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टुकड़े-टुकड़े पाकिस्तान – १४

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टूटता फूटता पाकिस्तान..!

प्रशांत पोळ

आज जब सारा भारत वर्ष विभाजन की कटु स्मृतियों का स्मरण करते हुए ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ मना रहा है, तब पाकिस्तान अपने स्थापना की ७६वीं वर्षगाठ मना रहा है. इन दोनों का गहरा संबंध है, क्योंकि पाकिस्तान बना ही 15 लाख लोगों की लाशों पर है! मुस्लिम नेताओं द्वारा अलग से इस्लामी देश का अत्याग्रह, भारत को विभाजन तक ले गया था.

‘हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान’ से लेकर तो ‘दे दाता के नाम तुझको अल्ला रख्खे’, गाते – गाते हर एक देश की दहलीज पर भीख का कटोरा लेकर जाना, यह पाकिस्तान का प्रवास है. यह ७६ वर्ष का प्रवास यानि टूट फूट का, अमेरिकी / चीनी टुकड़ों पर पलने का और भारत के प्रतिशोध का प्रवास है. इस पूरे प्रवास में पाकिस्तान कभी पूर्ण रूप से लोकतंत्रिक देश रहा ही नहीं है. अनेक दशक तो प्रत्यक्ष रूप से सेना का शासन रहा. (१९५८ से १९७१, फिर १९७७ से १९८८, फिर १९९९ से २००८). बाकी समय सेना का अप्रत्यक्ष नियंत्रण प्रशासन पर रहता है. अभी इमरान खान के मामले में पूरे विश्व ने देखा ही है. पाकिस्तान के पांच प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, या तो मुकदमों से जूझते रहे, जेल गये या फांसी पर लटका दिये गए.

पाकिस्तान की आधारशिला ही इस्लाम है. इस्लाम और लोकतंत्र, यह साथ-साथ नहीं चल सकते. इंडोनेशिया जैसे कुछ नाम अपवाद के स्वरूप में हम गिना सकते है. किंतु इस्लामी देशों में लोकतंत्र नहीं चलता, यह कटु सत्य है.

पाकिस्तान आज पूरा खोखला हो चुका है. इस देश का आर्थिक प्रबंधन यानि ‘भीख का कटोरा लेकर वैश्विक संस्थान और अलग-अलग देशों में घूमना’, इतना ही बचा है. लिये हुए कर्ज की किश्त चुकाना, यही एक सबसे बड़ी चुनौती आज पाकिस्तान के सामने है. अभी जून २०२३ तक पाकिस्तान पर 72.97 ट्रिलियन रुपये, (अर्थात 140 बिलियन अमेरिकन डॉलर्स) का कर्जा है. यह कर्जा पाकिस्तान की जीडीपी का 93 प्रतिशत है. इसका अर्थ है, पाकिस्तान का इस कर्जे से बाहर आना करीब-करीब असंभव है. यह इसलिये भी क्योंकि पाकिस्तान पूर्णतः आयात की नीति पर निर्भर है. आज पाकिस्तान में स्टेपलर की पिन भी नहीं बनती.

पाकिस्तान की निर्यात तीन ‘च’ पर आधारित है – चमड़ा, चादर और चावल! पाकिस्तान बड़ी संख्या में पशुओं को और मृत पशु के चमड़े का निर्यात करता है. चादर, टेक्सटाइल एक्सपोर्ट के अंतर्गत आता है. लेकिन केवल चादर या कुछ मात्रा में गलीचे… बस, इतनी ही पाकिस्तान के बस की बात है. जिनको लेकर विश्व के बाजार में महत्व है और कीमत भी मिलती है, ऐसे कपड़े पाकिस्तान में नहीं बनते. ये बनते हैं बांग्लादेश में, भारत में. यूरोप, अमेरिका.. कहीं पर भी जाएं, सिले हुए कपड़ों में अधिकतम या तो ‘मेड इन बांग्लादेश’ मिलेगा या ‘मेड इन इंडिया’. पाकिस्तान कुछ अंशों में चावल का निर्यात करता है, जो खाड़ी के देशों में जाता है. दक्षिण पूर्व के देश और लेटिन अमेरिका में पाकिस्तानी चावल पसंद नहीं किये जाते.

