नई दिल्ली. द नैरेटिव द्वारा आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के दूसरे दिन ”तियानमेन चौक नरसंहार और उसके बाद का परिदृश्य” विषय पर भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी एवं रक्षा विशेषज्ञ कैप्टन आलोक बंसल ने 1989 में तियानमेन चौक पर हुए हजारों युवाओं के नरसंहार पर सारगर्भित रूप से विषय रखा.
कैप्टन आलोक बंसल ने कहा कि ‘आज मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे आप सब से बाचतीच करने का अवसर मिला. असल में हम जब चीन की बात करते हैं तो अधिकांश भारतीय जो चीन को एक अलग नजरिये से देखते हैं, दरअसल उन्हें चीन को समझने की आवश्यकता है.’ चीन का जो आम नागरिक है, वह भारत के प्रति कोई दुराग्रह नहीं रखता है.
उन्होंने 1955-56 में चले सुफान मूवमेंट के बारे में कहा कि इस दौरान चीन में रह रहे उन सभी लोगों को मारना शुरू किया गया जो लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ थे. तकरीबन 2,14,000 लोगों की गिरफ्तारी हुई. कई लोगों का कहना है कि 53,000 से भी अधिक लोग मारे गए. ऐसा कोई भी बुद्धिजीवी व्यक्ति जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं था या फिर जुड़ाव नहीं रखता था, उसके ऊपर कार्यवाही हुई.
उन्होंने चीन में हुए एक भीषण अकाल के बारे में बताया कि एक ऐसा समय आया जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन के लोगों को यह कहा कि ”अनाज उगाने की जगह सामानों का अब उत्पादन होगा. देश के कई हिस्सों में स्टील प्लांट लगाए गए और लोगों के घर पर रखे बर्तनों को स्टील में तब्दील किया जाने लगा और इसकी वजह से एक भीषण अकाल पड़ा, जिसमें 2 से 4 करोड़ लोगों की भूख की वजह से मृत्यु हो गयी.”
उन्होंने बताया कि चीन में एक संस्कृति है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु पर बड़ी संख्या में एक जगह पर इकट्ठा होकर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि दी जाती है.
उन्होंने तियानमेन चौक पर हुए नरसंहार पर कहा कि “उस वर्ष 21 अप्रैल को तकरीबन 1 लाख छात्र तियानमेन चौक की तरफ चल पड़े. बीजिंग के साथ ही आंदोलन के समर्थन में, चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के विरोध में कई अन्य शहरों में भी प्रदर्शन की शुरुआत हो गई. 22 अप्रैल को बड़े रूप में दंगा हुआ. छात्रों के आंदोलन पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर भी दो मत निकल कर आए.” एक मत का यह कहना था कि छात्रों द्वारा किए जा रहे आंदोलन के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं तो वहीं दूसरा मत यह कह रहा था कि छात्रों के साथ उदारता से पेश आया जाए.
पार्टी के महासचिव वह झाओ जियांग थे. उनका यह मत था कि छात्रों को उदारता से मनाया जाए. चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली पेंग का यह मानना था कि छात्रों के साथ सख्ती से पेश आया जाए और उनके खिलाफ कठोर कदम उठाया जाए.
जब यह दंगे हो रहे थे और इस तरीके की परिस्थितियां उत्पन्न हो रही थीं. तब महासचिव झाओ जियांग का यह मानना था कि इन संवेदनशील परिस्थितियों में विद्यार्थियों के खिलाफ कोई भी कठोर कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है.
लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन कर रहे छात्रों के साथ श्रमिक यूनियन के भी लोग शामिल हो गए थे. इसकी वजह से बहुत बड़ा हुजूम तियानमेन चौक पर जमा हो गया था.
किसी कारणवश उसी वक्त झाओ जियांग को विदेश यात्रा पर जाना पड़ा और उनकी अनुपस्थिति में चीन के प्रेसिडेंट यांगशान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिलकर के छात्रों द्वारा किए जा रहे आंदोलन पर चर्चा की.
राष्ट्रपति ने इच्छा व्यक्त की कि इस आंदोलन पर कुछ करने की आवश्यकता है. इसी के साथ कुछ दिनों बाद अन्य यूनिवर्सिटी के छात्र भी आंदोलन में सक्रियता के साथ आगे बढ़े. जहां-जहां सिक्योरिटी द्वारा अवरोधक लगाए गए थे, उन सब को तोड़ते हुए यह छात्र स्क्वायर की तरफ आगे बढ़ने लगे और सब लोग चौक पर ही इकट्ठे होने लगे. इस बीच झाओ जियांग की चीन में वापसी हो गई.
