मुंबई. कहा जाता है — मन के हारे हार है, मन के जीते जीत….सकारात्मकता और दृढ़ संकल्प के बल पर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है. कोरोना के खिलाफ जंग में भी सकारात्मकता, आत्मविश्वास कारगर साबित हो रही है. अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिल रहे हैं, जिनमें आत्मविश्वास के बल पर अधिक आयु के व्यक्ति व गंभीर बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति भी कोरोना संक्रमण से उबरने में सफल हुए हैं. जबकि अधिक आयु के व्यक्तियों, अन्य गंभीर बिमारियों से ग्रसित व्यक्तियों के लिए ही कोरोना संक्रमण घातक बताया जा रहा है.
बेलकुंड के हरिश्चंद्र सालुंखे, ने ९९ वर्ष की आयु में आत्मविश्वास के बल पर कोरोना को हराया. सालुंखे बताते हैं कि होम आईसोलेशन के नियमों का पालन ठीक ढंग से करने के कारण मैं कोरोना संक्रमण से मुक्त हो गया हूँ. समुपदेशन, घर का पौष्टिक खाना और समय पर दवाईयाँ तो थी हीं, इस के साथ ही जीवन की ओर देखने का सकारात्मक दृष्टिकोण हो तो कोरोना क्या, आप को कोई भी नहीं हरा सकता.
सालुंखे के समान ही कोरोना को चित्त करने डॉ. भीमराव कुलकर्णी, ठीक होने के बाद फिर से अपने भाषांतर (अनुवाद) के काम में जुट गए हैं. डॉ. कुलकर्णी ने चारों वेदों का मराठी में भाषांतर किया है और वे अब उपनिषदों के भाषांतर पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. डॉक्टरों का पूरा ध्यान और रुग्णालय में चिकित्सा से ३० दिनों में कोरोनामुक्त हो गया हूँ. संस्कृत का प्राचीन वाङ्मय मराठी में लाने का मेरा काम आज भी बाकी है व उसे पूरा करना मेरा ध्येय है. अभी-अभी १८ मई को डॉ. कुलकर्णी ने ९९ वर्ष में प्रवेश किया है.
मिरज में रहने वाली ९३ वर्षीय लीला वाघमोडे ने भी कोरोना को मात दी. समय पर दवाई लेना, डॉक्टरों की सूचनाओं का पालन, से कोरोना को मात देने में सफल रहीं.
उन्हीं की आयु की डोंबिवली की सुंदरबाई भोईर. कोरोना का संसर्ग, ऑक्सीजन सेच्युरेशन ७० तक नीचे आ गया था. छाती में इन्फेक्शन, ऐसी गंभीर स्थिति में भी ९३ वर्ष की सुंदरबाई ने कोरोना को मात देकर पूरी तरह से ठीक हो गईं. उन्होंने मन को मजबूत कर यह कमाल कर दिखाया.
लातूर के सेवानिवृत्त प्राचार्य शंकर मांडे ने ८३ वर्ष की आयु में कोरोना को हराया. रुग्णालय में एडमिट करते समय शंकर गुरुजी का ऑक्सीजन सेच्युरेशन ६९ पर आ गया था. उन्होंने कहा, दैनंदिन व्यायाम, पौष्टिक आहार, प्रबल इच्छाशक्ति और सकारात्मक विचार आपको कोरोना से मुक्त कर सकते हैं. इसके बल पर ही वे भी कोरोना को हरा पाए.
किसी भी बीमारी के उपचार में मनोबल का महत्वपूर्ण योगदान रहता है. प्रियंका कांबडे ने मनोबल को मजबूत रखा. काकडपाडा में रहने वाली प्रियंका कांबडे और उसके परिजन कोविड केयर सेंटर में दाखिल हुए. पिता तो पहले ही गुजर गए थे. कोरोना काल में माता और भाई भी कोरोनाग्रस्त, ऐसी स्थिति में प्रियंका की तबीयत भी बिगड़ गई. ऑक्सीजन लेवल ४५ पर आ गया. ऐसे में कोरोनामुक्त हो चुकी माता ने उसका मनोबल बढ़ाया और भारतमाता रुग्ण सेवा समिति ने आधार दिया और अब प्रियंका पूरी तरह से ठीक हो गई है.
उपरोक्त उदाहरण संकट काल में सकारात्मकता का संचार करते हैं. मन को विश्वास देते हैं कि ये दिन भी बीत जाएंगे. बस, आवश्यकता इतनी सी है कि कोरोना संक्रमण का शिकार हो जाएं तो चिकित्सकीय उपचार के साथ ही मन को भी मजबूत बनाए रखें.