भोपाल. भोपाल को अगर आप समझें और अतीत पर दृष्टि डालें तो भोपाल केवल नवाबी, गोंडवाना या परमार काल तक सीमित नहीं था. अगर हम भोपाल में चौक को केंद्र मानकर 50 किलोमीटर के रेडियस में खींचें तो मानकर चलिये कि सभ्यता का विकास और ये जो सारा क्षेत्र रहा है, वह शिक्षा, चिकित्सा और अनुसंधान का केंद्र रहा है.
“भोपाल विलीनीकरण दिवस” पर विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित परिचर्चा में मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भोपाल में जहां जामा मस्जिद बनी हुई है, यह वैदिक कालीन निर्माण है. यहां रामायण काल का अस्तित्व मिलता है, यहां महाभारत काल, मौर्य काल, शुंग काल, गुप्त काल के साथ प्रतिहारों, परमारों के अस्तित्व मिलने के क्रमबद्ध दस्तावेज उपलब्ध हैं.
वैदिक काल की रचनाओं के बारे में कहा कि इनका आधार स्वस्तिक हुआ करता था. यदि हम चौक की जामा मस्जिद को केंद्र बनाएं और प्लस का निशान बनाकर देखें तो पाएंगे कि एक रेखा सोमवारे की ओर जा रही है. दूसरी रेखा इतवारे की ओर आ रही है. तीसरी रेखा इब्राहिमपुर की ओर जा रही है और चौथी रेखा जुम्मेरात्रि की ओर जा रही है. हम आज के निर्माण को हटा दें तो चारों रेखाएं बिल्कुल समान हैं.
तो इब्राहिम पूरे से 90 डिग्री पर ही सीधा मोती मस्जिद तरफ जाता है, सोमवारे से ही 90 डिग्री पर देखो तो सीधा सिंधी मार्केट की ओर जाता है. इसी प्रकार इतवारे से जो मार्ग जाता है वो बुधवारे की ओर जाता है. जुमेरात्रि से मंगलबारे की ओर जाता है. इन चारों मार्गों पर बराबरी देखने को मिलती है.
उन्होंने सौरमण्डल के उदाहरण को प्रस्तुत करते हुए कहा कि सूर्य के ठीक सामने चंद्रमा पड़ता है. तभी वो उसकी लाइट को रिफ्लेक्ट करता है. इसलिए भोपाल में इतवारे के जस्ट ऑपोजिट सोमवारा है. अंतरिक्ष में अगर आप सौर मंडल को देखेंगे तो सूर्य के एक ओर बुध है और दूसरी ओर मंगल है. तो यहाँ इतवारा के एक ओर बुधबारा है, दूसरी ओर मंगलवारा है. ठीक उसी प्रकार सौरमंडल में गुरु और शुक्र बिल्कुल विपरीत दिशा में काम करते हैं. ऐसे ही जुम्मेरात्रि और इब्राहिमपुरा आमने सामने हैं. इनमें जुम्मेरात्रि का नाम पहले गुरुवारा था और इब्राहिमपुरा का शुक्रवारा. तो यह जस्ट ऑपोजिट हैं. कुल मिलाकर यह रचना वैदिक कालीन रही है.
उन्होंने भोपाल की शिक्षा, चिकित्सा पर बात करते हुए इनका केंद्र भोजशाला को बताया. साथ ही उन्होंने “हयाते खुदसी” नामक पुस्तक से तथ्य प्रस्तुत किए. उन्होंने सीहोर, रायसेन आदि स्थानों पर संघर्ष होने की बात कही. साथ ही विलीनीकरण के लिए आवाज उठाने वाले समाचारों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला.
परिचर्चा में बड़ी संख्या में नागरिक शामिल हुए. जिसकी प्रस्तावना इतिहासकार राजीव चौबे द्वारा रखी गयी. आभार विश्व संवाद केंद्र के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अजय नारंग एवं संचालन कृपाशंकर चौबे ने किया.
भोपाल में जलाया जाता था तिरंगा
कार्यक्रम में वरिष्ठ इतिहासकर आलोक गुप्ता ने भोपाल विलीनीकरण के सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि भोपाल रियासत अभी के भोपाल से कई बड़ी थी. इसमें वर्तमान के रायसेन, बैरसिया, सीहोर सहित आसपास के अनेक क्षेत्र आते थे. उन्होंने जिन्ना के नवाब से घनिष्ठ संबंध होना बताया. उन्होंने कहा कि भोपाल के नवाब हमीदुल्ला का मुस्लिम लीग के प्रति झुकाव शुरुआत से ही रहा था. भोपाल में तिरंगे का अपमान भी होता रहता था, उसे जलाने से लेकर उसे काटने, रोंदने सहित सारे काम यहाँ होते रहे. उन्होंने तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए भोपाल नवाब द्वारा देश की सारी रिसारतों को मिलाकर अलग देश बनाने की बात पर भी विस्तार से प्रकाश डाला.
रियासत में हुए विलीनीकरण के लिए आन्दोलन
प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए इतिहासकार राजीव चौबे ने भोपाल विलीनीकरण आंदोलन पर विस्तार से बात रखी. उन्होंने भोपाल नवाब के पाकिस्तान में शामिल होने या फिर अपनी रियासत को अलग देश बनाने के प्रयासों के बारे में बताया. उन्होंने भोपाल में विलीनीकरण के लिए रायसेन बेगमगंज सिलवानी सहित अनेक जगहों पर आंदोलन होने की जानकारी दी. साथ ही नवाब के खिलाफ बरेली से लेकर बौरास में हुए आंदोलन की भी जानकारी प्रदान की.
कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अजय नारंग ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे समाज ने बहुत कुछ खोया है. हमने अपने नाम तक को खो दिया है. अभी भी हम पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं हैं, अन्यथा पुरातन प्राचीन चिन्हों पुनर्स्थापित करने में समय नहीं लगता. इतने समय तक हमारे आराध्य किसी वजूखाने में नहीं पड़े होते.