जयपुर. आजकल देश में आपराधिक घटना को भी अपने लाभ के नजरिये से देखने का चलन चल रहा है. और एक गैंग सक्रिय है. कोई घटना इस गैंग के स्वार्थी नेरेटिव को पुष्ट करती है तो एकदम सक्रिय हो जाता है तथा समस्ता सीमाओं को पार कर जाता है. लेकिन, वैसी ही कोई घटना उनके स्वार्थी नेरेटिव में फिट नहीं बैठती तो गैंग चुप्पी ओढ़ लेता है.
उदाहरण के लिए हाथरस, कठुआ की घटना के पश्चात पूरा गैंग सक्रिय हो जाता है, अभियान चलाए जाते हैं. लेकिन, झालावाड़ में 20 से अधिक लोगों ने 9 दिनों तक एक नाबालिग को नशा देकर व मारपीट कर अपनी हवस का शिकार बनाया. जयपुर के एक अस्पताल में आईसीयू में मुंह पर मास्क व हाथों में ड्रिप लगी महिला का नर्सिंग स्टाफ ने अर्ध बेहोश जानकर यौन शोषण किया. एक दुष्कर्म थाने में हुआ, जब पीड़िता वहां सहायता के लिए पहुंची. टोंक जिले में मां-बेटी के साथ पहले दुष्कर्म हुआ, फिर समझौते के लिए बुलाकर दरिंदगी की गई. उन्हें बंधक बनाकर उनके गुप्तांगों में मिर्ची डाली गई. ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने हैवानियत को भी लज्जित कर दिया.
लेकिन, महिला हितों की बात करने वाला और हाथरस घटना को लेकर आवाज उठाने वाला गैंग कहीं दिखाई नहीं दिया. राजस्थान में जनवरी 2021 में दुष्कर्म के 519 केस दर्ज किए गए, दिसंबर 2020 में 412 केस दर्ज हुए थे. यानि प्रतिदिन 16-17 दुष्कर्म, यह आंकड़ा लज्जित करने वाला है. इतनी घटनाओं के पश्चात भी गैंग चुप है, कारण यहां आवाज उठाने से उनका स्वार्थ पूरा नहीं होता.
तारानगर में दुकान पर कपड़ा खरीदने गई महिला के साथ दुष्कर्म हुआ तो भरतपुर के बयाना में ट्राय साइकिल पर जा रही दिव्यांग को रास्ते से ही खेत में उठा लिया गया. इन घटनाओं के बाद राजस्थान सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होना लाज़मी है. लगता है राजस्थान में महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं, फिर वह थाना हो, अस्पताल, घर, दुकान या रास्ता. राज्य के मुखिया व प्रशासन के लिए इससे बड़ी चुनौती क्या हो सकती है..! राज्य में महिला संरक्षण को लेकर अनेक कानून हैं. नाबालिगों से छेड़छाड़ के विरुद्ध पॉक्सो एक्ट है. प्रदेश में 57 पॉक्सो कोर्ट भी हैं, जिन पर सरकार वार्षिक लगभग 40 करोड़ रुपये व्यय करती है.
वकील देवी सिंह राठी इसका कारण भ्रष्टाचार व सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति बताते हैं. वे कहते हैं कानून भले ही कितने भी कड़े क्यों न हों, जब तक कानून की पालना कराने वाले ही दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं रखेंगे, अपराधियों को संरक्षण देना बंद नहीं करेंगे व भ्रष्टाचार मुक्त नहीं होंगे, यह क्रम ऐसे ही चलता रहेगा. ‘अपराधियों में डर, आमजन में विश्वास’ तो मात्र स्लोगन बनकर रह गया है. इसके उलट आमजन में डर है और अपराधी निडर होकर घूम रहे हैं. आज हर तंत्र पर राजनीति हावी है, सरकार बची रहनी चाहिए.
इतिहास में परास्नातक विजयलक्ष्मी कहती हैं, इतिहास उठाकर देखें तो इस्लामिक आक्रमणकारियों के आने से पहले दुष्कर्म का एक भी उदाहरण नहीं मिलता. 711 ई. में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया और राजा दाहिर को हराने के बाद लूटपाट तो मचाई ही महिलाओं को माल-ए-गनीमत मानकर सेक्स स्लेव भी बनाया. उसके बाद तो यह क्रम चल पड़ा. तब मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा, पराजित हिन्दू राजाओं की स्त्रियों व अन्य हिन्दू स्त्रियों के साथ दुष्कर्म करना आम बात थी, क्योंकि वे इसे अपनी जीत या जिहाद का पुरस्कार मानते थे. धीरे -धीरे यह रुग्ण मानसिकता भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी और आज इसका यह भयानक रूप देखने को मिल रहा है.
समाजसेवी अनीता इसका बड़ा कारण आसानी से उपलब्ध पॉर्न कंटेंट और फिल्मों को बताती हैं. वह कहती हैं – एक समय था, जब लगभग हर शहर में एक-दो ऐसे विशेष सिनेमाघर होते थे, जहां लगती ही एडल्ट फिल्में थीं, जिन्हें ‘बी’ या ‘सी’ ग्रेड कहा जाता था और ऐसी फिल्में ही उनमें दिखाई जाती थीं. घोषित रूप से मॉर्निंग शो में चलने वाली एडल्ट फिल्मों के अशोभनीय और वीभत्स पोस्टर हर मुख्य शहर में लगभग हर सार्वजनिक स्थल पर लगे हुए हम सबने देखे ही होंगे. दुष्कर्म की रुग्ण मानसिकता एक दिन की देन नहीं है. इसने लम्बे समय में अपनी जगह बनाई है.
डीयू की राजनीति विज्ञान की छात्रा अंशिका कहती हैं, यह ‘बैनेलिटी ऑफ ईविल’ का सटीक उदाहरण है. प्रसिद्ध विचारक हैना आरेंट का मानना था कि समाज में जब कोई बुराई गहरे पैठ कर जाती है, वह बार बार घटित होती है तो हम उसके आदी हो जाते हैं, थोड़े समय में वह हमारे लिए रोजमर्रा की बात हो जाती है, फिर वह हमें उद्वेलित करना बंद कर देती है. आज दुष्कर्म भी एक सामाजिक बुराई है, लेकिन वह लोगों का ध्यान नहीं खींचती. वह सरकार की वरीयता में भी नहीं है और समाज भी इसके विरोध में सड़कों पर नहीं आता.
आज लगातार बढ़ रहे दुष्कर्म के मामले वास्तव में चिंता का विषय हैं. दुष्कर्म की मानसिकता के पीछे कुछ कारण तो हैं जो हमें अपने आस-पास भी ढूंढने ही पड़ेंगे. दुष्कर्म सभ्य समाज की निशानी तो नहीं. सरकार को भी प्रतिदिन हो रही ऐसी घटनाओं व उनकी वीभत्सता को देखते हुए महिला यानि आधी आबादी की सुरक्षा को अपनी वरीयता सूची में प्राथमिकता देनी ही होगी.