वास्तव में अनाथ हो गई.

परंतु सुनील जी और रविन्द्र शर्मा जी ने हमेशा विकेन्द्रीकृत व्यवस्था को अपने कार्य का आधार रखा. इस कारण अनेक कार्यकर्ता तैयार हुए. यह कार्यकर्ता सुनील जी की प्रेरणा से भगवान जगन्नाथ का यह सेवा रथ आगे खींचकर वनवासी बांधवों का सामाजिक उत्थान करने में जरूर सफल होंगे.

सुनील जी हमेशा कहते थे…..

किसी को भी कम मत समझो, उस पर दया ना दिखाओ. उसकी क्षमता पहचानते हुए उसे अवसर दो. वह उस अवसर को अवश्य ही स्वर्णिम अवसर में बदल देगा.

सुनील जी की आकस्मिक मृत्यु उनकी माता, निरुपमा भाभी और मुग्धा सहित संपूर्ण बांस केन्द्र, ग्रामज्ञान पीठ, कारीगर पंचायत, आदि सबके लिए बड़ी क्षति है. ईश्वर उन्हें दुःख सहने की शक्ति दे, यही प्रार्थना है.

स्वर्गीय सुनील देशपांडे को भावभीनी श्रद्धांजलि. ईश्वर दिवंगत आत्मा को श्रीचरणों में स्थान प्रदान करे.

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