प्रदीप सिंह
जनतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने की राजनीतिक दलों की कोशिशों के किस्से तो आम हैं, लेकिन गैर-राजनीतिक संगठनों और व्यक्तियों की ऐसी कोशिश और वह भी सात साल से लगातार चलने के उदाहरण विरले ही मिलेंगे. समय के साथ-साथ इन तत्वों की हताशा और बेचैनी बढ़ती जा रही है. ताजा कोशिश किसान आंदोलन के बहाने देश में अराजकता फैलाने की थी. इस कोशिश के प्रमाण सामने आने लगे हैं. आरोपियों को बचाने, उनके समर्थन में खड़े होने के लिए अजीब तर्क दिए जा रहे हैं. देश के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के आरोपी के विरुद्ध कार्रवाई को कभी जनतंत्र विरोधी बताया जा रहा है तो कभी आरोपी की उम्र का हवाला दिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री ने ठहरे हुए पानी में कंकड़ फेंका होता तो शायद यह इन लोगों की नजर में क्षम्य होता. उन्होंने तो पूरी चट्टान ही गिरा दी है. विदेशी चंदे, देसी कम्युनिस्टों के बौद्धिक विध्वंस के सतत प्रयास, कांग्रेस और दूसरे कई दलों की सरकारों के संरक्षण से यह वर्ग आजादी के बाद से फलफूल रहा था. प्रधानमंत्री ने आते ही इनका धंधा और चौधराहट, दोनों खत्म कर दी. मोदी ने जीवन में जो कुछ हासिल किया है, वह इस मंडली की वजह से नहीं, बल्कि इसके बावजूद किया है. इसीलिए वह उसकी परवाह नहीं करते. जैसे पौधे सूरज की रोशनी न मिलने से मुरझाने लगते हैं. उसी तरह इस मंडली के सदस्यों को सत्ता के सुख की गरमाहट न मिले तो मुरझाने लगते हैं. वही हो रहा है. साल 2014 में नहीं रोक पाए. साल 2017 में उत्तर प्रदेश में नहीं रोक पाए, फिर 2019 तो वज्रपात की तरह आया. तो अब कई स्तरों पर एक साथ काम हो रहा है. जरा क्रोनोलॉजी देखिए. तीन तलाक का कानून बना, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 गया, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया. ये लोग भौंचक्के रह गए. नागरिकता कानून आते ही लगा कि मुसलमानों को झूठ बोलकर बरगलाया जा सकता है, क्योंकि 70 साल से यही तो कर रहे हैं. दिल्ली में दंगे करवाए. अब पकड़े जा रहे हैं तो मानवाधिकार से लेकर न जाने किन-किन बातों की दुहाई दे रहे हैं.
किसानों के नाम पर रचा गया षड्यंत्र
इस बार किसानों के नाम पर षड्यंत्र रचा गया. इसकी तैयारी दिसंबर से चल रही थी. ग्रेटा थनबर्ग ने गलती से टूलकिट (जिसमें देश भर में आंदोलन फैलाने की पूरी योजना थी) ट्वीट न किया होता तो अभी तक बोलने की आजादी और जनतांत्रिक मूल्यों का बहाना चलता रहता. इस योजना में शामिल 21 वर्षीय दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद कहा जा रहा है कि बताइए भला कम उम्र लड़की को गिरफ्तार कर लिया. उसके अपराध और उसकी गंभीरता की बात नहीं हो रही. आखिर कानून कब से बालिगों की उम्र के आधार पर उनका अपराध तय करने लगा है. 21 साल की उम्र में आप शादी कर सकते हैं, इम्तिहान पास करके आइएएस, आइपीएस बन सकते हैं, माता पिता अपने 21 साल के बेटे/बेटी को देश के लिए बलिदान होने के लिए फौज में भेज सकते हैं, लेकिन 21 वर्षीय आरोपी की जांच नहीं हो सकती. इससे जनतंत्र खतरे में पड़ जाता है.
