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आंतरिक समिति की जांच को संवैधानिक या कानूनी मान्यता नहीं – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

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नई दिल्ली। दिल्ली में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर पर मिली नकदी के मामले में चल रही प्रक्रिया को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर सवाल खड़े किए। उपराष्ट्रपति ने तीन न्यायाधीशों की इन-हाउस समिति द्वारा की गई जांच पर सवाल उठाए। कहा कि जांच समिति में किसी संवैधानिक आधार या कानूनी वैधता का अभाव है।

उपराष्ट्रपति ने कहा – “अब जरा सोचिए कि दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों ने कितनी मेहनत की होगी। एक उच्च न्यायालय [पंजाब और हरियाणा] में, कवरेज क्षेत्र दो राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश है। वे एक ऐसी जांच में शामिल थे, जिसका कोई संवैधानिक आधार या कानूनी औचित्य नहीं था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अप्रासंगिक है। जांच रिपोर्ट प्रशासनिक पक्ष से न्यायालय द्वारा विकसित तंत्र के माध्यम से किसी को भी भेजी जा सकती है”। उपराष्ट्रपति वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा संपादित पुस्तक द कॉन्स्टिट्यूशन वी एडॉप्टेड के विमोचन के अवसर पर संबोधित कर रहे थे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोगों को नहीं पता कि इस जांच समिति ने कोई इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य बरामद किया है या नहीं, और देश अभी भी पैसे के लेन-देन, उसके उद्देश्य और बड़े षड्यंत्रकारियों के बारे में जानने का इंतजार कर रहा है।

“घटना हुई और एक सप्ताह तक 1.4 अरब लोगों के देश को इसके बारे में पता ही नहीं चला। जरा सोचिए कि ऐसी कितनी घटनाएं हुई होंगी। ऐसी हर घटना का असर आम आदमी पर पड़ता है।”

उपराष्ट्रपति ने मामले की प्रारंभिक रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की सराहना की। उन्होंने कहा कि इससे कुछ हद तक भरोसा लौटा है। 08 मई को तत्कालीन सीजेआई खन्ना ने इन-हाउस कमेटी के निष्कर्षों को भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा था। यह तब हुआ जब न्यायमूर्ति वर्मा ने पैनल द्वारा अभियोग लगाए जाने के बाद भी न्यायाधीश पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने कहा कि “दंड से मुक्ति का एक ढांचा” खड़ा हो गया है, जिसने “जवाबदेही और पारदर्शिता के सभी उपायों को बेअसर कर दिया है”, और अब इसे बदलने का समय आ गया है।

“आज नाम सामने आ रहे हैं। कई अन्य लोगों की प्रतिष्ठा कमज़ोर हो गई है। एक बार जब दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जाएगा, तो सिस्टम शुद्ध हो जाएगा, इसकी छवि बदल जाएगी। जब तक कोई साबित न हो जाए, तब तक हर कोई निर्दोष है। यह घटना आज सिस्टम की बीमारी का ठोस उदाहरण है।”

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