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आतंकी घटना भयावह, आतंक के खिलाफ उचित कार्रवाई होनी चाहिए – सुनील आंबेकर जी

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मुंबई, 24 अप्रैल। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अप्रैल 1965 में पहली बार रुइया कॉलेज में ‘एकात्म मानवदर्शन’ और ‘अंत्योदय’ का विचार प्रस्तुत किया था। उसी दिन, 60 वर्ष बाद, उसी ऐतिहासिक स्थान पर 22 से 25 अप्रैल तक ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानवदर्शन हीरक महोत्सव’ का आयोजन किया गया है।

इस श्रृंखला में तीसरी पुष्पांजलि अर्पित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर जी ने कहा कि हमारा राष्ट्र और इतिहास के प्रति हमारा दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट होना चाहिए। समय की मांग है कि यह स्पष्ट रूप से देखा जाए कि कौन इस देश का निर्माण कर रहा है और कौन इसे तोड़ रहा है। हमारे राष्ट्र की पहचान क्या है? यह एक महत्वपूर्ण विषय है। अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरा देश एकजुट हो गया। राम के अस्तित्व के बारे में सभी प्रश्न हमेशा के लिए ख़त्म हो गये। जम्मू-कश्मीर में घटित आतंकवादी घटना भयावह है और इसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। यह बहुत निंदनीय है कि यह पूछकर हत्या कर दी गई कि आप किस धर्म से हैं? हालाँकि, देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और कुछ राजनीतिक दल राजनीती में व्यस्त हैं।

लोकतंत्र में किसी की इच्छा सर्वोपरि नहीं होती। सभी की साझा इच्छा को स्वीकार करना होगा। यह हमारी व्यक्तिगत इच्छाओं को दबाए बिना संभव नहीं है। वे गंगा-यमुना तहजीब की बात करते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि जब यमुना-गंगा में मिलती है, तो वह भी गंगा बन जाती है। इसलिए, केवल चरित्रवान समाज ही संगठित रह सकता है।

दीनदयाल जी हमेशा कहते थे कि कुछ लोग धार्मिक होते हैं जो कभी कुछ नहीं बोलते और कुछ लोग सिर्फ बोलते रहते हैं, उनकी आवाज इतनी ऊंची होती है कि हर कोई उनकी बात सुनता है। इसलिए, जनता की राय महत्वपूर्ण है और सज्जनों का चुप रहना उचित नहीं है। लोकतंत्र में हर किसी की राय मायने रखती है।

उन्होंने कहा कि हम अपनी ताकत, बुद्धिमत्ता और प्रौद्योगिकी में विश्वास करते हैं। इस मानसिकता से बाहर निकलना आवश्यक है कि हमारे पास पहले विज्ञान नहीं था।

सुनील जी ने कहा कि धर्म के नाम पर अनेक देशों में विवाद उत्पन्न हो रहे हैं, लेकिन हमारा देश एक अनूठा उदाहरण है, जहां अनेकता में एकता दिखाई देती है।

सतीश जी ने कहा कि दीनदयाल जी ने ६० के दशक में जो बातें कही थीं, वे आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उस समय थीं। इसलिए दीनदयाल जी की जयंती न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में मनाई जाती है। कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र के साथ हुआ।

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