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स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास कुछ लोगों के इर्द-गिर्द रखकर लिखा गया – प्रो. राकेश सिन्हा

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काशी. प्रख्यात चिंतक एवं विचारक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीयत्व का मूल आधार सांस्कृतिक है, जिसका दूसरा नाम हिन्दुत्व है. हिन्दू हमारी मौलिक पहचान है, जबकि हिन्दुत्व, हिन्दू होने और हिन्दुओं के वैशिष्ट्य के प्रति जागरूकता का नाम है. जब भी यह जागरूकता कम हुई, न सिर्फ हिन्दुओं की संख्या कम हुई बल्कि अखण्ड भारत की चौहद्दी भी सिमटती गयी. हिन्दुओं पर आज भी वही प्रहार कर रहे हैं, जिन्होंने देश को बांटने का कार्य किया था. राकेश सिन्हा वन्देमातरम आयोजन समिति काशी महानगर द्वारा डॉ. संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम, सिगरा में आयोजित सामूहिक वन्देमातरम गायन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित पूरा इतिहास, कुछ लोगों के इर्द-गिर्द रखकर लिखा गया है और बलिदानियों की उपेक्षा की गई है. क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण ही, अंग्रेजों के मन में भय और निराशा के बादल छा गए. आज इतिहास की पुस्तकों में बारह वर्षीय बलिदानी बाज रावत और उसी उम्र की तेलेश्वरी बरुआ का नाम खोजने से भी नहीं मिलता. क्रांतिकारीयों के योगदान की घोर उपेक्षा की गई.

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के शीर्ष पर बैठे लोगों ने राष्ट्रीयत्व के मुद्दे पर समझौता करते हुए राष्ट्रीयता को कमजोर किया. इसी कारणवश जिन्ना और मुस्लिम लीग का आत्मविश्वास बढ़ता गया. इसका उदाहरण है कि कांग्रेस में वन्देमातरम का गायन सन् 1896 से हो रहा था, उसके गायन को रेडियो पर सन् 1937 में बंद कर दिया गया. वंदेमातरम गाते हुए स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने वाले मातंगी हजरा जैसे बलिदानियों की भी उपेक्षा कर दी गयी. यह एक तरह से मुस्लिम लीग के प्रति तुष्टिकरण का परिणाम था.

काशी न सिर्फ धर्म की नगरी है, बल्कि ज्ञान और परम्परा की सबसे प्राचीन नगरी है. इसने दुनिया में अकादमिक लोकतंत्र (एकेडेमिक डेमोक्रेसी) का विलक्षण उदाहरण प्रस्तुत किया है. इसका उदाहरण दामोदर शास्त्री और बच्चा झा के बीच, दयानन्द शास्त्री और काशी के विद्वान पंडितों के बीच, गंगाधर शास्त्री व गट्टू लाल के बीच का शास्त्रार्थ है. काशी की इसी ज्ञान परम्परा के आधार पर शिक्षा को यूरोप केंद्रित से भारतीय केंद्रित बना सकते हैं.

प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए शिक्षा एवं कानूनविद डॉ. वीरेन्द्र जी ने कहा कि जिस प्रकार सांस्कृतिक विरासत को नष्ट किया गया, उसे पुनर्स्थापित करने का यह अमृत महोत्सव सर्वाधिक उपयुक्त अवसर है. वर्तमान में एक सूक्ति प्रचलित है – “हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान”.

कार्यक्रम की अध्यक्षता रमेश कुमार चौधरी, विशिष्ट अतिथि कर्नल राघवेन्द्र एवं सह संयोजक राहुल सिंह रहे.

संस्कार भारती काशी महानगर द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए. देशभक्ति गीतों पर शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत कर परिसर में देशभक्ति का जूनून जगाया.

स्टेडियम में काशी का असली स्वरुप देखने को मिला. अतिथियों के आगमन पर डमरू और शंख का नाद किया गया. काशी की मूल संगीत ध्वनि ने पूरे माहौल को काशीमय कर दिया. हर हर महादेव, वन्देमातरम और भारत माता की जय का उद्घोष लोगों में जोश और उत्साह जागृत कर रहा था. परिसर में हर हाथ में तिरंगा दिख रहा था.

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