नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार की इस दलील पर नाराजगी व्यक्त की कि राज्य सरकार किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में असमर्थ है, जो फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के तहत आमरण अनशन पर हैं. राज्य सरकार ने न्यायालय को बताया कि अन्य प्रदर्शनकारी किसान दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने के प्रयासों में बाधा डाल रहे हैं, जिससे राज्य मशीनरी असहाय हो गई है.
पंजाब के महाधिवक्ता (एजी) गुरमिंदर सिंह ने कहा, “किसान प्रदर्शन स्थल के आसपास कड़ी निगरानी रख रहे हैं. अगर उन्हें कहीं ले जाने की कोशिश की जाती है, तो…” उन्होंने कहा कि हम असहाय हैं और हम समस्या से घिरे हुए हैं.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि राज्य को न्यायालय के पिछले आदेशों का पालन करना होगा, जिसमें पंजाब को दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने और यदि आवश्यक हो तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने का निर्देश दिया था. “अगर राज्य मशीनरी कहती है कि आप असहाय हैं, तो क्या आप जानते हैं कि इसका क्या नतीजा होगा. न्यायालय यह नहीं कह रहा है कि अवांछित बल का प्रयोग करें”.
न्यायालय ने राज्य के प्रयासों में बाधा डालने वाले किसानों पर भी कड़ी आपत्ति जताई.
न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की, “जब तक किसान आंदोलन के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन के साधन के रूप में लोगों का एकत्र होना समझ में आता है. लेकिन किसी को अस्पताल ले जाने से रोकने के लिए किसानों का एकत्र होना अनसुना है”.
पीठ पंजाब राज्य के मुख्य सचिव के खिलाफ शीर्ष अदालत के 20 दिसंबर के आदेश का पालन न करने पर दायर की गई अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य से कहा गया था कि वह अनशन कर रहे किसान नेता को अस्पताल जाने के लिए मनाए.
पीठ ने पूछा, “किसने यह सब होने दिया? किसने वहां जनशक्ति किला बनाने की अनुमति दी? कौन कानून और व्यवस्था की मशीनरी की देखभाल कर रहा है”.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय को बताया कि केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से स्थिति और खराब हो सकती है. “उन्होंने अधिक से अधिक किसानों को बुलाने का आह्वान किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसे अस्पताल न ले जाया जाए. हमारा हस्तक्षेप स्थिति को और खराब कर सकता है.”
पीठ ने याद दिलाया कि दल्लेवाल को कोई भी नुकसान आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर हो सकता है.
न्यायमूर्ति धूलिया ने याद दिलाया, “जब आप (आखिरकार) उसे कुछ सहायता देंगे, तो यह बहुत कम और बहुत देर हो चुकी होगी”.
न्यायालय ने अपने आदेश का सख्ती से पालन करने का आह्वान किया और मामले की अगली सुनवाई 31 दिसंबर को तय की.