वामपंथ को विषैला यूं ही नहीं कहा जाता, इसके अनेक उदाहरण हैं. उनके विपरीत विचार रखने वाले व्यक्ति को समाप्त कर देते हैं. यह कहानी है केरल के एक पूर्व IPS अधिकारी की, वामपंथियों की तानाशाही मानसिकता ने उनका करियर समाप्त कर दिया. केवल इतना ही नहीं, उन्हें पेंशन व अन्य सुविधाओं का भी मोहताज बना दिया. मजबूरन, आज एक निजी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं और जान बचाने के लिए गुमनामी का जीवन जी रहे हैं. उनकी गलती केवल यह थी कि उन्होंने एक हत्याकांड में सीपीएम का साथ नहीं दिया था, जिसमें सीपीएम (CPM) संघ के चार कार्यकर्ताओं को षड्यंत्र के अंतर्गत आरोपी सिद्ध करना चाहती थी. बस, इसके बाद तो सरकार उनके पीछे पड़ गई.
के. राधाकृष्णन कन्नूर में DSP के पद पर कार्यरत थे. उसी दौरान कम्युनिस्ट पार्टी का कार्यकर्ता मोहम्मद फजल, कम्युनिस्ट पार्टी छोड़कर विपक्षी पार्टी NDF में शामिल हो गया, जिसके बाद उसकी हत्या कर दी गई. उसकी हत्या के अगले दिन CPM ने एक प्रदर्शन किया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के चार कार्यकर्ताओं को हत्या का आरोपी बताया.
कन्नूर के DIG अनंतकृष्णन ने इस मामले की जांच के. राधाकृष्णन को सौंपी और एक 20 सदस्यीय टीम का गठन किया.
एक समाचार पत्र में प्रकाशित पूर्व IPS अधिकारी के. राधाकृष्णन के बयान के अनुसार, उन्होंने बताया कि “फजल की हत्या के अगले ही दिन, CPM ने एक विरोध सभा आयोजित की थी, जिसमें क्षेत्र सचिव करयी राजन ने चार संघ कार्यकर्ताओं पर हत्या का आरोप लगाया था. मैंने उन सभी को हिरासत में ले लिया, उनके बयान दर्ज किए और घटना से पहले और बाद में उनकी सभी गतिविधियों पर नज़र रखी. दूसरे दिन गृहमंत्री कोडियेरी बालकृष्णन ने मुझे पय्यम्बलम गेस्ट हाउस बुलाया और 7 दिनों के अंदर केस फाइल करने का निर्देश दिया. जैसा कि मुझे विश्वास था कि RSS के लोग हत्या में शामिल नहीं थे, मैंने उन्हें रिहा कर दिया, जिससे CPM नेतृत्व नाराज हो गया.”
के. राधाकृष्णन का कहना था कि “उन्होंने 300 से अधिक लोगों के मोबाइल फोन रिकॉर्ड की जांच की.”
जांच के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के कई कार्यकर्ता संदेह के घेरे में आ गए, जिसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री ने उन्हें पुनः अपने फार्म हाउस पर बुलाकर यह निर्देश दिया कि “यदि वह इस मामले में किसी पार्टी कार्यकर्ता के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने का विचार कर रहे हैं तो उन्हें इसकी सूचना मंत्री महोदय को देनी चाहिए.”
इसके बाद के. राधाकृष्णन की पुलिस टीम के कर्मचारी ही भयभीत हो गए और 10 दिनों के भीतर के. राधाकृष्णन को केस से हटा दिया गया. तभी मामले से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी देने वाले दो गवाहों की रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई. फजल की पत्नी मामले को हाईकोर्ट में ले गई, तत्पश्चात् इस जांच को केरल पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने 2012 में जो चार्जशीट दायर की, उसमें CPM के 8 कार्यकर्ताओं को हत्या का दोषी बताया गया था.
15 दिसंबर, 2006 को IPS अधिकारी के. राधाकृष्णन को कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बुरी तरह पीटा गया, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट आ गई. उन्हें डेढ़ वर्ष अस्पताल में बिताने पड़े. 2016 में के. राधाकृष्णन को झूठे आरोपों में निलम्बित कर दिया गया. उन्होंने अपनी बहाली के लिए साढ़े चार साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी. जिसमें उन्हें बहाल कर दिया गया. लेकिन षड्यंत्रों का सिलसिला समाप्त नहीं हुआ. बहाली के 8 महीने बाद, सेवानिवृत्ति के एक दिन पहले उन्हें विभाग की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई का एक नोटिस दिया गया, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद उनकी पेंशन और अन्य सुविधाएं रोकी जा सकें.
लगातार प्रताड़ना का शिकार रहा पूर्व आईपीएस अधिकारी आज केरल छोड़कर दूसरे राज्य में जीवनयापन के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहा है और सुरक्षित रहने के लिए गुमनामी का जीवन जी रहा है.