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तब राजनीतिक स्वाधीनता मिली और अब सांस्कृतिक स्वाधीनता का अवसर

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अयोध्या. भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासिचव चंपत राय ने कहा कि वे 22 जनवरी 2024 के दिन को देश की सांस्कृतिक स्वाधीनता के रूप में देखते हैं. मैं निजी रूप में 22 जनवरी 2024, दिन सोमवार, पौष शुक्ल द्वादशी, इसी प्रकार से देखता हूं, जिस तरह कभी समाज ने 15 अगस्त 1947 को देखा होगा. तब देश की राजनीतिक स्वाधीनता और अब देश की सांस्कृतिक स्वाधीनता है.

कारसेवकों के बलिदान पर कहा कि “भारत बलिदानियों का देश है. अपने सम्मान के लिए भारत की महिलाओं ने समर्पण दिया. मेवाड़ को देख लीजिये, महाराणा प्रताप सम्मान के लिए कभी झुके नहीं, घास की रोटी तक खा ली. पंजाब में गुरुगोविंद सिंह और उनके साहबजादों को देख लीजिये. यह देश बलिदानियों का देश है. श्रीराम जन्मभूमि के लिए कितने बलिदान हुए, यह तो हमें 1984 के बाद से याद है, लेकिन उससे पहले जो बलिदान हुआ उसका क्या? हमारे यहां बलिदान तो कबड्डी का खेल है. चार बार मरते हैं, चार बार जीते हैं.”

News18 इंडिया के विशेष कार्यक्रम ‘अयोध्या श्रीराम महापर्व’ में भाग लेने पहुंचे तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने न्यायालय का निर्णय पक्ष में आने के विषय पर कहा कि “सत्य है तो वह जीतेगा. 1947 से पहले जिन लोगों ने बलिदान दिया, उन्हें क्या पता था कि 15 अगस्त, 1947 को यह होने वाला है. उन्होंने कर्म किया. पत्थर पर हथौड़ा मारो तो यह पता नहीं किस चोट से वह टूटेगा. 100 हथोड़ा मारो तो 101 पर वह टूट जाएगा. कार्य प्रारम्भ किया तो जितना हमारे भाग्य में लिखा है, वह मिलेगा. तो फिर चल दी टोली. एक के बाद एक चढ़ने लगे, सरकार घबरा गई. गोली चलने लगी एक गिरता तो दूसरा झंडा थाम लेता और झंडा ऊपर पहुंच गया. गंगा से न जाने कितने जल कण पशु पक्षी पी जाते हैं, कितने सूर्य की गर्मी से वाष्पित हो जाते हैं, लेकिन जल का प्रवाह नहीं थमता. मैं इसी से प्रभावित हूं.”

उन्होंने बताया कि “5 वर्ष के बालक का चित्र है. 5 वर्ष के रामलला की आंखें कैसी, कपोल कैसी, भाव भंगिमा कैसी, इसकी कल्पना की गई है. भगवान की मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच तय है. तीन मूर्तियां तैयार की गई हैं. 15 दिन के अंदर तय हो जाएगा कि कौन सी प्रतिमा लगेगी. मंदिर का गर्भ गृह तैयार है. दरवाजे भी बनकर तैयार हो गए हैं. प्राण प्रतिष्ठा के लिए दो आवश्यक बातें हैं. मंदिर का निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा.

“श्रीराम जन्मभूमि को वापस पाने के लिए जो 500 साल लगे, इसमें कितने लोगों ने बलिदान दिया मुझे नहीं पता. लेकिन 135 करोड़ लोगों ने अपना योगदान दिया है. इस आंदोलन में 15 हजार संतों ने अपने-अपने क्षेत्रों में जनजागरण का काम किया है. इसलिए यही सोचा गया है कि अधिक संख्या में संतों को बुलाया जाए. 13 अखाड़ों के अलावा अनेक तरह की परम्पराएं हैं. कम से कम 125 परंपरा के संत और साधु आएंगे. हिंदुस्तान के प्रत्येक जिले का एक न एक संत यहां होगा. 4000 संत समाज यहां होंगे. समाज जीवन के जितने क्षेत्र हैं, सबका प्रतिनिधित्व होना चाहिए. खेल, वैज्ञानिक, साहित्य, रक्षा, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, बलिदानी सैनिक के परिवार, रिटायर्ड जज और वकील के साथ फ़िल्मी हस्तियों को भी आना चाहिए. बलिदानी कारसेवकों के परिजनों को भी बुलाया जाएगा.

विपक्ष को न्योते को लेकर कहा कि राजनीतिक दलों की आलोचना को हम सुनते ही रहते हैं. देश को भी सुनना चाहिए. आपको मालूम होगा कि एक समय था, जब कोर्ट में राम को काल्पनिक बता दिया था. अयोध्या और आस-पास के सार्वजानिक जीवन में रहने वाले लोगों को जरूर बुलाएंगे. शेष राजनीतिक दलों को इतना ही कहूंगा कि जितना शांत रहेंगे, उतना अच्छा रहेगा. चुप रहेंगे तो शायद नाम आ जाएगा.

प्रधानमंत्री को निमंत्रण पर कहा कि आत्मचिंतन करो. मैं प्रधानमंत्री को 1984 के राम आंदोलन से देख रहा हूं. अगर विपक्ष न बोले तो ही बेहतर है. व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष नहीं होता. व्यवस्था धर्म निरपेक्ष होती है. कानून धर्म निरपक्ष होता है. समाज और व्यक्ति अपने-अपने धर्म का पालन करेगा.

साभार – न्यूज18

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