प्यार पहली नजर का बुखार होता है. लेकिन, कई बार ये बुखार अपने पीछे एक ऐसा बीमार छोड़ जाता है जो न सिर्फ अपने परिवार को, बल्कि आसपास के पूरे समाज को संक्रमित कर देता है. फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर एजेंडा फिल्म होने के आरोप लगाए जा रहे हैं. पर, ये कहानी चार युवतियों की है. सच्ची कहानी किसी एक भारतीय युवती की भी है तो भी इसे दिखाया ही जाना चाहिए. कारण, सिनेमा जनमानस की धारणा को बदलने की ताकत रखता है.
लव जिहाद की असल कार्यशैली
‘लव जिहाद’ शब्द के प्रयोग पर कई लोगों को गंभीर आपत्ति रही है. लेकिन, फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ सिरे से समझाती है कि इसे कैसे अंजाम दिया जाता है. फिल्म खत्म होने के बाद उन परिवारों के लोगों के असल इंटरव्यू दिखाए गए हैं, जिनके साथ ये सब हो चुका है. एक हंसते खेलते परिवार की युवती शालिनी जिसे अपनी संस्कृति, अपने परिवार, अपने रहन सहन और अपने आस पड़ोस से प्यार है. नर्स बनने के लिए वह नर्सिंग कॉलेज आती है. हॉस्टल में उसकी जिन युवतियों से दोस्ती है, उनमें से एक उसे एक ऐसे रास्ते पर ले जाने का तानाबाना बुनती है, जहां से वापसी की राह ही नहीं है. केरल से श्रीलंका, श्रीलंका से अफगानिस्तान और अफगानिस्तान से सीरिया का उसका सफर वहां आकर थमता है, जहां उसके जैसी तमाम लड़कियां आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के कैंप में सिर्फ इसलिए जमा की गई हैं कि वे इन आतंकवादियों की देह की भूख मिटा सकें.
सिहरा देने वाली कहानी
फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ शुरू होते ही बताती है कि जिन युवतियों की कहानियों पर ये फिल्म बनी है, उनके घर वालों ने कैमरे पर अपनी आपबीती सुनाई है. शुरू शुरू में तो लगता है कि ये एक ऐसी फिल्म है, जिसे किसी खास राजनीतिक उद्देश्य से ही बनाया गया है. लेकिन, जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, ये दर्शकों को अपने साथ जोड़ने लगती है. दिखावे के हमले, दिखावे की सहानुभूति और दिखावे के प्रेम से युवतियों को बरगलाया जाता है. इस्लाम के मायने तोड़ मरोड़कर समझाए जाते हैं. यहां तक कि हिन्दू देवी देवताओं और ईसा मसीह के बारे में तमाम बातें कही जाती हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि अगर यही बात किसी और धर्म के बारे में कही गई होती तो क्या उस धर्म के अनुयायी भी इतने ही सहिष्णु होकर ये फिल्म देखते. जाकिर नायक जैसे धर्म प्रचारकों के हथकंडों का पर्दाफाश करती फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ खत्म होते होते एक ऐसी सच्ची घटना पर आधारित फिल्म बन जाती है, जिसे कहना हर कालखंड में जरूरी लगता है.
अदाकारी ने जीता दिल
अदा शर्मा फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ में मुख्य भूमिका निभा रही हैं. पहले शालिनी और फिर फातिमा के किरदार में उन्होंने फिल्म को एक तरह से अपने दोनों कंधों पर उठाए रखा है. केरल से ताल्लुक रखने वाली अपनी मां से मलयालम उन्हें घुट्टी में मिली ही है. वह परदे पर मलयालम बोलती हैं. फिल्म ‘दिल से’ के बाद ये दूसरी हिंदी फिल्म है, जिसमें मलयालम में गाने हैं और भाषा समझ में न आने के बावजूद सिर्फ अदा शर्मा के अभिनय और वीरेश श्रीवलसा के मधुर संगीत से ये गाना बहुत ही सुरुचिपूर्ण प्रभाव पैदा करने में सफल रहता है. फिल्म के रचनात्मक निर्देशक और निर्माता विपुल अमृतलाल शाह की इस बात के लिए दाद देनी चाहिए कि उन्होंने एक कठिन विषय पर फिल्म बनाते समय इसके कलाकारों के चयन में कोई समझौता नहीं किया. और, उनकी पसंदीदा अदाकारा अदा शर्मा को इस फिल्म में अभिनय के लिए आने वाले समय में पुरस्कार मिलने ही मिलने हैं.
अदा, योगिता, सिद्धि और सोनिया की चौकड़ी
फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ में शालिनी की सहेलियों के किरदार में योगिता बिहानी और सिद्धि इदनानी ने भी बहुत ही असरदार अभिनय किया है. एक कम्युनिस्ट नेता की बेटी के रोल में सिद्धि अपने किरदार का पूरा ग्राफ जीती हैं और प्रेम में डूबी लड़की से लेकर अपनी अस्मिता गंवाकर होश में आई लड़की की घुटने न टेकने वाले एलान तक के दृश्यों में उनका अभिनय नोटिस करने लायक है. योगिता बिहानी के किरदार का काम फिल्म में होशियार लड़की का है, लेकिन धोखे से जब उसके साथ भी सामूहिक बलात्कार होता है तो वह इस पूरे षडयंत्र का पर्दाफाश करने का बीड़ा उठाती है. और, इस किरदार को परदे पर योगिता ने बहुत ही खूबसूरती से पेश भी किया है. सोनिया बलानी यहां उस युवती के किरदार में है, जिसके पास साधारण घर की युवतियों को बहला फुसला कर उन युवकों के आगोश में पहुंचाने की जिम्मेदारी है जो इनका शीलभंग करके इन्हें अपने कहे रास्ते पर चलने को मजबूर कर देते हैं. अपने इस किरदार में सोनिया कभी बिंदु तो कभी अरुणा ईरानी की याद दिलाती हैं.
संतुलित निर्देशन
फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर तमाम आरोप लगे हैं. आगे भी लगते ही रहेंगे. लेकिन, इसके निर्देशक सुदीप्तो सेन ने तथ्यों पर कायम रखते हुए एक संतुलित फिल्म बनाने की अच्छी कोशिश की है. फिल्म के कुछ दृश्य काफी भयावह हैं और कमजोर दिल के लोगों को असहज भी कर सकते हैं. लेकिन ये कथानक की गंभीरता जताने के लिए जरूरी भी नजर आते हैं. विश्व सिनेमा से सुदीप्तो की नजदीकियां यहां उन्हें अपने विषय पर पकड़ बनाए रखने में पूरी मदद करती हैं. सुदीप्तो के सिनेमा के बारे में जिन्हें पता है, वह उनकी शैली के कायल ही रहे हैं. वह सिनेमा में मेलोड्रामा पनपने नहीं देते. उनके दृश्यों की नाटकीयता की भी हदें तय हैं और ये हदें ही फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को एक अच्छी फिल्म का तमगा दिलाने में मदद करती हैं. फिल्म के संगीत जैसी ही सरलता इसकी तकनीकी टीम में भी है.
साभार – अमर उजाला