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गोपालन की नई नीति गोवंश के लिए संकट

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जयपुर. राजस्थान में पहले ही गोतस्करी थमने का नाम नहीं ले रही और अब प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने शहरों को साफ-सुथरा रखने के नाम पर गोवंश पालने की जो नई नीति जारी की है, उससे गोवंश की तस्करी की आशंका और बढ़ गई है.

राज्य की कांग्रेस सरकार का गोवंश को लेकर जिस तरह का रवैया रहा है, वह पूरा प्रदेश देख रहा है. कहने को तो सरकार गोवंश के संरक्षण के नाम पर कई तरह की घोषणाएं कर चुकी है, लेकिन इनमें से अधिकतर घोषणाएं जमीन पर नहीं आई हैं और अब इसी बीच सरकार नगरपालिका अधिनियम के अंतर्गत नए नियम ले कर आ गई है.

देखने में तो लगता है कि बस एक लाइसेंस लो और गाय / भैंस पालो, सिर्फ गाय या भैंस रखने के स्थान की साफ-सफाई का ध्यान रखना पड़ेगा. लेकिन जब इस आदेश की परतें खोलते हैं तो दूसरी तस्वीर ही सामने आती है और यह आदेश कहीं ना कहीं गोवंश की तस्करी को बढ़ावा देने वाला लगता है.

नए नियम कहते हैं कि नगर पालिका, नगर परिषद और नगर निगम स्तर के सभी शहरों में अब घर में एक ही गाय और उसका बच्चा रखा जा सकेगा. इसके लिए लाइसेंस लेना होगा, जिसका प्रति वर्ष नवीनीकरण कराना होगा. एक से अधिक गोवंश पाए जाने पर लाइसेंस निरस्त कर दिया जाएगा और जुर्माना भी लगेगा. इसके साथ ही गोवंश रखने के लिए कम से कम सौ वर्ग गज की जगह आवश्यक होगी. जिसमें निर्धारित आकार का शेड लगाना होगा और साफ सफाई का पूरा ध्यान रखना होगा.

ये नए नियम प्रदेश के सभी 213 छोटे-बड़े शहरों में लागू होंगे. यानि जो नियम बस्सी जैसे छोटे कस्बे पर लागू होंगे, वही टोंक जैसे जिला मुख्यालय और जयपुर जैसे महानगर पर भी लागू होंगे. यानि कस्बों के लोग भी एक से अधिक गोवंश नहीं रख पाएंगे और बड़े शहरों के लोग भी एक से अधिक गोवंश नहीं रख सकेंगे. अब इससे कठिनाइयां क्या पैदा होंगी, शायद इसे सरकार ने गम्भीरता से नहीं लिया.

तर्कसंगत रूप से देखें तो छोटे शहरों में लोगों के पास जगह ज्यादा होती है और वे अधिक गोवंश रख सकते हैं. लेकिन अब वे जगह ज्यादा होने के बावजूद एक से अधिक गोवंश नहीं रख सकेंगे और ऐेसे में अतिरिक्त गोवंश उन्हें या तो ग्रामीण क्षेत्रों में रखने के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा या फिर उसे बेचना पड़ेगा. वहीं बड़े शहरों में 95 प्रतिशत लोगों के पास गोवंश रखने के लिए सौ वर्ग गज की अतिरिक्त जगह है ही नहीं. लोग स्वयं औसतन 70-80 वर्ग गज के मकान या फ्लैट में रह रहे हैं. ऐसे में जिन लोगों के पास गोवंश था भी तो उन्हें पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण उसे बेचना पड़ेगा. यानि दोनों ही स्थितियों में अतिरिक्त गोवंश को रखने के लिए गोपालकों को या तो अतिरिक्त व्यवस्था करनी होगी या उसे बेचना होगा जो अंतत गोतस्करी व गोकशी को बढ़ावा देगा.

वैसे भी राजस्थान में अलवर और भरतपुर जिले में स्थित मेवात का क्षेत्र गोतस्करी और गोकशी का बड़ा केन्द्र बन चुका है. यहां हर रोज गोतस्करी के मामले सामने आते हैं और पुलिस व गोतस्करों के बीच मुठभेड़ व फायरिंग जैसी घटनाएं सामान्य बात हैं.

प्रदेश में गोतस्करी की सबसे ज्यादा घटनाएं इसी क्षेत्र मे होती हैं. तस्करों को पांच से छह गोवंश तस्करी करने के लिए एक से ढाई लाख रुपये तक मिल जाते हैं. ऐसे में गाय चोरी करने या बेसहारा गोवंश को उठाने की फिराक में लगे रहते हैं.

हरियाणा का नूंह क्षेत्र गो-वध का बड़ा केन्द्र है और जब से उत्तर प्रदेश में गो-वध को लेकर सख्ती हुई है सारा गो-वंश तस्करी हो कर यहीं पहुंच रहा है. ऐसे में सरकार का यह आदेश इस क्षेत्र के गोतस्करों और कसाइयों के वारे-न्यारे कर देगा. फिर दूध की कमी तो पहले ही है. सरकार के इस निर्णय से गोपालन में कमी आएगी, इससे शुद्ध दूध का संकट भी बढ़ेगा. जिससे सिंथेटिक दूध के बाजार को बढ़ावा मिलेगा.

प्रदेश की कांग्रेस सरकार यदि गोवंश के प्रति वास्तव में चिंतित है और इसका संरक्षण करना चाहती है तो उसे इस आदेश में संशोधन करना चाहिए. बड़े शहरों में एक गोवंश की सीमा ठीक मानी जा सकती है, लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में यह सीमा नहीं रखी जानी चाहिए, क्योंकि वहां अब भी स्थान की कमी नहीं है. वैसे भी सभी तरह के शहरों के लिए एक ही जैसा नियम तार्किक नहीं है. इसी तरह बड़े शहरों में भी एक गोवंश के लिए सौ वर्ग गज के स्थान की उपलब्धता की शर्त भी हटानी चाहिए. इसके स्थान पर सफाई सम्बन्धी नियम कड़ाई से लागू करने चाहिए.

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