प्रशांत पोळ
वराहमिहिर के लगभग 200 वर्षों के बाद, पाराशर ऋषि ने ‘कृषि पाराशर’ ग्रंथ लिखा। प्राचीन कृषि शास्त्र का संकलन और उस पर भाष्य, ऐसा ग्रंथ का स्वरूप है। यह ग्रंथ बहुत बड़ा नहीं है, परंतु जिस शास्त्र शुद्ध पद्धति से और अत्यंत वैज्ञानिक तरीके से भारतीय कृषक खेती करते थे, उस का विस्तार से वर्णन हैं, और ठोस प्रमाण भी!
पाराशर ऋषि की दृढ़ धारणा थी कि, बारिश की पूर्व सूचना, या बारिश की पूरे वर्ष की रूपरेखा, अगर वर्ष के प्रारंभ में ही पता चलती है, तो उसके अनुसार ‘कौन सा अनाज लेना ठीक रहेगा’ यह तय कर सकते हैं। इसलिये वे लिखते हैं —
वृष्टीमूला कृषिः सर्वा वृष्टीमूलं च जीवनम्।
तस्मादादौ प्रयत्नेन वृष्टीज्ञानं समाचरेत्।।
अर्थात, संपूर्ण कृषि का मूल कारण वृष्टी (बारिश) है। वृष्टी अपने जीवन का भी मूलाधार है। इसीलिए, प्रारंभ में ही वर्षा का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।
ऋषि पाराशर के मतानुसार, दो या तीन दिन के बारिश के पूर्वानुमान का किसान को कतई उपयोग नहीं है। किंतु उसे पूरे वर्ष का बारिश का पैटर्न (आकृतिबंध) अगर पता चलता है, तो किसान उस हिसाब से अपने खेती का नियोजन कर सकता है।
पूरे वर्ष के बारिश के पैटर्न का अनुमान निकालने के लिए, पाराशर ऋषि ने एक विधि विकसित की थी। इस विधि के अनुसार, पौष महीने के 30 दिन के वायु (हवा) की गति और दिशा के आधार पर, पूरे वर्ष के बारिश का पैटर्न तैयार कर सकते हैं। 30 दिन के घंटे होते हैं, कुल 30 × 24 = 720 घंटे। इन 720 घंटों को 60 घंटों का एक भाग करके विभाजित किया, तो बारह भाग तैयार होते हैं। अर्थात, बारह महीने। इन बारह भागों में, प्रत्येक भाग के प्रत्येक दिन, (अर्थात तीस दिन) सुबह – शाम वायु की गति और दिशा का अध्ययन किया, तो पूरे वर्ष में आने वाली बारिश का पैटर्न निश्चित रूप से विकसित कर सकते हैं। हर भाग को एक मास (एक महीना) माना, तब 12 भागों का मैपिंग 12 महीने में कर सकते हैं। एक भाग के दो घंटों को एक दिन माना जाएगा। (कुल साठ घंटे अर्थात तीस दिन)। उन दो घंटों में से पहला घंटा दिन और बाद का घंटा रात।
सार्ध्द दिनद्वयं मानं कृत्वा पौषादिना बुधः।
गणयेन्मासिकीं वृष्टिमवृष्टिं वानिलक्रमात।। (वृष्टिखंडः / 21)
अर्थात् पौष माह के पहले ढाई दिन में (अर्थात 60 घंटों में), अगर हवा पश्चिम और उत्तर दिशा में बह रही हो, तो उस कालखंड से संबंधित महीने के उस दिन बारिश होगी। कितना अद्भुत है यह सब..!
मजेदार बात यह है कि ‘कृषि पाराशर’ इस संस्कृत ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करने वाले रामचंद्र पांडे ने, सन् 1966 में ‘कृषि पाराशर’ ग्रंथ में दी विधि से, काशी नगर में प्रयोग किया। प्रयोग में उन्हें काशी नरेश डॉक्टर विभूती नारायण सिंह और काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉक्टर धुनीनाम त्रिपाठी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
विश्वविद्यालय की छत पर टेंट लगाकर, प्रतिदिन उन्होंने हवा की (वायु की) गति और दिशा का अध्ययन किया। ऐसा ही अध्ययन, काशी के रामनगर चौक में रहने वाले डॉक्टर आनंद स्वरूप गुप्त की छत पर भी किया गया। दोनों जगह के अध्ययन के आधार पर, उन्होंने पूरे वर्ष की बारीश की तालिका तैयार की। सन् 1967 में पूरे वर्ष, प्रतिदिन, उस तालिका के अनुसार ग्रहों / नक्षत्रों की आकाशीय स्थिति, वृष्टी, अनावृष्टी आदि का अध्ययन किया गया। रामचंद्र पांडे लिखते हैं कि, ‘इसका परिणाम अच्छा मिला। सीमित संसाधनों को लेकर किये प्रयोग के अनुसार, वार्षिक बारिश का अनुमान 76 प्रतिशत सही रहा..!