पीएफआइ कई जगहों पर बम धमाकों की योजना बना रहा था
बात यहीं तक सीमित नहीं है. ये लोग खालिस्तान समर्थक पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीजेएफ) से मिलकर काम कर रहे हैं. अब नया खुलासा हुआ है कि इसी के साथ पीएफआइ देश में कई जगहों पर बम धमाकों की योजना बना रहा था. पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठन पुलवामा की बरसी पर बड़े धमाके की साजिश रच रहे थे. ये सब बातें इन सारे कथित षड्यंत्रकारियों और उनके समर्थकों के लिए कोई मायने नहीं रखतीं. इनकी नजर में मोदी सरकार के विरोध का तरीका चाहे जितना अनैतिक और गैरकानूनी हो, सब जायज है. मोदी का विरोध करते-करते, अब इन्हें देश विरोध से भी परहेज नहीं है. शर्त इतनी है कि किसी तरह मोदी को नुकसान पहुंचना चाहिए.
आंदोलन से इतर भी ये लोग कई मोर्चों पर सक्रिय हैं. यहां भी क्रोनोलॉजी देखिए. जिन लोगों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फूटी आंख नहीं सुहाते थे, वे अब उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं. उनकी ओर से कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश डूब रहा है, लेकिन योगी की छवि चमक रही है और वह मोदी को चुनौती दे रहे हैं. कोई अंधा भी बता सकता है कि करीब तीन दशक के बाद उत्तर प्रदेश तेज गति से विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है, संगठित अपराध की कमर टूट चुकी है, राज्य में निवेश लगातार बढ़ रहा है, लेकिन ऐसे लोगों को तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं. रही बात चुनौती की तो मोदी को सिर्फ मोदी ही चुनौती दे सकते हैं. स्वनामधन्य इतिहासकार रामचंद्र गुहा 2024 में योगी को भाजपा के पीएम पद के दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं. 2024 में अभी तीन साल बाकी हैं, लेकिन इन्हें किसी ने बता दिया कि 2024 में मोदी मैदान में नहीं होंगे. अरे, जगह खाली होगी तब तो किसी के उम्मीदवार बनने का मौका आएगा. 2024 क्या 2029 में भी मोदी ही पीएम पद के उम्मीदवार हों तो कोई अचरज की बात नहीं होगी.
इस तरह के सभी प्रयासों के मूल में मुख्य रूप से तीन इच्छाएं छिपी हैं. एक, मोदी से जल्दी छुटकारा मिले. दो, मोदी के बाद अमित शाह न आने पाएं. तीन मोदी, शाह और योगी एक-दूसरे को शक की निगाह से देखने लगें. प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को संदेश दिया जा रहा है कि योगी का कद बढ़ रहा, काटिए. उनमें आपस में अविश्वास पैदा करने का प्रयास हो रहा है.
दरअसल, इन लोगों को कांग्रेस के जमाने से यही करने की आदत रही है. इन्हें पता नहीं है कि मोदी और शाह कोई इंदिरा गांधी, राजीव या सोनिया नहीं हैं, जिनकी नींद अपनी ही पार्टी के नेता के कद को लेकर हराम होती हो. इन दोनों नेताओं ने अपने साथियों और खासतौर से मुख्यमंत्रियों का कद बढ़ाने का खुद ही हरसंभव प्रयास किया है. पिछले सात सालों में पार्टी संगठन और सरकार में अपेक्षाकृत युवा लोगों को आगे बढ़ाया गया है. इसकी वजह यह है कि ये असुरक्षा की भावना से ग्रस्त नेता नहीं हैं. ये संघर्ष से निकल कर यहां तक पहुंचे हैं. उनकी ताकत लोगों का विश्वास और समर्थन है. ये इन षड्यंत्रों और बौद्धिक चालबाजियों के मायाजाल में फंसने वाले नहीं है, पर कोशिश करने वाले कहां मानते हैं.
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
साभार – दैनिक जागरण