मुंबई. केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि १३ मई १९५२ को देश की पहली चुनी हुई सरकार के लिए संसद के सत्र का प्रथम दिन था, जिसने देश के स्वाधीन जीवन की नींव रखी थी. आज भी वही १३ मई है, जब संस्कार भारती सिने टॉकीज़ नामक दो दिवसीय आयोजन कर रही है, जिसके विचार- मंथन से देश का सिनेमा राष्ट्र के निर्माण में अपने अधिकतम योगदान की प्रेरणा पाएगा. वे संस्कार भारती -मुंबई विश्वविद्यालय तथा इंदिरा गांधी कला केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय सिने टॉकीज़ कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने विवेकानंद एवं मैना देवी प्रकरण का वर्णन करते हुए दृश्य श्रव्य माध्यम की महत्ता को रेखांकित किया. विवेकानंद जी बड़े महापुरूष थे, लेकिन वे खेतड़ी के एक नाटक कार्यक्रम में सम्मिलित होने से मना कर देते हैं. वे मैनाबाई का गायन सुनना नहीं चाहते, राजा अरिजीत सिंह जी के दबाव पर भी न आए. मैना बाई ने विवेकानंद को चुनौती दी, मेरे अंदर बैठा नर व नारायण आपको दिखता क्यों नहीं. स्वामी साधना कक्ष जाते हुए रूक जाते हैं, यह सुनकर कि ‘प्रभु मेरे अवगुण चित्त न धरो’. सभा में स्वामी विवेकानंद रो रहे थे और मैना बाई रो रही थी. जैसे भजन पूरा हुआ स्वामी जी ने क्षमा मांगी.
१३ मई, १९५२ को पहली बार चुनी हुई सरकार की पहली संसद बैठी थी. उसमें चर्चा हुई – पहले चुनाव में कम मतदान हुआ, अगर सिनेमा हॉल में विज्ञापन दें तो लोग मतदान का महत्व समझेंगे.
भीलों ने एक माह तक अंग्रेजों को रोके रखा. १७ मई, १९१३ को १५०० भीलों का बलिदान, कानपुर के विठूर का विद्रोह. १८५७ में, पहलवान गंगू मेहतर में हाथ में तलवार लेकर २०० अंग्रेजों को मार डाला. सोये हुए स्थिति में अंग्रेजों ने पकड़कर पेड़ पर फांसी दी. ये ऐसी घटनाएँ हैं, जिन पर फिल्म अवश्य बनाई जानी चाहिए.
मेघवाल ने आशा व्यक्त की कि इस दो दिवसीय कार्यक्रम में निश्चय ही मंथन से अमृत निकलेगा और देश को विश्वगुरु बनाने में सहयोगी होगा.
प्रख्यात अभिनेता-निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि सिनेमा में भारतीयता होना आवश्यक है.
विशिष्ट अतिथि प्रख्यात अभिनेत्री -निर्देशक व सेंसर बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष आशा पारेख ने कहा कि सिनेमा सृष्टि से जुड़े रहने का अभिमान है. हमारा देश विविधताओं से भरा है. सिने टॉकीज़ का प्रभाव बढ़ेगा. सिनेमा पहले मनोरंजन का माध्यम था, अब वह विचारों का निर्माण करने का यंत्र है.
इससे पूर्व आयोजन के सलाहकार समिति के सदस्यों के वी विजेंद्र प्रशाद, जाह्नु बरुआ, विक्टर बनर्जी, वामन केंद्रे का अभिनंदन किया गया. नई दुनिया (इंदौर) के फिल्म संपादक स्वर्गीय श्रीराम ताम्रकर द्वारा लिखी पुस्तक ‘एनसायलक्लोपीडिया ऑफ इंडियन सिनेमा’ का विमोचन किया गया.
इंदिरा गांधी कला केंद्र के सचिव सच्चिदानंद जोशी ने उद्घाटन -सत्र में कहा कि यह महत्वपूर्ण आयोजन है. पढ़ने पर १५-२०%, सुनकर ३०% और ऑडियो वीडियो का प्रभाव ६०% बना रहता है. एवी कंटेंट की दिमाग पर रिटेंशन ज्यादा होती है. यह नेरेटिव्स बनाने का दौर है, इसलिए आवश्यक है कि भारतीय सिनेमा के प्रति चिंता हमारा कर्तव्य है. यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि चेतना फैलाने के लिए बहुत प्रभावी माध्यम है. यह महत्वपूर्ण अकादमिक आयोजन है. मंत्री अर्जुन जी प्रख्यात लोकगायक भी हैं. आगे आने वाली लड़ाई विचारों की है, सेना की तरह बुद्धिजीवी समाज को नरेटिव की लड़ाई खुलकर लड़नी होगी.
मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुभाष पेडनेकर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाली फिल्मों के निर्माण की आवश्यकता है. मुंबई विश्वविद्यालय ने ६ भारत रत्न और अनेक पद्म सम्मान से विभूषित व्यक्तित्वों को गढ़ा है. दृश्य श्रव्य माध्यम के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए मुंबई विश्वविद्यालय निकट भविष्य में इससे जुड़े पाठ्यक्रम शुरू करेगा.
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. कोंकण प्रांत संस्कार भारती की टीम ने ध्येय गीत प्रस्तुत किया.