अमेरिका से सतत मिलती हुई मदद के कारण तथा आयात नीति में अनेकों के हित गुंथे होने के कारण, पाकिस्तान ने कभी उत्पादन पर ध्यान ही नहीं दिया. आज पाकिस्तान में कोई मेन्युफैक्चरिंग बेस नहीं है. और इसी कारण से पाकिस्तान के इस आर्थिक संकट से उभरने की कोई उम्मीद नहीं दिखती.

कैसर बंगाली, यह पाकिस्तान के जाने माने अर्थशास्त्री हैं. लगभग ४० वर्ष का उनका अनुभव है. अमेरिका के बोस्टन यूनिवर्सिटी से उन्होंने अर्थशास्त्र में मास्टर्स किया है. पाकिस्तान की अनेक संस्थाओं के और कुछ मुख्यमंत्रियों के आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं. इनका एक वीडियो अभी भारत में काफी वायरल हुआ है. शनिवार, १५ जुलाई को कराची में, ‘पाकिस्तान इन्स्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स’ (पीआईआईए) ने एक सेमिनार का आयोजन किया था. विषय था, ‘द स्टेट ऑफ पाकिस्तान इकॉनोमी : व्हॉट नेक्स्ट?’. इस सेमिनार में, अपने पहले की वक्ता, डॉक्टर मासुमा हसन के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, “देअर इज़ नो नेक्स्ट”. अर्थात पाकिस्तान का भविष्य ही नहीं है..!

अपने भाषण में पाकिस्तान की वर्तमान परिस्थिति का उल्लेख करते हुए कैसर बंगाली ने कहा -“जल्दी ही हम लोग चीनी, सऊदी, एमिराती और अन्य देशों के नौकर हो जाएंगे, कारण ये लोग पाकिस्तान के मालिक हो जाएंगे. अब अमेरिका को हमारी जरूरत नहीं है. उनकी दृष्टि में भारत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. इसलिये उन्होंने हमारे सामने टुकड़े फेकना बंद कर दिया है”.

आज पाकिस्तान आर्थिक रूप से कंगाल हुआ ही है, साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से भी लाचार हो गया है. कुछ वर्ष पहले तक तो पाकिस्तान हमेशा युद्ध करने की गर्जना करता था. किंतु अब नहीं. अब तो एक दिन का युद्ध झेलने की भी उसकी क्षमता नहीं बची है.

इन बातों का परिणाम सभी क्षेत्र में हो रहा है. बेरोजगारी जबरदस्त बढ़ी है. अपराधों में अत्याधिक उछाल आया है. न्याय व्यवस्था अत्यंत लचर है. पाकिस्तान में ‘अल्पसंख्यांकों के अधिकार’ नाम की कोई चीज दिखती ही नहीं है. विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान मिलाकर २४% से ज्यादा हिन्दू थे. आज जो पाकिस्तान बचा है (अर्थात् पहले का पश्चिमी पाकिस्तान), उसमें १% से भी कम हिन्दू बचे हैं. इनमें से अधिकतर सिंध प्रांत में हैं. यह सभी हिन्दू अत्यंत असुरक्षित हैं. इनकी कोई सुनवाई नहीं है. हिन्दुओं की बहू-बेटियों को उठाकर लेकर जाना, यह आम बात हो गई है. आये दिन ऐसे समाचार सुनने को मिलते हैं. ऐसी कितनी घटनाएं हैं, जो समाचार पत्रों तक भी पहुंच नहीं पाती है. दुर्भाग्य से ‘अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ भी पाकिस्तान की इन घटनाओं पर न तो संज्ञान लेता है, और न ही शिकायतें सुनता है.

