डॉ. पवन सिंह मलिक
आज शिक्षक दिवस है और हममें से कोई भी ऐसा नहीं, जिसके जीवन में इस शब्द का महत्व न हो. हम आज जो कुछ भी हैं या हमने जो कुछ भी सिखा या जाना है, उसके पीछे किसी न किसी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग व उसे सिखाने की भूमिका रही है. इसलिए आज का दिन प्रत्येक उस व्यक्तित्व के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का व उन सीखे हुए मूल्यों के आधार पर खुशहाल समाज निर्माण में अपनी भूमिका तय करने का दिन भी है. शिक्षक यानि गुरु शब्द का तो अर्थ ही अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाने वाला है. भारत में नई शिक्षा नीति 2020 का श्री गणेश भी हो चुका है. पूरी शिक्षा नीति को देखने पर ध्यान आता है कि उसके क्रियान्वयन व सफल तरीके से उसे मूर्त रुप देने का अगर सीधा-सीधा किसी का नैतिक दायित्व बनता है तो वह शिक्षक का ही है. वर्तमान के आधार को मजबूत करते हुए, भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को चरितार्थ करने व भारत को आगे बढ़ाने के सपनों को अपनी आँखों में भर कर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा व भाव जागरण का आधार भी शिक्षक है.
जीवन का दायित्वबोध है शिक्षक
शिक्षक जो जीवन के व्यावहारिक विषयों को बोल कर नहीं, बल्कि स्वयं के उदाहरण से वैसा करके सिखाता है. शिक्षक जो बनना नहीं गढ़ना सिखाता है. शिक्षक जो केवल शिक्षा नहीं, बल्कि विद्या सिखाता है. शिक्षक केवल सफल होना नहीं, असफलता से भी रास्ता निकाल लेना सिखाता है. शिक्षक जो तर्क व कुतर्क के अंतर को समझाता है. शिक्षक जो केवल चलना नहीं, गिरकर उठना भी सिखाता है. शिक्षक जो भविष्य की चुनौतीयों के लिए तैयार होना सिखाता है. शिक्षक जिसे समाज संस्कार, नम्रता, सहानुभूति व समानुभूति की चलती फिरती पाठशाला मानता है. कहा जाता है कि एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर होता है…एक बार सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कुछ छात्रों और दोस्तों ने उनका जन्मदिवस मनाने की इच्छा व्यक्त की, इसके जवाब में डॉ. राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाय इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे बहुत गर्व होगा. इसके बाद से ही पूरे भारत में 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन महान शिक्षाविद को हम सब याद करते हैं.
एक नज़र डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली
डॉ. राधाकृष्णन ने 12 साल की उम्र में ही बाइबिल और स्वामी विवेकानंद के दर्शन का अध्ययन कर लिया था. उन्होंने दर्शन शास्त्र से एम.ए. किया और 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई. उन्होंने 40 वर्षो तक शिक्षक के रूप में काम किया. वह 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे और 1939 से 1948 तक वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे. उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया. साल 1952 में उन्हें भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति बनाया गया और भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बनने से पहले 1953 से 1962 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. इसी बीच 1954 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया. डॉ. राधाकृष्णन को ब्रिटिश शासनकाल में ‘सर’ की उपाधि भी दी गई थी. इसके अलावा 1961 में इन्हें जर्मनी के पुस्तक प्रकाशन द्वारा ‘विश्व शांति पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था. अत: हम कह सकते है कि वे जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे और उन्होंने अपना जन्मदिवस भी इसी परिपाटी का पालन करने वाले शिक्षकों के लिए समर्पित कर दिया.
शिक्षा को मिशन का रूप देना होगा
डॉ. राधाकृष्णन अक्सर कहा करते थे, शिक्षा का मतलब सिर्फ जानकारी देना ही नहीं है. जानकारी का अपना महत्व है. लेकिन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है, क्योंकि इन भावनाओं के साथ छात्र उत्तरदायी नागरिक बनते हैं. वे मानते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होगा, तब तक शिक्षा को मिशन का रूप नहीं मिल पाएगा. आज शिक्षा को मिशन बनाना होगा. शिक्षा की पहुंच इस देश के अंतिम घर के अंतिम व्यक्ति तक होनी चाहिए. इसके लिए केवल शिक्षकों को ही नहीं समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी. प्रत्येक व्यक्ति जो अपने आपको शिक्षा देने में सक्षम समझता है, उसे आगे आना होगा. अपने यहाँ अधिक से अधिक मोहल्ले एवं ग्रामीण शिक्षा केंद्र संचालित करने की चुनौती को उसे स्वीकार करना होगा. ताकि समाज का कोई भी वर्ग या स्थान शिक्षा से वंचित न रहे. उसे प्रतिदिन या सप्ताह में कुछ समय शिक्षा जैसे पुनीत कार्य के लिए लगाना होगा. इस कार्य के लिए उसे अपने जैसे बहुत से लोगों को खड़ा करना होगा व इस अभियान में सहयोगी बनने के लिए उनका भाव जागृत करना होगा.
शिक्षा स्व-रोज़गार के लिए
शिक्षक के नाते अब हमें शिक्षा को क्लास रूम से बाहर ले जाने की पहल करनी होगी, यानि उसकी व्यावहारिकता पर ज्यादा ध्यान देना होगा. विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास को अपनी प्राथमिकता में लाना होगा. विद्यार्थी का कौशल उसके जीवन का हिस्सा बन सके और आगे उसे रोज़गार से जोड़ा जा सके. शिक्षा को फ़ॉर्मल एजुकेशन के साथ – साथ अनौपचारिक यानि इन-फ़ॉर्मल एजुकेशन बनाने की ओर भी अब हमें अपने प्रयासों को अधिक गति से बढ़ाने की आवश्यकता है. कोविड ने हमें आज इस विषय की ओर देखने की दृष्टि भी दी है ताकि भविष्य में किसी विकट परिस्थिति व आर्थिक संकट के समय स्व-रोज़गार के आधार पर हम आत्मनिर्भरता की भावना के साथ उस परिस्थिति का सामना कर सकें.
सच्ची अभिव्यक्ति व प्रेरक शक्ति का दिन
तो आईये, आज शिक्षक दिवस के दिन इन सभी बातों का पुन: स्मरण कर, अपने हौसलों की उड़ान को और बढ़ाते है. शिक्षक के दायित्वबोध को और अधिक संकल्प के साथ निभाते है. डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली के जीवन के विभिन्न प्रेरक पहलुओं से सीख लें, प्रत्येक व्यक्ति तक शिक्षा को ले जाने के अपने प्रयास को गति देते है. मैं से प्रारंभ कर इस शिक्षा रुपी अलख को लाखों – लाखों का सपना बनाते हैं. वास्तव में शिक्षक होने के नाते आज शिक्षक दिवस के दिन डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली के प्रति यही हमारी सच्ची अभिव्यक्ति व प्रेरक शक्ति होगी.
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं)