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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को बड़ा झटका दिया है। न्यायालय ने 24 हजार से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती को अमान्य करार देते हुए उनकी नियुक्ति रद्द कर दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय ने शिक्षक और स्कूल कर्मचारी भर्तियों को ‘त्रुटिपूर्ण’ बताते हुए उन्हें अवैध करार दिया।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजीव कुमार की पीठ ने यह देखते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि नियुक्तियाँ हेरफेर और धोखाधड़ी से दूषित थीं।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “हमने तथ्यों का अध्ययन किया है। इस मामले के निष्कर्षों के अनुसार, पूरी चयन प्रक्रिया में हेराफेरी और धोखाधड़ी की गई है तथा विश्वसनीयता और वैधता समाप्त हो गई है। इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। दागी उम्मीदवारों को बर्खास्त किया जाना चाहिए और नियुक्तियां धोखाधड़ी और इस प्रकार धोखाधड़ी का परिणाम थीं”।
न्यायालय ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने और पूरा करने का निर्देश दिया।
– विकलांग कर्मचारियों को मानवीय आधार पर नौकरी में बनाए रखने की छूट दी गई।
– रद्द की गई भर्तियों के कर्मचारियों से वेतन और भत्ते वापस लेने की जरूरत नहीं होगी।
– सीबीआई जांच को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर 4 अप्रैल को सुनवाई होगी।
घोटाला 2016 की शिक्षक भर्ती से जुड़ा है, जिसमें बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भर्ती को अवैध बताते हुए सभी 24 हजार से अधिक नियुक्तियां रद्द कर दी थीं। राज्य सरकार ने निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को सही ठहराया।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जिन अभ्यर्थियों की भर्तियां रद्द हुई हैं, वे नई चयन प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। यदि वे बेदाग पाए जाते हैं, तो उन्हें विशेष छूट दी जा सकती है। निर्णय से बंगाल सरकार को झटका लगा है क्योंकि यह मामला लंबे समय से विवादों में था।