पाकिस्तान में अलगाववाद अपने चरम पर है. पंजाब को छोड़कर लगभग सभी राज्य पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश के रूप में खड़ा होना चाहते हैं. सिंध प्रांत में ‘जीये सिंध’ आंदोलन बीच में कमजोर पड़ गया था. अब उसमें भी उछाल आ रहा है. ‘सिंधु देश आंदोलन’ के नाम पर इसमें नवयुवक जुड़ रहे हैं. प्रति वर्ष जीएम सैय्यद की स्मृति में, ‘पृथक सिंधु देश रैली’ आयोजित की जाती है, जिसकी संख्या में बढ़ोतरी हो रही है.

पाकिस्तान के लोग इस समय संभ्रम में हैं, कन्फ्युज्ड हैं. वह इतिहास को नकार भी नहीं सकते और स्वीकार भी! कभी उनको पाणिनी उनका पूर्वज लगता है, तो कभी तक्षशिला को अपना गौरव बताते हैं. किंतु मुल्ला – मौलवी का विरोध होते ही उसे नकार देते हैं. वे पाकिस्तान को राष्ट्र बनाना चाहते थे, लेकिन देश और राष्ट्र में अंतर है. देश यह भौगोलिक सीमा रेखा और आंतरिक प्रशासन से बनता है. किंतु इतने मात्र से उसमें राष्ट्रप्रेम का भाव जागृत नहीं होता. राष्ट्र के लिए सांस्कृतिक विरासत नितांत आवश्यक है. पाकिस्तान के लिए वही समस्या है.

जिसने लाहौर बसाया ऐसे श्रीराम के पुत्र लव, जिसके नाम पर रावलपिंडी बना ऐसे महापराक्रमी बप्पा रावल, आद्य व्याकरणकार पाणिनी, विश्व का सबसे पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला, पराक्रमी राजा दाहीर… यह सब पाकिस्तान की सांस्कृतिक विरासत है. किंतु पाकिस्तान उसे मानता नहीं, मान सकता नहीं. कारण इसे अगर विरासत कहेंगे तो अलग से इस्लामी देश की थ्योरी ही फेल हो जाती है.

अलग से इस्लामी देश बनाने की चाहत में पाकिस्तान बना. इसका आधार ही इस्लाम था. लेकिन ७६ वर्षों में पाकिस्तान ने क्या किया? इस्लाम के अनुयायियों को ही समाप्त किया. १९७१ में तत्कालीन ईस्ट पाकिस्तान में पाकिस्तानी फौजों ने लगभग तीस लाख बांग्ला भाषिक लोगों को मौत के घाट उतारा. नृशंसता से मारा. इनमें से बीस / बाईस लाख हिन्दू थे. लेकिन बाकी बचे हुए तो मुस्लिम ही तो थे ना? बलोचिस्तान में जो मारे जा रहे हैं, वे सभी मुस्लिम हैं. यही हाल खैबर पख्तुनख्वा का, सिंध का, गिलगिट का…….सभी स्थानों का है.

फिर इस्लामी देश का क्या अर्थ रहा?

इस्लाम यह किसी देश के बनने का आधार हो ही नहीं सकता. अर्थात पाकिस्तान बना ही गलत आधार पर. पाकिस्तान का बनना ही गलत था. इसलिये एक देश के नाते, पाकिस्तान का लंबी दूरी तक चलना संभव ही नहीं है.

और आज जब पाकिस्तान failed state (विफल राज्य) हो गया है, कंगाली की कगार पर खड़ा है, और दूसरी ओर भारत बुलंदियों को छू रहा है, तब पाकिस्तान की जनता मुखर हो कर पूछ रही है…

‘हमारे पुरखों ने विभाजन किया ही क्यों?’

(समाप्त)

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