यह सभी अर्थों में अद्भुत है। न कोई सैटेलाइट, न कोई वेदर सेन्सिंग उपकरण… डेढ़ हजार वर्ष पहले, हमारे विद्वान पुरखों द्वारा निरीक्षणों के आधार पर निकाला गया सटीक अनुमान..!
दुर्भाग्य से शिक्षा क्षेत्र ने यह प्रयोग आगे नहीं बढ़ाया। विश्वविद्यालय की फाईलों में कहीं दब गया।
पाराशर ऋषि ने बादलों के चार प्रकार का वर्णन किया है।
1. आवर्त, 2. समर्थ, 3. पुष्कर, 4. द्रोण
आवर्तश्चैव संवर्तः पुष्करो द्रोण एव च।
चत्वरो जलदः प्रोक्ता आवर्तादि यथा क्रमम्।। (वृष्टीखंडः / 15)
इन बादलों से कब पानी गिर सकता है, या यूं कहें, किस प्रकार के बादल से, किस प्रकार का पानी, और कब गिर सकता, या नहीं गिर सकता, इसका भी विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि किसानों को इन बादलों का अध्ययन करना चाहिए।
पाराशर ऋषि ने अधिक अनाज कब आ सकता है, यह भी लिखकर रखा है।
चित्रास्वातीविशाखासु ज्यैष्ठेमासी निरभ्रता।
तास्वेव श्रावणे मासि यदि वर्षति वासवः।। तदा संवत्सरो धन्यो बहुशस्य फलप्रदः ।। (वृष्टिखंडः / 48)
अर्थात, जेठ के माह में चित्रा, स्वाति, विशाखा नक्षत्रों के समय आसमान निरभ्र होगा, साफ होगा। इन तीन नक्षत्रों के ही समय, सावन माह में अगर बारिश आती है, तो यह वर्ष अनाज के अधिकतम उत्पादन का वर्ष होता है।
पाराशर ऋषि ने खेत जोतने के लिए आदर्श हल कैसा होना चाहिये, इसका शास्त्रशुद्ध वर्णन किया है। ‘कृषि पाराशर’ का दूसरा भाग ‘कृषि खंड’ है। इसके 34वें श्लोक में हल के आठ प्रमुख अंग बताए हैं।
ईषायुगहलस्थाणुर्नि यौलस्तस्य पाशिकः।
अड्डचल्लश्च शौलश्च पच्चनीच हलाष्टकम्।। (कृषिखंडः / 34)
अर्थात 1. ईषा, 2. युग, 3. हलस्थाणू, 4. निर्योल, 5. पाशिकाये, 6. अड्डचल, 7. शौल और 8. पच्चनी यह हल के आठ अंग हैं। ग्रंथ के 35 से 42 श्लोकों में हल के प्रत्येक अंग का आवश्यक नाप और वर्णन दिया है। आदर्श हल के ‘इंजीनियरिंग डिटेल्स’ मिलते हैं।
‘सर्वोत्तम बीजों के संग्रहण’ को पाराशर ऋषि ने अधिक महत्त्व दिया है। ग्रंथ के 900 वर्षों के बाद, संत तुकाराम जी ने कहा है —
‘शुद्ध बीजापोटी। फळे रसाळ गोमटी।।’ अर्थात, शुद्ध बीज बोने से रसदार फल मिलते हैं और उत्तम दर्जे का अनाज प्राप्त होता है।
पाराशर ऋषि ने बीजों से संबंधित अनेक सूचनाएं तथा बहुत सी आवश्यक जानकारी भी दी है।
माघे व फाल्गुने मासि सर्वबीजानि संहरेत्। शोषयेदातपे सम्यक् नैवाधो हो विनिधापयेत।। (कृषिखंडः / 77) अर्थात, माघ और फाल्गुन माह में, सभी बीजों का संग्रहण करना चाहिये। उन्हें धूप में व्यवस्थित सुखाना चाहिए। लेकिन उन्हें नीचे नहीं रखना चाहिए।
अगले अनेक श्लोकों में बीज संग्रहण और बीज वपन (अर्थात बीजों को बोना) की शास्त्रशुद्ध जानकारी दी है। अनाज तैयार होने के बाद, उसको निकालने की विधि भी विस्तार से दी है। पाराशर ऋषि लिखते हैं कि, ‘खेती – किसानी करने वाले व्यक्ति को खेती के साथ – साथ आसपास की प्रकृति के स्वभाव की भी पूरी जानकारी होना आवश्यक है।’
आज से 1200 वर्ष पूर्व, अत्यंत वैज्ञानिक पद्धति से होने वाली खेती के तंत्र का यह डॉक्युमेंटेशन है। विश्व में सबसे अच्छी खेती भारत कर रहा था और इसलिये समृद्ध था, संपन्न था।
ये हुआ केवल खेती के बारे में.. लेकिन खेती से संबंधित वृक्ष, फलों के पेड़ आदि के बारे में भी हमारे पूर्वजों का वैज्ञानिक ज्ञान जबरदस्त था। उन्होंने लिखकर भी रखा है।
