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संघ का कार्य तथा संगीत दोनों में अभ्यास का महत्व है

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कानपुर. स्वर संगम घोष शिविर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने शिक्षार्थियों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हमारे दिल की धड़कन भी एक ताल है. यदि वह बंद हो गई तो सब समाप्त हो जाएगा. ध्वनि का नाद यदि संगीतमय हो जाये तो वह स्वर कहलाता है. स्वर और ताल के मिलने से संगीत बनता है. संगीत के ताल से आप के कदम जब मिलेंगे तब संचलन ठीक होगा.

हम सभी घोष वादक यहां किसी प्रमाण पत्र हेतु नहीं आए हैं. हम यहां एक निश्चित ध्येय के लिए एकत्र हुए हैं. हमारा कार्यक्रम घोष का है, किंतु हमें इस माध्यम से भारत माता को परम वैभव तक पहुंचाना है. यही हमारा लक्ष्य है. संघ का कार्य तथा संगीत दोनों में अभ्यास का महत्व है. संघ में प्रतिदिन शाखा जाना पड़ता है और संगीत में प्रतिदिन अभ्यास करना पड़ता है. स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर जी भी प्रतिदिन संगीत का अभ्यास करती थीं. हमारे कार्यक्रमों को देखकर समाज प्रभावित होता है क्योंकि हम इसे लगन तथा अनुशासन से करते हैं.

 

इससे पूर्व सरसंघचालक जी ने प्रातः के समय घोष शिविर के शिक्षार्थियों द्वारा निकाले गए पथ संचलन का अवलोकन किया.

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