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वात्सल्य ग्राम से बेटी की विदाई पर आंखों में आंसू और चेहरे पर प्रसन्नता

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वात्सल्य ग्राम, वृंदावन की संस्थापक दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा द्वारा संचालित परम शक्ति पीठ के सेवा प्रकल्प वात्सल्य ग्राम के अंतर्गत पली-बढ़ी ऋचा परमानंद का पालने से पालकी तक का सफर मर्म स्पर्शी एवं प्रेरणास्पद रहा है. वात्सल्य की बेटी को पालकी में विदा करते समय सभी की आंखें नम थीं, वहीं चेहरे पर नए दाम्पत्य जीवन में प्रवेश की प्रसन्नता थी. साध्वी ऋतम्भरा सहित भाव संबंधों से जुड़े माता-पिता, संत-महात्मा व अन्य लोगों ने बेटी को हंसी खुशी विदा किया.

वात्सल्य ग्राम के आंगन में पली बढ़ी यह बेटी ऋचा 26 वर्ष पहले परम शक्ति पीठ द्वारा वात्सल्य ग्राम के वात्सल्य प्रकल्प में, एक दिन की अवस्था में पालने में आई थी. उसका पालन पोषण और प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में हुई. वनस्थली विद्यापीठ जयपुर से इंटर एवं ग्रेजुएशन किया. अपेक्स यूनिवर्सिटी जयपुर से एलएलएम किया. ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की सदस्य बनने के बाद दिल्ली में वकालत कर रही है. ऋचा ने वात्सल्य के आंगन में रहकर न केवल अपनी शिक्षा पूरी की, बल्कि वह अपने पैरों पर खड़ी हुईं.

धर्म पिता बने संजय गुप्ता ने ऋचा को पढ़ा लिखाकर सुयोग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. विवाह योग्य होने पर इंदौर के राजेंद्र चौहान के पुत्र अर्पित से रिश्ता तय हो गया. अर्पित कम्प्यूटर इंजीनियर है और पुणे की कंपनी में कार्यरत है.

ऋचा का दूल्हा बने अर्पित की मां अनीता चौहान की 20 वर्ष पूर्व साध्वी ऋतंभरा से इंदौर में भेंट हुई थी. श्रीमद् भागवत के दौरान मानसिक संकल्प लिया था कि वह अपने बेटे का विवाह वात्सल्य ग्राम की बेटी से कराएंगी. रविवार को उनका यह इस संकल्प पूरा हो गया. ऋचा अधिवक्ता बनकर प्रसन्न हैं. वह निष्पक्ष न्याय के प्रति वकालत करना चाहती हैं और भविष्य में न्यायाधीश बनने की इच्छा रखती हैं. सभी वैवाहिक रस्में हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ नानी, मौसी के द्वारा गाए मंगल गीतों के मध्य वैदिक मंत्रों द्वारा संपूर्ण हुईं.

वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में ऐसी और भी बेटियां हैं, जन्म लेते ही जिन्हें अपनों ने छोड़ दिया. इन बेटियों को नानी, मौसी, मां की याद न आए, इसके लिए साध्वी ऋतंभरा ने सभी के बीच रिश्ते जोड़ दिए हैं. इन बेटियों का लालन-पालन करने वाली माताओं में से किसी को मां, किसी को नानी तो किसी को मौसी बना दिया है. वर्तमान में वात्सल्य ग्राम में इस तरह के 22 परिवार हैं.

ऋचा को मामा-मामी की कमी महसूस न हो, इसके लिए भाव संबंधों में सूरत, गुजरात से लक्ष्मी और नाना लाल शाह, नानी रेखा, राजू भाई शाह ने मामी-मामा की भूमिका में भात पहनाने की रस्म अदा की. ऋचा की मां बनी सुमन परमानंद अपनी बेटी के पीले हाथ होते देख फूली नहीं समा रहीं थीं. ऐसी कई लड़कियां है, जिनके हाथ माँ साध्वी ऋतम्भरा ने पीले कर उन्हें विदा करना है, ये उनकी ज़िन्दगी के मकसद पूरे होने जैसा है.

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