कट्टरपंथियों ने मध्यपूर्व एवं पश्चिम एशिया के इस्लामिक देशों में इस्लामिक जिहाद का सहारा लेते हुए आतंकवाद के नाम पर देश में हजारों लाखों लोगों को बेघर कर दिया था और इसके पश्चात जिस तरह से यूरोप में मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने के लिए वामपंथी बुद्धिजीवी सामने आए थे, उस समय ही यह कहा गया था कि जल्द ही यूरोप को इस घटना के गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
उस समय जताई जा रही आशंकाएं अब सच होने लगी हैं. ऐसी रिपोर्ट सामने आ रही है कि यूरोप के कई देश इस्लामिक शरणार्थियों की वजह से बुरी तरह फंस चुके हैं. कई देशों ने मुस्लिम शरणार्थियों को बड़े स्तर पर नागरिकता दी और अब उनके अपने ही नागरिक परेशानी में घिरते हुए नज़र आ रहे हैं.
यूरोपीय देश स्वीडन के वर्तमान जनसंख्या आंकड़ों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले कुछ वर्षों में वहां के स्वीडिश मूलनिवासी पूरी तरह अल्पसंख्यक हो जाएंगे और मुस्लिम शरणार्थी बहुसंख्यक हो जाएंगे.
वर्तमान में स्वीडन की लगभग एक तिहाई आबादी विदेशी नागरिकों से भरी हुई है और लगातार बढ़ रही है. इसके मुख्य कारण में प्रवासियों की बढ़ती संख्या और मुसलमानों की बढ़ती प्रजनन दर के साथ ही मूल निवासियों की घटती प्रजनन दर को देखा जा रहा है.
फिनलैंड की एक रिसर्चर ने अपने शोध में दावा किया है कि यदि स्वीडन में विदेशी मूल के लोगों के बसने की यही दर बनी रही तो अगले 45 साल में वहां के मूल निवासी अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे.
उन्होंने मानक जनसांख्यिकी विधि का उपयोग करते हुए यह दावा किया कि स्वीडन के मूल निवासी वर्ष 2065 तक अल्पसंख्यक हो जाएंगे. यदि प्रवासियों की रफ्तार बढ़ती रही तो समय से पहले ही ऐसा हो सकता है. यह भी दावा किया है कि वर्ष 2100 तक स्वीडन में सबसे अधिक आबादी मुस्लिमों की होगी.
उन्होंने एक न्यूज़ पेपर में लिखा है कि स्वीडिश संसद ने सर्वसम्मति से 1975 में निर्णय लिया था कि स्वीडन एक बहु सांस्कृतिक देश है. उस वक्त 40% से अधिक अप्रवासी फिनलैंड के रहने वाले थे. लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. वर्ष 2019 में 88% अप्रवासी गैर पश्चिमी देशों से संबंधित हैं, जिनमें 52% मुसलमान थे. स्वीडन में जो पहले प्रवासियों की आबादी फिनलैंड के लोगों की थी, उसे मुस्लिमों ने कब्जे में कर लिया है.
इसके अलावा देश में जितने शरणार्थी आते थे, उन्होंने स्वीडन के समाज में खुद को मिला लिया. लेकिन अभी जो शरणार्थी आ रहे हैं, वह आसानी से समाज का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं. इसकी वजह से अपने स्वयं के क्षेत्रों का निर्माण करते हैं. जिन्हें आमतौर पर बाहरी क्षेत्र या नहीं जाने लायक इलाकों के रूप में बनाया जा रहा है.