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संस्कृत जितनी समृद्ध व सशक्त होगी, देश की हर भाषा व बोली को उतनी ही ताकत मिलेगी

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नई दिल्ली। दिल्ली में संस्कृत भारती द्वारा आयोजित 1008 संस्कृत सम्भाषण शिविरों के सामूहिक समापन समारोह में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता सहित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

गृहमंत्री ने कहा कि संस्कृत भारती ने 1008 संस्कृत सम्भाषण शिविरों के आयोजन का एक बहुत साहसिक काम किया है। संस्कृत के ह्रास की शुरूआत गुलामी के कालखंड से पहले ही हो गई थी और इसके उत्थान में भी समय लगेगा। आज देश में संस्कृत के उत्थान के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती वर्ष 1981 से संस्कृत में उपलब्ध ज्ञान के भंडार को विश्व के सामने रखने, लाखों लोगों को संस्कृत बोलने और संस्कृत में प्रशिक्षित करने का काम कर रही है। दुनिया के कई महान विचारकों ने संस्कृत को सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में स्वीकार किया है। हमें संस्कृत के ह्रास के इतिहास को स्मरण करने की जगह संस्कृत के उत्थान के लिए काम करना चाहिए।

पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रूपये के आधार कोष कोष के साथ ज्ञान भारतम अभियान की शुरूआत की है और हर बजट में इसके लिए एक निश्चित राशि आवंटित की जाएगी। अब तक 52 लाख से अधिक पांडुलिपियों का डॉक्यूमेंटेशन, साढ़े तीन लाख पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया गया है औऱ namami.gov.in पर 1,37,000 पांडुलिपियां उपलब्ध कराई गई हैं। दुर्लभ पांडुलिपियों का अनुवाद और उनके संरक्षण के लिए हर विषय और भाषा के विद्वानों की टीम गठित की गई है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत के उत्थान, प्रचार-प्रसार और इसमें उपलब्ध ज्ञान को संकलित कर सरल रूप में लोगों के सामने रखने में ही दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान निश्चित रूप से मिल सकता है। संस्कृत भारती ने अब तक 1 करोड़ लोगों को संस्कृत बोलने से परिचित कराने का काम किया है, एक लाख से अधिक संस्कृत सिखाने वाले लोगों को प्रशिक्षित किया, 6 हज़ार परिवार ऐसे बने हैं जो आपस में सिर्फ संस्कृत में बात करते हैं। संस्कृत भारती के 26 देशों में 4500 केन्द्र बने हैं और 2011 में विश्व के सबसे पहले विश्व संस्कृत पुस्तक मेले का आयोजन भी संस्कृत भारती ने किया था।

उन्होंने कहा कि उज्जैन में 2013 में साहित्योत्सव को भी संस्कृत भारती ने ही आयोजित किया था। संस्कृत भारती के इन प्रयासों से न सिर्फ देश की जनता के मन में संस्कृत के प्रति रूचि बढ़ी है, बल्कि धीरे धीरे संस्कृत की स्वीकृति भी बढ़ रही है। हम किसी भी भाषा का विरोध नहीं करते, लेकिन कोई अपनी मां से कटकर नहीं रह सकता और देश की लगभग सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है। संस्कृत जितनी समृद्ध औऱ सशक्त होगी, उतनी ही देश की हर भाषा औऱ बोली को ताकत मिलेगी।

आज 1008 संस्कृत संभाषण शिविरों का समापन हुआ है। इसके तहत 23 अप्रैल से लेकर 10 दिन तक 17 हज़ार से ज़्यादा लोगों का संस्कृत से परिचय हुआ और उन्होंने संस्कृत बोलने का अभ्यास भी किया।

संस्कृत भारत की आस्था, परंपरा, सत्य, नित्य और सनातन है। ज्ञान और ज्ञान की ज्योति संस्कृत में ही समाहित है। भारत की अधिकतर भाषाओं की जननी संस्कृत ही है और इसीलिए संस्कृत को आगे बढ़ाने का काम न सिर्फ संस्कृत के, बल्कि भारत के उत्थान के साथ भी जुड़ा है। अनेक विषयों में हज़ारों सालों से जो चिंतन मंथन हुआ और अमृत निकला है, उसे संस्कृत में ही संग्रहित कर रखा गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत में रचे गए वेद, उपनिषदों और अनेक प्रकार की पांडुलिपियों में रचा गया ज्ञान पूरी दुनिया के लिए उपलब्ध होना चाहिए और संस्कृत भारती द्वारा किया जा रहा प्रयास इस दिशा में पहला कदम है।

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