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हमारे संविधान की आत्मा भारतीय है – अभिजीत द्विवेदी

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भोपाल. भारत का संविधान पूरी तरह से भारतीय मूल्यों और ज्ञान परंपरा पर आधारित है. अक्सर कहा जाता है कि भारतीय संविधान विदेशी संविधानों से लिया गया पेचवर्क मात्र है. परन्तु यह बात पूरी तरह से गलत है. ऋग्वेद की ऋचाओं में समता के सूत्र मिलते हैं. भारत विश्व का प्राचीन लोकतंत्र रहा है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहायक प्राध्यापक एवं विधि विशेषज्ञ अभिजीत द्विवेदी ने “संविधान की आत्‍मा: भारतीय संस्‍कृति” विषय पर विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित वेब संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया.

उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने देश के संविधान का निर्माण भारत की अपेक्षाओं, आवश्यकताओं और भविष्य को देखते हुए किया है. विधायिका, न्यायपालिका की व्यवस्था हमारे देश में पहले से ही थी. संविधान में जो अंग्रेजी शब्द उपयोग में लाये गए हैं, वे पूरी तरह से भारतीय विचार के हैं. हमें अपने मूल्यों को देखकर संविधान को समझने की जरूरत है. संविधान की आत्मा भारतीय है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण संविधान में विभिन्न पृष्ठों पर अंकित चित्रों को देखा जा सकता है. हमारा संविधान सभी को साथ लेकर चलता है जो भारत की सांस्कृतिक परंपरा का मूल अंग है.

उन्होंने कहा कि संविधान के विभिन्न पृष्ठों पर शांति निकेतन के प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस ने जो चित्र दिए हैं, उनमें भारत का इतिहास, संस्कृति और ज्ञान परम्परा समाहित है. यह हमारे संविधान की बड़ी विशेषता है. इन चित्रों को सम्मिलित करते समय संविधान निर्माताओं ने भारतीयता के दृष्टिकोण का पूर्णत: ध्यान रखा था. इन चित्रों में वैदिक आश्रम व्यवस्था, रामायण में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के पुष्पक विमान से अयोध्या लौटने, गीता में भगवान् कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक, गुप्तकालीन प्रतिमाएं, महाराजा विक्रमादित्य, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़ीसा की प्रतिमाएं, नटराज प्रतिमा, महाबलीपुरम, छत्रपति शिवाजी, गुरुगोविंद सिंह, महारानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, हिमालय, सहित अन्य को संविधान में स्थान दिया है.

कार्यक्रम का संचालन विश्व संवाद केंद्र सह-सचिव कृपाशंकर चौबे द्वारा किया गया. वेब संगोष्ठी में विभिन्न प्रान्तों के विश्व संवाद केंद्र, वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवियों की उपस्थिति रही. संगोष्ठी में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ता कैलाशचन्द्र जी द्वारा संविधान सभा के इतिहास पर विस्तृत चर्चा की गई.

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