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सर्वोच्च न्यायालय ने नए आपराधिक कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इंकार किया

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नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को आईपीसी, सीआरपीसी, और एविडेंस एक्ट की जगह लेने वाले तीन नए आपराधिक कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से मना कर दिया.

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वह ऐसी याचिकाओं को अनुमति नहीं देगी क्योंकि नए आपराधिक कानून अभी लागू नहीं हुए हैं.

न्यायमूर्ति मिथल ने याचिकाकर्ता विशाल तिवारी से पूछा, “कानून लागू नहीं हैं. आप अनौपचारिक तरीके से तैयार की गई ऐसी याचिकाएं कैसे दायर कर सकते हैं”.

याचिका पर विचार करने में न्यायालय की अनिच्छा को देखते हुए, पक्षकार के रूप में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित विशाल तिवारी ने याचिका वापस लेने का निर्णय लिया.

इसी तरह की एक याचिका को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने खारिज कर दिया था.

न्यायालय ने तब याचिकाकर्ता के अधिकार पर सवाल उठाया था और बताया था कि कानून अभी तक लागू नहीं हुए हैं.

तीन कानून पहली बार 11 अगस्त, 2023 को लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता (आईपीसी के स्थान पर), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (सीआरपीसी के स्थान पर) और भारतीय साक्ष्य संहिता (भारतीय साक्ष्य अधिनियम के स्थान पर) के रूप में प्रस्तुत किए गए थे.

तीनों कानूनों को 20 दिसंबर, 2023 को लोकसभा और 21 दिसंबर को राज्यसभा ने पारित कर दिया था. 25 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी थी. इसके बाद, 24 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गजट अधिसूचना जारी कर घोषणा की कि नए कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू होंगे.

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