नई दिल्ली. अफगानिस्तान में महिलाओं को अधिकार और हर क्षेत्र में अवसर देने के तालिबान के दावों की सच्चाई सामने आने लगी है. तालिबान ने महिला एंकरों पर प्रतिबंध लगा दिया है. टीवी पर विदेशी शो का टेलीकास्ट रोक दिया गया है. सरकारी चैनलों से इस्लामी संदेश दिए जा रहे हैं. बाजारों में लगी महिलाओं की तस्वीरों पर कालिख पोत दी जा रही है.
रिपोर्ट्स के अनुसार तालिबान ने अफगानिस्तान के टॉप मीडिया अधिकारी की हत्या पूरे मुल्क पर कब्जे से पहले ही कर दी थी. करीब दो हफ्ते पहले तालिबानियों ने अफगानिस्तान के मीडिया एंड इन्फॉर्मेशन सेंटर के चीफ दावा खान मेनापाल का कत्ल कर दिया था. दावा खान को शुक्रवार को मारा गया था. दावा खान अफगान सरकार के कट्टर समर्थक थे और हमेशा ही तालिबान विरोधी रहे.
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि महिला अधिकारों की हिफाजत की जाएगी. लेकिन एक हफ्ता पहले ही अफगानिस्तान के सरकारी चैनल ज्वाइन करने वाली महिला एंकर खदीजा अमीन को निकाल दिया है. चैनल के अधिकारियों ने खदीजा से कहा कि सरकारी चैनल में महिलाएं काम नहीं कर सकती हैं.
खदीजा ने कहा, ‘अब मैं क्या करूंगी. भविष्य की पीढ़ी के पास कुछ नहीं होगा. 20 साल में हमने जो कुछ भी हासिल किया है, वो सब कुछ चला जाएगा. तालिबान, तालिबान ही रहेगा. वो बिल्कुल नहीं बदला है.’
काबुल स्थित रेडियो टेलीविजन अफगानिस्तान में काम करने वाली एंकर शबनम दावरान को भी काम करने से मना कर दिया गया है. शबनम ने कहा – बुधवार को मैं हिजाब पहनकर और आईडी लेकर दफ्तर पहुंची. वहां मौजूद तालिबानियों ने मुझसे कहा कि सरकार बदल चुकी है. आपको यहां आने की इजाजत नहीं है. घर जाइए.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार महिलाओं को अधिकार और शिक्षा देने जैसी बातें केवल दिखावा है. वस्तुस्थिति ये है कि बाजारों में भी जहां महिलाओं की तस्वीरें दिखाई पड़ रही हैं, तालिबानी उन पर कालिख पोत रहे हैं.
तालिबान भले ही वीमन फ्रैंडली होने की बात कह रहा हो, लेकिन सच्चाई ये है कि वो हर जगह महिलाओं की मौजूदगी पर पहरा बैठा रहा है. अफगानिस्तान में पली-बढ़ी होमीरा रेजाई ने बीबीसी को बताया कि मुझे काबुल से खबरें मिल रही हैं. वहां तालिबानी घर-घर जाकर महिला एक्टिविस्टों की तलाश कर रहे हैं. महिला ब्लॉगर्स, यूट्यूबर्स की भी खोज की जा रही है ताकि उन पर बंदिश लगाई जा सके. होमीरा ने बताया कि तालिबानी हर उस महिला को तलाश कर रहे हैं, जो अफगानिस्तानी समाज के विकास से जुड़ा कोई काम कर रही हो.
1996 से 2001 का दौर लौटा
1996 से 2001 तक जब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन था, तब भी औरतों और बच्चियों के स्कूल या काम पर जाने की मनाही थी. उन्हें अपना चेहरा ढंकना पड़ता था और बाहर निकलते वक्त घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी था. महिलाओं को रेडियो, टेलीविजन या किसी सभा या सम्मेलन में जाने की इजाजत नहीं थी. घर से बाहर उन्हें ऊंची आवाज में बोलने की भी इजाजत नहीं थी, क्योंकि दूसरा व्यक्ति उनकी आवाज नहीं सुन सकता था.