नई दिल्ली. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के प्रयासों में लगे लोगों को सर्वोच्च न्यायालय से भी झटका लगा है. सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये जुर्माना लगाने के आदेश को बदलने से इनकार कर दिया. न्यायालय ने कहा कि आपने कोरोना का हवाला देकर सभी निर्माण प्रोजेक्ट पर रोक की मांग नहीं की. आपकी मंशा पर दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय एकदम सही है.
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने पांच जनवरी को लैंड यूज और पर्यावरण मानदंडों के कथित उल्लंघन का आरोप लगाते हुए प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं. इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कोरोना के चलते निर्माण गतिविधियों पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की गई थी.
सेंट्रल विस्टा जरूरी परियोजना है, काम जारी रहेगा – उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य को जारी रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि यह राष्ट्रीय महत्व की एक अहम और आवश्यक परियोजना है. इसके साथ ही न्यायालय ने परियोजना के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह किसी मकसद से प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण थी.
कोरोना महामारी के दौरान परियोजना रोके जाने का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. अदालत ने कहा कि वह इस दावे से असहमत है कि यह परियोजना आवश्यक गतिविधि नहीं है और इसलिए मौजूदा महामारी के दौरान इसे रोक दिया जाना चाहिए.
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का एक हिस्सा दिसंबर 2022 तक बनकर तैयार होना है. आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इस परियोजना का निर्माण किया जा रहा है. हालांकि, दिल्ली में लॉकडाउन लगने के बावजूद इसका काम जारी है और इसे आवश्यक सेवाओं के दायरे में रखा गया है. विपक्षी दल भी इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं.
प्रोजेक्ट के तहत करीब 13 एकड़ जमीन पर नया संसद भवन तैयार किया जाना है. प्रोजेक्ट का एक हिस्सा अगले साल दिसंबर में बनकर तैयार हो जाएगा. इसके तहत प्रधानमंत्री आवास और उपराष्ट्रपति भवन बनाए जाएंगे. इसे पूरा करने की समय सीमा 2024 रखी गई है. प्रोजेक्ट पर कुल 971 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है.