वहीं, लाखों की संख्या में लोगों का आंदोलन चौक पर चल रहा था. इन परिस्थितियों को देखते हुए मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा की गयी.
झाओ जियांग ने प्रधानमंत्री के साथ जाकर छात्रों को मनाने की कोशिश भी की. उन्होंने छात्रों से मिलकर के यह अपील की आप सभी का भविष्य है, आप आंदोलन को खत्म करें. इसकी वजह से झाओ ज़ियांग को पार्टी नेतृत्व से हटा दिया गया और पूरे जीवन नजरबंद रहने का आदेश दे दिया गया, जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो जाए. चीन के सर्वोच्च नेता को करीबन 16 साल तक नजरबंद रखा गया.
30 डिवीजन के कमांडर को जब यह आदेश दिया गया कि तियानमेन चौक को जल्द से जल्द खाली कराया जाए तो उसने मना कर दिया. कमांडर को भी नरम रुख अपनाने पर सजा भुगतनी पड़ी, उसे उनको 5 साल की जेल की सजा मिली. कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, यहां तक कि सजा पूरी कर जेल से बाहर आने के बावजूद उन्हें दूसरे प्रांत में जाकर रहने का आदेश दिया गया.
ढाई लाख आर्मी को दूसरी जगह से बीजिंग लाया गया, आर्मी को यह आदेश दिया गया कि 24 मई तक तियानमेन चौक को खाली करवाना है.
संगठित लीडरशिप आंदोलनकारियों में नहीं होने की वजह से जब मिलिट्री मूव करने लगी, तब आंदोलनकारियों को समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. इसकी वजह से सेना ने स्क्वायर को काफी हद तक खाली करवा लिया.
01 जून को चौक पर आंदोलन कर रहे छात्रों को आतंकवादी करार दे दिया गया. 02 जून को भी आंदोलनकारी छात्र वहीं डटे हुए थे. 03 जून को बहुत बड़ी संख्या में सैनिक बीजिंग में आए. 03 जून की रात से बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों ने आकर 5 जून तक पूरे स्क्वायर को खाली करवा लिया.
नरसंहार में कितने लोगों की मृत्यु हुई, इस पर लोगों के अलग-अलग मत हैं. ऐसा माना जाता है कि करीबन 10,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था. जितने भी लेबरर्स थे, उन सभी श्रमिकों को फांसी दे दी गई. आंदोलन में जो छात्र थे, उन्हें या तो देश से बाहर कर दिया गया या फिर जेल की सजा दी गई.
उन्होंने वर्तमान परिदृश्य पर बात करते हुए कहा कि चीन की यूनिवर्सिटी में उस भयानक नरसंहार के बारे में कोई चर्चा नहीं होती है. यहां तक कि चीन की किसी भी यूनिवर्सिटी में 95% छात्रों को यह तक पता नहीं होगा कि सन् 1962 में भारत और चीन की लड़ाई हुई थी.
कोरोना की शुरुआत में चीन की अर्थव्यवस्था की गति में थोड़ी रुकावट आई थी. उन्होंने शी जिनपिंग के बारे में कहा कि इनकी वजह से वामपंथ की पुनरावृत्ति हो गई है और ऐसे में यहां व्यक्ति विशेष महत्वपूर्ण हो जाएगा. दशकों बाद एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जिसमें शी जिनपिंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से ज्यादा लोकप्रिय हो गए हैं.
वक्ता कैप्टन आलोक बंसल पूर्व नौसेना अधिकारी एवं सुरक्षा विशेषज्ञ हैं. साथ ही इंडिया फाउंडेशन के निदेशक भी हैं. वे दक्षिण एशियाई सामरिक मामलों के संस्थान के कार्यकारी निदेशक हैं. नेशनल मैरिटाइम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक रह चुके हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस और सेंटर फॉर लैंड वेल फेयर स्टडीज के साथ कार्य भी कर चुके हैं. “बलूचिस्तान इंटरमाइल पाकिस्तान एंड क्रॉस रोड्स” नामक पुस्तक लिखी है. कई अन्य पुस्तकों का संपादन भी किया है.