शिमला. मातृवंदना पत्रिका विशेषांक के विमोचन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह किस्मत कुमार ने कहा कि भारतीय जीवन में खुशी प्रकाश बुझाकर नहीं मनाई जाती, बल्कि भारतीय विचार तो अस्तो मां सद्गम्य, तमसो मां ज्योतिर्गमय का है. हमें विश्व गुरु भारत बनाने के लिए भारतीय विमर्श को जन-जन तक पहुंचाना होगा. नवसंवत्सर (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) के उपलक्ष्य में मातृवन्दना संस्थान और हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला के संयुक्त तत्त्वाधान में शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में आयोजित समारोह में विशेषांक और कैलेंडर का विमोचन किया गया. इस वर्ष विशेषांक का विषय ‘स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव: स्वराज संघर्ष का प्रतिफल’ रखा गया है.
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर मुख्य अतिथि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह डॉ. किस्मत कुमार मुख्य वक्ता तथा उपाध्यक्ष रेडक्रॉस सोसायटी हिमाचल प्रदेश डॉ. साधना ठाकुर कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहीं.
किस्मत कुमार ने कहा कि मातृवंदना के विचार को समाज में ले जाने की आवश्यकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि दरबारी इतिहासकारों ने प्रकार की भ्रामक बातें हमको बताईं. उन्होंने बाबा साहेब आंबेडकर जी का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने प्रतंत्रता का आरंभ 712 ईसवी से माना है, जब दाहिर पर अरब की ओर से आक्रमण हुआ.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उद्देश्य के बारे में कहा कि सभी सुखी हों, सभी का कल्याण हो. हिन्दू कभी हिंसा की भावना नहीं रखता. हिन्दू जीवन का अर्थ ही है वैज्ञानिक जीवन. हमारे देश में रात्रि में वृक्षों से पत्तों तक को तोड़ने की मनाही है. ऐसे में हिन्दुत्व कैसे किसी प्राणी के लिये हिंसक हो सकता है जो वनस्पतियों तक का ध्यान रखते हैं.
राज्यपाल विश्वनाथ अरलेकर ने कहा कि महाभारत काल से कलियुग का प्रारंभ हुआ और आज 5124वां साल है. आज लोगों का भारतीय नववर्ष को मानने की ओर झुकाव हुआ है. यह परिवर्तन स्वागत योग्य है. 1947 को भारत राष्ट्र नहीं बना, बल्कि यह राष्ट्र बहुत प्राचीन है. इसकी संस्कृति और परंपराएं इसको एक रखती हैं. हिन्दू परंपराएं पूर्णतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं. उन्होंने नववर्ष की बधाई दी.
कार्यक्रम अध्यक्ष साधना ठाकुर ने कहा कि मातृवंदना का सफर बहुत ही खूबसूरत रहा है. उन्होंने मातृवंदना के बारे में अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि हम मातृवंदना के विषयों के बारे में चर्चा करते रहते थे. आज मातृवन्दना के इस भव्य स्वरूप को देखकर बड़ी प्रसन्नता होती है.
पत्रिका के संपादक डॉ. दयानन्द शर्मा ने विशेषांक का परिचय दिया. उन्होंने स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को स्वराज संघर्ष का प्रतिफल बताया. प्रदेश के 16000 गाँवों में से 12000 गाँव तक पत्रिका पहुँचती है. पहले भारत की शिक्षा वैचारिक, शैक्षणिक, व्यवसायिक प्रभाव से मुक्त थी. स्वाधीनता संग्राम में बहुत से ऐसे सेनानी रहे जो प्रकाश में नहीं आए, लेकिन उन्होंने हमको स्वाधीनता का सुअवसर प्रदान किया. कार्यक्रम के समापन अवसर पर मातृवन्दना संस्थान के अध्यक्ष अजय सूद ने उपस्थित अतिथियों का धन्यवाद किया.