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हमारे शोध की दिशा भारत के स्वत्व के आधार पर होनी चाहिए – जे. नंदकुमार

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भोपाल. प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार ने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता के लेखकों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को राजनीति तक सीमित करके प्रस्तुत किया है, जबकि स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा ‘भारत का स्वत्व’ था. इस ‘स्व’ को जगाने के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानी बहुआयामी स्तर पर प्रयास कर रहे थे. जे. नंदकुमार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित विशेष व्याख्यान में संबोधित कर रहे थे. ‘स्वतंत्रता आंदोलन एवं भारतीय दृष्टिकोण’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन विश्वविद्यालय स्तर पर गठित अमृत महोत्सव आयोजन समिति की ओर से किया गया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की.

लेखक एवं चिंतक जे. नंदकुमार ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के संबंध में अनेक भ्रम स्थापित करने के प्रयास किए गए हैं. ब्रिटिश और औपनिवेशिक मानसिकता के लेखकों ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन केवल उत्तर भारत तक सीमित था. यह अंग्रेजी पढ़े-लिखे तथाकथित उच्च वर्ग का आंदोलन था. यही कारण रहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने वाले अनेक स्वतंत्रता सेनानियों एवं उनके आंदोलनों को जानबूझकर जबरन दबाया गया है. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को शोध करके भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नये तथ्यों को समाज के सामने लाना चाहिए.

नंदकुमार ने पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत और शेष अन्य भारत में चले आंदोलनों और उसमें शामिल नायकों का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में समूचा देश और सब प्रकार के नागरिक एक भाव के साथ शामिल हुए थे. हम सदैव याद रखें कि हम जो सांस लेते हैं, उस हवा में वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार भगत सिंह, प्रफुल्ल चाको और ऊधम सिंह जैसे अनेक नायकों के खून, पसीने और आंसुओं के कण भी शामिल हैं.

भारत का गहन अध्ययन करके महर्षि अरविंद ने बताया है कि स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा अध्यात्म और भारतीय मूल्य थे. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सत्ता बहुआयामी स्तर पर अपनी व्यवस्था को थोपने का कार्य कर रही थी. नाटकों में अभिव्यक्त होने वाली देशभक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने थियेटर एक्ट बनाया. मणिपुर और मोहिनी अट्टम नृत्य तक पर प्रतिबंध लगा दिया था. यही कारण है कि भारत के स्वतंत्रता सेनानी न केवल राजनीतिक क्षेत्र में अपितु शिक्षा, संस्कृति, कला, कृषि, उद्योग और विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में भारत के स्वत्व को जगाने का प्रयास कर रहे थे. इसलिए हमारे शोध की दिशा भारत के स्वत्व के आधार पर होनी चाहिए.

कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि इतिहास को याद रखने का बहुत महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इतिहास भूल जाते हैं, वे इतिहास की गलतियों को दोहराते हैं. यदि हमें अपनी गलतियों को दोहराना नहीं है तो हमें अपना इतिहास याद रखना चाहिए. इतिहास गलतियों से सीखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. भारत का स्वतंत्रता आंदोलन एक जनांदोलन था. स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत विश्वविद्यालय ने एक समिति का गठन किया है. हमारा उद्देश्य है कि उन लोगों को सामने लाया जाए, जिनके बारे में हम अधिक नहीं जानते हैं.

इससे पूर्व विषय का प्रतिपादन करते हुए समिति के अध्यक्ष प्रो. श्रीकांत सिंह ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास लिखने में तथ्यों के साथ मिलावट की गई है. ज्यादातर लेखन अंग्रेजियत के दृष्टिकोण से किया गया है. वर्तमान समय में आवश्यकता है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय दृष्टिकोण से लिखा जाए. कार्यक्रम का संचालन डीन अकादमिक प्रो. पी. शशिकला ने और आभार ज्ञापन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया.

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