‘वृक्षायुर्वेद’ नाम से अलग अलग कालखंडों में ग्रंथ लिखे गये हैं। चाणक्य के कालखंड में तक्षशिला विश्वविद्यालय जब अपने पूर्ण वैभव पर था, अर्थात्, आज से 2400 वर्ष पहले, ‘वृक्षायुर्वेद’ नाम का ग्रंथ, ‘शालीहोत्र’ ने लिखा था। शालीहोत्र मूलतः आद्य पशुचिकित्सकों में से एक थे। उनका घोड़ों से संबंधित अध्ययन सबको आश्चर्यचकित करने वाला है। उनके ‘वृक्ष आयुर्वेद ग्रंथ’ में कुल 12 अध्याय हैं। भूमि निरुपणा, बीजोत्पविधि, पादप विविक्षा, रोपण विधान…आदि। इसमें उन्होंने जहां पेड़ लगाने हैं, उस जगह की, उस जमीन की परीक्षा, वहां के अंतर्गत जल स्त्रोतों की जानकारी, दो पेड़ों के बीच में कितना अंतर होना चाहिये, मृदा का, मिट्टी का वर्गीकरण और विश्लेषण, (परीक्षण और soil selection), नए वृक्षों के लिए जननतंत्र, बीजों पर प्रक्रिया (Seed Treatment), पेड़ों को लगने वाले रोग आदि विषयों का विस्तार से वर्णन किया है।
आगे चल कर, पाचवीं सदी में वराहमिहिर ने ‘बृहत्संहिता’ में ‘वृक्षायुर्वेद’ नाम से एक अध्याय लिखा है। इसके 55वें अध्याय में कुल 31 श्लोक हैं, जो वृक्ष लगाने और उद्यान से संबंधित विषय का विस्तार से विवेचन करते हैं।
11वीं सदी में सुरपाल ने ‘वृक्षायुर्वेद’ नाम से ग्रंथ लिखा, जो प्रसिद्ध है। इसकी ताम्रपट पर लिखी हुई एक ही मूल प्रति उपलब्ध है, वह भी ब्रिटेन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के बोडेलियन ग्रंथालय में। ग्रंथ में सुरपाल ने औषधीय पौधों को शास्त्रीय पद्धति से कैसे लगाते हैं, उनके क्या गुणधर्म है, इसके बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने तुलसी, नीम, पलाश, जामुन, आंवला आदि अनेक औषधीय वृक्षों की जानकारी दी है। कौन से वृक्ष घर के आसपास लगाना चाहिए और कौन से नहीं लगाना चाहिए, इसकी जानकारी दी है।
सुरपाल ने बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया कैसी होती है, इसका विस्तार से वर्णन किया है। यह आज से 900 वर्ष पहले का ग्रंथ है। ग्रंथ के बहुत बाद, पाश्चात्य जगत ने प्रक्रिया को ठीक से जाना। Carl Linnaeus जैसे वैज्ञानिकों ने ‘बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया पर काम किया। किंतु हमारे यहां, 11वीं सदी में, सुरपाल ने यह पूरी प्रक्रिया विस्तार से समझायी है..!
कुल मिलाकर, हजारों वर्षों से हमारे देश में अत्यंत वैज्ञानिक और शास्त्रशुद्ध पद्धति से खेती की जाती थी। खेती और बारिश का ताल मेल उस जमाने में खोजा गया था। उसी के अनुसार खेती होती थी। इसीलिए विपुल मात्रा में अनाज निकलता था। आज के जैसे आधुनिक संसाधन ना होते हुए भी, हमारे पुरखों ने यह सब कैसे खोजा होगा, यह आज भी रहस्य है..!
(आगामी प्रकाशित ‘भारतीय ज्ञान का खजाना – भाग 2’ पुस्तक के अंश)
बहुत अच्छी तरह से समझाया है 🙏🙏
हमारे यहाँ भारत वर्ष में वैज्ञानिक पद्धतीसे खेती की जाती थी और उसका डाटा भी दुसरो को ज्ञानवर्धन हेतू दिया जाता है . धन्यवाद 🙏🙏
Good
Where can I get this book
Nice
समय की मांग है, रासायनिक खाद खेती करनेसे और रोग मय जीवन बितानेसे अच्छा रहेगा हम पूर्वजोका बताया तरिका अपनाके खेती उत्पादन बढाये और स्वस्थ जीवन पाये.
क्या ये मराठी मे उपलब्ध है.